8 Years of Modi Government: पीएम मोदी ने कैसे बनाया 'सबका साथ' सबका विकास' नारे को अपनी सरकार का 'मूलमंत्र'?

देशभर में मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने का जश्न बनाने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं

Update: 2022-05-26 08:13 GMT
यूसुफ़ अंसारी |
देशभर में मोदी सरकार (Modi Government) के 8 साल पूरे होने का जश्न बनाने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 26 मई को शपथ ली थी इस हिसाब से देखें तो उन्हें प्रधानमंत्री बने हुए 8 साल पूरे हो चुके हैं. अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत करते समय उन्होंने शपथ 30 मई को लिया था. 2014 में नरेंद्र मोदी सबका साथ सबका विकास नारे पर जीतकर सत्ता में आए थे. दूसरी बार लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद मोदी ने अपने इस नारे में 'सबका विश्वास, सबका प्रयास' जोड़ दिया था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी (BJP) ने हर राज्य के विधानसभा चुनाव में 'सबका साथ, सबका विकास' नारे को भुनाया. और हर जगह उसे कामयाबी मिली.
केंद्र में मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने पर इस बात पर चर्चा की जानी चाहिए कि आख़िर पीएम मोदी इस नारे को ने कैसे अपनी सरकार का 'मूलमंत्र' बना लिया है? विश्लेषण इस बात का भी होना चाहिए कि पिछले 8 साल में सबका साथ सबका विकास नारा कितना जमीन पर उतरा है या कितना कामयाब रहा है? क्या वाकई मोदी सरकार के दौरान इस नारे ने राजनीति और समाज को प्रभावित किया है? अगर इसका प्रभाव पड़ा है तो कितना पड़ा है? इस बारे में सरकारी दावे क्या हैं और ज़मीनी हकीकत क्या है? जब मोदी सरकार अपने 8 साल की उपलब्धियों को लेकर अपने मंत्रियों को जनता के बीच भेज कर जोर शोर से प्रचार कर रही है तो इन सवालों के भी जवाब तलाशने की कोशिश होनी चाहिए.
विधानसभा चुनावों में बीजेपी को लगातार दूसरी बार भी जीत मिली
दरअसल 'सबका साथ, सबका विकास' नारे ने भारतीय राजनीति के पुराने ढर्रे को बदला है. 2014 में लोकसभा चुनाव में ज़बर्दस्त कामयाबी के बाद बीजेपी ने एक एक करके कई राज्यों में इसी नारे के सहारे जीत हासिल की. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के साथ विकास के लोकलुभावन नारों की वजह से बीजेपी के साथ समाज के उस तबके का भी वोट जुड़ा जो उससे पहले किसी दूसरी पार्टी को मिला करता था. 2014 में नरेंद्र मोदी के आकर्षक व्यक्तित्व और जनता के दिल को सीधे छू लेने वाली उनकी प्रतिबद्धता युक्त भाषा शैली की वजह से लोग उनसे जुड़े. उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में मोदी के तुरंत एक्शन लेने की शैली ने ज्यादातर लोगों को प्रभावित किया. इसी का नतीजा यह रहा कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को लगातार दूसरी बार भी जीत मिली.
2014 में 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे पर जीत हासिल करने के बाद मोदी ने इसे छोड़ा नहीं. बल्कि इसे अपनी सरकार का मूल मंत्र बनाने की दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कदम बढ़ाए. यही वजह है कि वह इस नारे का विस्तार करते गए. इससे एक के बाद एक राज्यों में बीजेपी की सरकारें बनती गईं और बड़ा आधार वोट बैंक बनता चला गया. भारतीय राजनीति में यह होता रहा है कि कोई पार्टी किसी एक नारे के सहारे सत्ता में आती है और अगला चुनाव किसी और नारे पर लड़ती है. यह मोदी का ही कमाल है कि 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव और हर विधानसभा चुनाव में वह अपने इसी नारे पर अडिग रहे. इसके प्रति उनकी प्रतिबद्धता का ही कमाल है कि उन्हें इसी पर हर जगह कामयाबी मिली है. ऐसा अनायास नहीं हुआ. इसके पीछे पीएम मोदी के अथक प्रयास हैं.
