शास्त्रीजी की मौत के 56 साल: आखिर क्यों रहस्य बन गई पूर्व पीएम की मृत्यु? क्यों उठे केजीबी या सीआईए पर सवाल?

इसके बाद जब शास्त्रीजी का पोस्टमार्टम नहीं हुआ तो भी उनके करीबियों को संदेह हुआ।

Update: 2022-01-11 08:48 GMT

जब शास्त्रीजी की मौत हुई तो हरिवंश राय बच्चन भी दिल्ली में ही थे, पहले विदेश विभाग के हिंदी अनुभाग में थे, फिर राज्यसभा सदस्य रहे तो उन्होंने भी अपनी आत्मकथा के चौथे भाग 'दशद्वार से सोपान तक' में उन दिनों शास्त्रीजी की मौत पर चल रही चर्चाओं बारे में लिखा है। बच्चन साहब ने इस घटना पर एक कविता भी लिखी थी, जिसकी आखिरी लाइनें थीं-

और यहां आकर तुमने चुका दिया था।''
इस घटना को 56 साल गुजर गए, लेकिन फिर भी शास्त्रीजी की मौत को लेकर उठने वाले सवाल बंद नहीं होते। दरअसल, ज्यादा दिन नहीं हुए विवेक अग्निहोत्री की मूवी 'ताशकंद फाइल्स' और अनुज धर की किताब 'यॉर प्राइम मिनिस्टर इज डैड' को आए हुए। नेताजी बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और शास्त्रीजी, इन सबकी मौत को कभी भी उनके समर्थकों ने प्राकृतिक नहीं माना और बोस को तो आज तक जिंदा मानते हैं उनके चाहने वाले। लेकिन इन सबमें शास्त्रीजी की मौत को लेकर दिलचस्पी फिल्मकारों और लेखकों की अगर अभी भी कुछ नया रचने को प्रेरित करती है, तो उसकी एक बड़ी वजह है।
दरअसल, शास्त्री जी की मौत में पाकिस्तान ही नहीं रूस और अमेरिका का भी नाम आना। अब तक अलग-अलग सोर्सेज से मिली जानकारियां जितना केजीबी की तरफ इशारा करती हैं, उतना ही सीआईए की तरफ। केजीबी के रोल को लेकर काफी कुछ 'ताशकंद फाइल्स' में दिखाया गया है। 'मित्रोखिन फाइल्स' में केजीबी के गहरे राज दफन थे और भारत में उनका कारगुजारियों के भी। कैसे इंदिरा गांधी की सरकार के 4 केबिनेट मंत्री केजीबी के पे-रोल पर थे, उन फाइल्स से पता चला। लेकिन शास्त्रीजी की मौत के मामले में सीआईए पर शक गहराया नब्बे के दशक में एक किताब छपने के बाद।
आखिर क्या है शास्त्री जी की मृत्यु के पीछे की कहानी?
नब्बे के दशक में जब ग्रेगरी डगलस नाम के एक अमेरिकी पत्रकार की किताब आई थी, तो अमेरिका में हंगामा मच गया था और भारत के कुछ तबकों में खलबली। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक ऐसे जासूस के साथ बातचीत के बाद वो किताब लिखी गई थी, जिसको खुफिया ऑपरेशंस में विशेषज्ञता हासिल थी और उसका कार्यक्षेत्र रहा था सोवियत रूस, सो रूस की बदनाम खुफिया एजेंसी केजीबी कैसे काम करती है, इसका उसे जमीनी तजुर्बा था। उसका नाम था उसका रॉबर्ट ट्रम्बुल क्राउले और वो सीआए में 1947 से काम कर रहा था। इस किताब में सीआईए के कई राज थे, पर्किंसन की चपेट में आकर मौत की दहलीज पर खड़े रॉबर्ट ने भारत को लेकर भी ग्रेगरी की इस बुक 'कन्वर्सेसंस विद द क्रो' में दो बड़े खुलासे किए। एक शास्त्रीजी की मौत के बारे में और दूसरा भारत के परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की विमान दुर्घटना में रहस्मयी मौत को लेकर।
इस किताब के मुताबिक दोनों की मौत में सीआए का रोल था। हालांकि ये खुलासे भी दबा दिए गए। इस किताब में डॉ. भाभा की हत्या के लिए प्लेन उड़ाने की बात तो विस्तार से इंटरव्यू में क्राउले ने बताई है, लेकिन उस इंटरव्यू में दो बार शास्त्रीजी का भी जिक्र आया और उससे पता चला कि सीआईए ही उनकी मौत के पीछे थी।
ये अलग बात है कि इंटरव्यू लेने वाला पत्रकार ना तो ज्यादा शास्त्रीजी को जानता था और ना उसकी उनकी मौत के रहस्य में दिलचस्पी थी, तभी ज्यादा विस्तार से नहीं पूछा। ग्रेगरी की किताब से क्राउले के इंटरव्यू के वो दो सवाल और जवाब आप यहां पढ़ सकते हैं, जिसमें भाभा की मौत के बारे में पूछा जा रहा है, लेकिन उनमें शास्त्रीजी का भी जिक्र आ जाता है-
''GD: Now, now, it's not an observation that is unexpected. Why not send him a box of poisoned candy? Shoot him in the street? Blow up his car? I mean, why ace a whole plane full of people?

