आखिर क्यों जरूरी होती है जनगणना और क्यों हो रही इसमें देरी, इसके साइड इफेक्ट पर भी डालें नजर
केंद्र सरकार ने जनगणना-2021 को लेकर तैयारियां शुरू भी नहीं की थी कि कोरोना की तीसरी लहर आ गई
अली खान। केंद्र सरकार ने जनगणना-2021 को लेकर तैयारियां शुरू भी नहीं की थी कि कोरोना की तीसरी लहर आ गई। अब अगले दो से तीन महीने तक इस दिशा में काम नहीं हो सकेगा। जनगणना शुरू होने और उसे पूरा होने में अमूमन तीन से चार साल का समय लगता है। सरकार ने मार्च 2019 में इसकी अधिसूचना जारी कर दी थी। अगर तय समय के हिसाब से जनगणना होती तो अधिसूचना जारी होने के तीन साल बाद यानी इस साल तक आरंभिक आंकड़े आते। इसमें भी पहले परिवारों की गिनती होती।
अंतिम आंकड़े 2023 से पहले नहीं आ पाते। अब अगर 2022 के अंत में जनगणना शुरू होती है तो 2026 तक आंकड़े आएंगे। इसके तीन साल बाद फिर 2031 की जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। माना जा रहा है कि इसे देखते हुए सरकार इस बार की जनगणना टाल सकती है। किसी भी देश को विकास के रास्ते पर ले जाने में जनगणना के आंकड़ों की महती उपयोगिता होती है। यह न केवल देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जनसंख्या आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाती है, बल्कि उसकी विविधता और इससे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन करने का अवसर भी प्रदान करती है।
इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों के लिए योजना और नीति-निर्धारण में बहुमूल्य जानकारी साझाकरण का कार्य जनगणना के आंकड़े ही करते हैं। जनगणना के अंतर्गत ही किसी देश की जनसांख्यिकी विशेषता के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। किसी क्षेत्र विशेष के विकास के लिए आवश्यक निर्णयन में जनगणना से प्राप्त आंकड़ों की भागीदारी बढ़ जाती है। जनगणना के आंकड़ों का उपयोग अनुदान के निर्धारण में भी किया जाता है। देश के सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में देने का जिम्मा जनगणना के आंकड़ों पर होता है।
इसके आधार पर ही लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है। लिहाजा तय समय पर जनगणना करवाना जरूरी हो जाता है।गौरतलब है कि साल 2026 में वर्तमान परिसीमन अवधि समाप्त हो जाएगी। लिहाजा लोकसभा में राजनीतिक संतुलन का बदलना तय है। यदि अभी जनगणना नहीं होती है तो जनसंख्या प्रबंधन के सबसे खराब रिकार्ड वाले राज्यों में मुख्यत: उत्तर भारत की संसद में प्रतिनिधित्व में बड़े पैमाने पर वृद्धि होगी। इसके विपरीत दक्षिण और पश्चिम भारत को नुकसान होगा।
इसके अलावा वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण पर मार्गदर्शन प्रदान करता आया है। देश में जीएसटी लागू होने के बाद से कर के वितरण के आधार अधिक विवादास्पद रूप ले चुके हैं। जनसंख्या के आंकड़े इस मामले में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में जनगणना की प्रक्रिया को शीघ्र शुरू किया जाना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)