सितंबर 2018 में मोदी ने पार्टी के कार्यकर्ताओं के एक कार्यक्रम में कहा था, 'सबका साथ, सबका विकास' यह हमारे लिए सिर्फ एक नारा ना कभी था और न है. यह हमारा प्रेरणा मंत्र है. समाज का हर वर्ग, देश का हर कोना समाज का हर तबका यह सब हमारा अपना है. इसीलिए हमारा मानना है कि देश का विकास तभी हो सकता है जब सबका साथ हो सबका विकास हो. जब हम सब की बात करते हैं तो जो व्यक्ति भी है और इलाका भी है. इसकी एक विशेषता है कि किसी भी राजनीतिक दल में इतनी हिम्मत नहीं है कहने की जो हमने की है. बाकी दलों ने वोट बैंक की राजनीति की. हम तुम्हारे लिए यह करेंगे, हम तुम्हारे लिए वो करेंगे. ऐसे ही करते रहते रहे. ऐसे ही गप्पे हांकते रहे. किया कुछ नहीं. आंख में धूल झोंकी. चुनाव निकाल दिए. चल पड़े. हमने हिम्मत से कहा पहला काम- सबका साथ, साथ सिर्फ पोलिंग बूथ पर बटन दबाने के लिए नहीं बल्कि देश को आगे ले जाने के लिए. हमारा स्पष्ट मानना है कि जब तक सबका साथ नहीं मिलेगा तब तक सबका विकास नहीं हो सकता.'
मोदी ने अपनी इस प्रतिबद्धता को दोहराया है
2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पुराने नारे 'सबका साथ, सबका विकास' में 'सबका विश्वास' और जोड़ दिया. तब उन्होंने कहा था कि समाज के सभी तबकों का विश्वास हासिल करना सरकार का मक़सद है. 2021 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री ने इसमें 'सबका प्रयास' और जोड़ा. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सब के प्रयासों के बिना सबका विकास नहीं हो सकता. तब उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार के दौरान शुरू की गई उज्जवला योजना और आयुष्मान भारत जैसी तमाम योजनाएं सब के प्रयासों से ही ज़मीन पर उधर सकती हैं. इसलिए हमें पूरी प्रतिबद्धता के साथ शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के लिए काम करना होगा. हाल ही में एक और कार्यक्रम के दौरान मोदी ने अपनी इस प्रतिबद्धता को दोहराया है.
पिछले साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास' को संविधान की भावना का सशक्त प्रकटीकरण क़रार दिया था. तब उन्होंने कहा था, 'सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास, ये संविधान की भावना का सबसे सशक्त प्रकटीकरण है. संविधान के लिए समर्पित सरकार, विकास में भेद नहीं करती और ये हमने करके दिखाया है.' पीएम मोदी ने कहा कि आज ग़रीब से ग़रीब को भी क्वालिटी इंफ्रास्ट्रक्चर तक वही पहुंच मिल रही है, जो कभी साधन संपन्न लोगों तक सीमित थी. आज लद्दाख, अंडमान और नॉर्थ ईस्ट के विकास पर देश का उतना ही फोकस है, जितना दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों पर है. 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है. देश का गरीब देश की मुख्यधारा से जुड़ता है तो उसकी दुनिया बदल जाती है. जब ठेले वाले भी बैंक से जुड़ते हैं तो देश के बारे में सोचते हैं. विकास में भेदभाव नहीं होता. आज सबको वही सुविधा मिल रही है, जितनी पहले कुछ खास लोगों को मिलती थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इस नारे को अपनी सरकार के 8 साल के कार्यकाल के दौरान सरकारी योजनाओं में जनभागीदारी को बढ़ाकर उन्हें कामयाब बनाने के लिए इस्तेमाल किया. पीएम मोदी ने अपनी कई योजनाओं को जन आंदोलन में बदलने की कोशिश की. इसके लिए जन भागीदारी की जरूरत थी. मोदी ने जनता पर अपने असर को देखते हुए काफी हद तक इसे हासिल भी किया. स्वच्छ भारत अभियान में लोग व्यक्तिगत रूप से भी जुड़े और समूह के रूप में भी. जब मोदी ने खुद को स्वस्थ रखने के लिए योग अपनाने की अपील की तो लोगों ने योगा दिवस पर सार्वजनिक स्थलों पर बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इसी तरह घरेलू गैस पर सब्सिडी छोड़ने की अपील पर भी लाखों लोगों ने पहल करते स्वेच्छा से हुए सब्सिडी छोड़ी.
पीएम मोदी ने जन कल्याणकारी योजनाओं को शत प्रतिशत ज़मीन पर उतार कर आम लोगों तक इनका फायदा पहुंचाने के प्रति प्रतिबद्धता एक बार नहीं बल्कि कई बार दिखाई है. उसी की वजह से उनके खुद के प्रति, उनकी पार्टी बीजेपी के प्रति और उनकी सरकारों के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है. शायद यही वजह है कि 'सबका साथ, सबका विकास' नारे का जादू हर चुनाव पर सिर चढ़कर बोल रहा है. शायद इसी की वजह से जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी बीजेपी के लिए बड़ा वोट बैंक बनते जा रहे हैं. यह पीएम मोदी के इस नारे को अपनी सरकार का मूल मंत्र बनाने का ही नतीजा है.
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