RTC: Well, I call it as it see it. At the time, it was our best shot. And we nailed Shastri as well. Another cow-loving rag head. Gregory, you say you don't know about these people. Believe me, they were close to getting a bomb and so what if they nuked their deadly Paki enemies? So what? Too many people in both countries. Breed like rabbits and full of snake-worshipping twits.

I don't for the life of me see what the Brits wanted in India. And then threaten us? They were in the sack with the Russians, I told you. Maybe they could nuke the Panama Canal or Los Angeles. We don't know that for sure, but it is not impossible.
GD: Who was Shastri?
RTC: A political type who started the program in the first place. Bhabha was a genius and he could get things done so we aced both of them. And we let certain people there know that there was more where that came from. We should have hit the chinks too, while we were at it but they were a tougher target. Did I tell you about the idea to wipe out Asia's rice crops? We developed a disease that would have wiped rice off the map there and it's their staple diet. The fucking rice growers here got wind of it and raised such a stink we canned the whole thing. The theory was that the disease could spread around and hurt their pocketbooks. If the Mao people invade Alaska, we can tell the rice people it's all their fault.'
लोगों को शास्त्रीजी की ताशकंद में मौत स्वभाविक नहीं लगी।
शास्त्री जी का पार्थिव शरीर और संदेह का साया
सालों हो गए इस किताब को आए, फिर भी कभी भारत सरकार ने सीआईए के नजरिए से शास्त्रीजी की मौत की जांच की हो, कभी सुना नहीं। हालांकि एक तबका ये भी कहता है कि केजीबी से ध्यान हटाने के लिए सीआईए के पूर्व जासूस को दौलत के बल पर कुछ भी बुलवा देना केजीबी के बाएं हाथ का खेल था। कुछ और भी वजहें थीं, जिनके चलते लोगों को शास्त्रीजी की ताशकंद में मौत स्वभाविक नहीं लगी।
जब शास्त्रीजी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो सबसे पहले शास्त्रीजी की मां ने उनके शरीर का मुआयना किया और पाया कि कई जगह नीले रंग के निशान है और पेट के पास किसी हथियार से काटने का भी। उन्होंने उसी वक्त कहा था कि मेरे बिटवा को जहर दिया गया है, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी।
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ताशकंद दौरे पर शास्त्रीजी के साथ थे। ताशकंद से दिल्ली लौटने पर उनसे भी ललिता शास्त्री ने पूछा-
मुझे पता चला कि जब उनके शव पर सुरक्षित रखने के लिए लेप लगाया जा रहा था, तो वो नीला पड़ गया था?''
इतना ही नहीं ललिता जी ने उनसे शास्त्रीजी के शरीर पर लगे कुछ कट्स के बारे में भी सवाल किए।
नैयर लिखते हैं-
''मैंने कुछ भी कहने से मना कर दिया क्योंकि मैंने बॉडी नहीं देखी थी। मैं उनकी इस बात से भी चौंका कि ना ताशकंद में और ना ही दिल्ली में, कोई पोस्टमार्टम नहीं हुआ, मेरे लिए ये काफी अजीब था'। उसके कुछ दिन बाद ललिताजी शास्त्रीजी के दो सहायकों से भी गुस्सा हो गईं, क्योंकि उन्होंने शास्त्रीजी की मौत स्वभाविक नहीं थी, वाले बयान पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
इधर इस दुर्घटना के बाद 2 अक्टूबर 1970 को शास्त्रीजी की जयंती पर ललिता जी ने शास्त्रीजी की मौत पर जांच की मांग की। इतना ही नहीं उन्होंने कुक जान मोहम्मद की भूमिका पर भी संदेह किया, जो उन दिनों टीएन कौल का कुक था।
कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने जांच करवाने को लेकर मना कर दिया। फिर जब उनके रूसी बटलर का आखिरी बयान मीडिया में आया कि, उनको देर रात में केजीबी के लोगों ने जगाकर हिरासत में लिया और शास्त्रीजी की हत्या को लेकर पूछताछ की और एक गुमनाम ठिकाने पर बंद कर दिया।
रूसी सरकार और केजीबी ने इस मौत को स्वाभाविक मौत बताया था, ऐसे में इस बटलर अहमद सत्रारोव ने जब ये कहा कि केजीबी को भी हत्या का शक है, तो लोगों को केजीबी के आधिकारिक बयान में विरोधाभास देखकर संदेह हुआ। इसके बाद जब शास्त्रीजी का पोस्टमार्टम नहीं हुआ तो भी उनके करीबियों को संदेह हुआ।


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