तीन हुक्मरानों की सियासी जंग में अपना वजूद तलाशने पर मजबूर हुआ एक शहर?
ओपिनियन
By: नरेन्द्र भल्ला
कोई सोच सकता था कि देश ही नहीं बल्कि एक जमाने में एशिया का खूबसूरत शहर कहलाने वाला चंडीगढ़ दो राज्यों और केंद्र की सरकार के बीच सियासी लड़ाई का इतना बड़ा अखाड़ा भी कभी बन सकता है.अब तो इसमें हिमाचल प्रदेश भी कूद आया है और अब राजधानी पर दावा ठोकने की ये जंग पानी का बंटवारा करने पर उतर आई है. लिहाज़ा इस लड़ाई का सूरते-हाल आगे और क्या होने वाला है,ये कोई नहीं जानता.
लेकिन चंद दिनों पहले ही पंजाब की सत्ता में काबिज हुई आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार इस मसले को उस मुकाम तक ले जाती हुई दिख रही है जहां आखिरकार कानूनी लड़ाई से ही इसके निपटारा होने के आसार नज़र आ रहे हैं. लेकिन चंडीगढ़ में रहने वाले लाखों बाशिंदे इसलिए परेशान हैं कि आने वाले दिनों में ये लड़ाई उनकी प्रादेशिक नागरिकता ही बदलकर रख देगी. इसलिये कि वे भी नहीं जानते कि आगे भी वे केंद्र शासित प्रदेश के ही नागरिक बने रहेंगे या पंजाब का उन पर अधिकार होगा या फिर हरियाणा उन्हें अपना नागरिक बनाने के लिए पूरी ताकत लगा देगा.
दरअसल,चंडीगढ़ देश का इकलौता ऐसा शहर है,जो है तो केंद्र शासित प्रदेश लेकिन वो पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी भी है. कानूनी लिहाज से देखें,तो यह देश की एकमात्र ऐसी यूनियन टेरिटरी (यूटी) है, जहां चंडीगढ़ समेत दो राज्यों की एक ही हाइकोर्ट है जिसे पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट कहा जाता है.इतिहास पर नज़र डालें,तो पिछले पांच दशक से भी ज्यादा वक्त से ये शहर दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार से लेकर पंजाब और हरियाणा की भी गले की फांस बना हुआ है.
केंद्र से लेकर इन दोनों राज्यों में कई सरकारें आईं और चली भी गईं लेकिन किसी ने भी भानुमति के इस पिटारे को खोलने की ज़हमत नहीं उठाई. शायद पहली व मुख्य वजह ये है कि केंद्र में आने वाली किसी भी सरकार ने न तो कभी चाहा और न ही वो ऐसा कभी चाहेगी कि उसके अधीन रहने वाले एक प्रदेश को किसी अन्य राज्य की राजधानी बनाकर उसे सौंप दिया जाये.
केंद्र का अब तक का दूसरा सबसे बड़ा डर ये भी रहा है कि चंडीगढ़ को अगर वह पंजाब की राजधानी घोषित करके उसे सौंप देता है तब वह हरियाणा के लोगों के गुस्से को आखिर कैसे शांत करेगा? लिहाज़ा, ये मामला सालोंसाल यो ही लटकता रहा. चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाने और उसे केंद्र सरकार द्वारा राज्य को सौंपने को लेकर पंजाब विधानसभा में साल 1967 से लेकर 2014 तक कुल छह प्रस्ताव पास हुए लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.
पर,अब पंजाब के सीएम भगवंत मान ने इस सोए हुए जिन्न को फिर से जगाकर केंद्र के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी खड़ी कर दी है. उन्होंने 1 अप्रैल को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर ये प्रस्ताव पास करा लिया कि चंडीगढ़ पर सिर्फ पंजाब का हक है, लिहाज़ा उसे तुरंत सौंपा जाए, ताकि पंजाब सरकार चंडीगढ़ को अपनी राजधानी घोषित कर सके. पंजाब के विधायी इतिहास में चंडीगढ़ पर अपनी राजधानी होने का दावा करने वाला ये सातवां प्रस्ताव है.
हालांकि इस मुद्दे पर पंजाब की आप सरकार से आरपार की भिड़ंत करने के लिए हरियाणा में बीजेपी के सीएम मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली सरकार ने भी ताबड़तोड़ इसका सियासी तोड़ निकालते हुए मंगलवार को विधानसभा का विशेष सत्र आहूत कर लिया. खट्टर सरकार ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पंजाब विधानसभा द्वारा हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पर दावा करने वाले प्रस्ताव की निंदा करते हुए केंद्र से यह आग्रह किया गया है कि जब तक पंजाब के पुनर्गठन से उत्पन्न सभी मुद्दों का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक मौजूदा संतुलन को बिगाड़ने और सद्भाव बनाए रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाए.
इसका सियासी मतलब ये है कि हरियाणा की बीजेपी सरकार ने पंजाब की आप सरकार द्वारा पास किये गए प्रस्ताव की हवा निकालते हुए गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में फेंक दी है.विश्लेषक मानते हैं कि केंद्र आखिर इस झंझट में क्यों पड़ेगा और वो अपने शासन वाला एक अहम क्षेत्र विपक्षी पार्टी वाली एक राज्य सरकार को तश्तरी में रखकर इतनी आसानी से भला क्यों दे देगा?
