अफगान नीति अग्नि परीक्षा
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना तेजी से वापस जा रही है और तालिबान अफगानिस्तान के अधिकांश इलाकों पर अपना कब्जा जमा चुका है। यह जगजाहिर है
आदित्य चोपड़ा| अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना तेजी से वापस जा रही है और तालिबान अफगानिस्तान के अधिकांश इलाकों पर अपना कब्जा जमा चुका है। यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान तालिबान का समर्थन कर रहा है। इस सबके बीच अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन आज भारत आ रहे हैं। इस दौरान अफगानिस्तान की स्तिथि और आतंक के लिए पाकिस्तान के वित्तपोषण पर चर्चा होगी। अफगानिस्तान सेना के प्रमुख जनरल वली मोहम्मद भी भारत की यात्रा करने वाले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान तालिबान का मुकाबला करने के लिए भारत से सैन्य मदद मांगने वाला है। अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भारत को अफगानिस्तान की सैन्य मदद करनी चाहिए? भारत की अफगानिस्तान नीति क्या होगी? जब-जब अफगानिस्तान में अस्थिरता और हिंसा हुई तब-तब भारत को काफी नुक्सान हुआ है। तालिबान पहले ही चेतावनी दे चुका है कि भारत को विदेशी शक्तियों द्वारा बनाई गई कठपुतली अफगान सरकार का समर्थन नहीं करना चाहिए बल्कि भारत को तटस्थ रहना चाहिए। इस संबंध में दो विचार हैं। पहला तो यह कि भारत को इस समय हर तरह से अफगान सरकार की मदद करनी चाहिए, दूसरा विचार यह कि भारत को अफगानिस्तान की सैन्य मदद नहीं करनी चाहिए बल्कि अमेरिका और अन्य देशों को इस बात के लिए राजी करना चाहिए कि वे एकजुट होकर निर्णायक भूमिका निभाएं। भारत अफगानिस्तान में सेना भेजने पर सैन्य मदद को लेकर सवालों को टालता रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारत पर अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजने के लिए दबाव डाला था लेकिन कूटनीति के विशेषज्ञों का कहना था कि अमेरिका भारत के कंधे पर बंदूक रखकर अपना मकसद हल करना चाहता है।