उनके मुताबिक इस सच को आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल और सीएम भगवंत मान भी बखूबी जानते हैं कि 56 साल पुराने इस झगड़े का निपटारा अगले 56 दिनों में भी नहीं हो सकता.लेकिन उनकी भी सियासी मजबूरी ये है कि पंजाब की जनता से जो भारी भरकम चुनावी वादे किए थे,उन्हें इतनी जल्द पूरा कर पाना,उतना आसान भी नहीं है.लिहाज़ा, चंडीगढ़ ऐसा नाजुक मसला है,जिस पर केंद्र के साथ धींगामुश्ती करके कुछ महीनों तक पंजाब की जनता का ध्यान भटकाने में कामयाबी मिल सकती है.
इसीलिये कल इस प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दौरान हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि अगर हम नई राजधानी बनाना चाहें तो केंद्र सरकार से वित्तीय मदद मिलनी चाहिए.जब तक वित्तीय मदद, एसवाईएल का पानी और हिंदी भाषी क्षेत्र नहीं मिलते, चंडीगढ़ में हरियाणा डटा रहेगा, हरियाणा ने अंगद का पैर जमा रखा है.
विज़ ने पंजाब सरकार को सीधी चुनौती देते हुए यहां तक कह दिया कि "हमारे पैर को कोई उखाड़ नहीं सकता. पंजाब सरकार का प्रस्ताव राजनीतिक है और वे जानते हैं कि उन्होंने रियायतें देने व झूठे वादों के दम पर सत्ता हथियायी है. वे उन वादों को पूरा नहीं कर सकते.पंजाब के हालात श्रीलंका जैसे होने वाले हैं, इसलिए अपने प्रदेश के लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस मुद्दे को छेड़ने की कोशिश की है. चार दिन की पार्टी अभी शिशुकाल में है, अभी दूध के दांत भी नहीं टूटे और वे बातें चंडीगढ़ की कर रहे हैं."
सियासी भाषा में इसे बेहद तीखा व तल्ख बयान माना जाता है क्योंकि अक्सर राज्यों के आपसी विवाद को लेकर किसी राज्य के जिम्मेदार व सीनियर मंत्री ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल करने से बचते हैं.इसीलिये सियासी हलकों में ये कहा जा रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार ने हरियाणा को खुली छूट दे दी है कि पंजाब से होने वाली इस लड़ाई में अपनी बाजू चढ़ाकर मैदान में उतर आये.रही-सही कसर हिमाचल ने पूरी कर दी है .उसने कहा है कि राजधानी का फैसला तो बाद में होगा,पहले पानी के बंटवारे का मसला सुलझाया जाए,जो हिमाचल से पंजाब को मिल रहा है.
दरअसल,साल 1947 में भारत -पाक विभाजन के बाद 1953 में एक मॉडर्न सिटी के रुप में जन्म ले रहे देश के सबसे खूबसूरत शहर चंडीगढ़ ने जब लोगों को आगोश में लेने के लिए अपनी बांहे फैलाई, तब वो सिर्फ पंजाब प्रांत की ही राजधानी था,जो कि 1966 तक रहा भी.लेकिन उसी साल इस शहर को ऐसी नज़र लगी कि सरकार के दिग्गज़ नजूमी भी उसकी नज़र आज तक नहीं उतार पाये.
उस जमाने की केंद्र सरकार ने 1 नवंबर 1966 को पंजाब के हिंदी भाषी वाले पूर्वी हिस्से को काट कर एक नए राज्य का गठन किया,जिसका नाम हरियाणा रखा गया.उसी समय ही चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी घोषित कर दिया गया और साथ ही इसे केंद्र शासित प्रदेश भी बनाया गया.
चंडीगढ़ के 60 फीसदी कर्मचारी पंजाब सरकार के नियमों के तहत आते हैं, वहीं 40 फीसदी हरियाणा सरकार के अधीन हैं. लेकिन अप्रैल से केंद्र सरकार ने नियमों में बदलाव करके वहां तैनात करीब 22 हजार सरकारी कर्मचारियों-अफसरों को अपने अधीन ले लिया है. यानी चंडीगढ़ में पंजाब सरकार की ब्यूरोक्रेसी का जो 60 फीसदी हिस्सा तैनात है,उस पर अब पंजाब की मान सरकार का कोई वश नहीं है.चाहते हुए भी राज्य सरकार न उनका ट्रांसफर कर पायेगी और न ही उनके खिलाफ कोई काईवाई करने की हकदार होगी.
जरा सोचिये कि एक राज्य के सीएम से इतना बड़ा हक ही छीन लिया जाए,तो क्या वह चुप बैठेगा? बस,यही असली मकसद है चंडीगढ़ पर अपनी राजधानी होने का दावा ठोकने का.देखते हैं कि इसका अंजाम किसके लिए बड़े नुकसान का सौदा साबित होता है?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि जनता से रिश्ता इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)