डॉ.राम मनोहर लोहिया की 54वीं पुण्यतिथि: गोवा सत्याग्रह के महान नायक रहे लोहिया

भारत की आजादी का यह 75 वां साल है

Update: 2021-10-12 05:42 GMT

भारत की आजादी का यह 75 वां साल है। पूरा देश इस अवसर को 'अमृत महोत्सव' के रूप में मना रहा है। यह अवसर गोवा की आजादी के साठ साल और डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में शुरू हुए 'गोवा सत्याग्रह' के 75वां साल पूरा होने का भी है। इसे किस रूप में याद जाना चाहिए, यह देश को या फिर गोवा की जनता और सरकार को तय करना है।


पर आज गोवा को इस रूप में तो याद किया ही जा सकता कि यह पहला राज्य था, जो भारत मे सबसे पुर्तगालियों की सत्ता के अधीन हुआ और भारत की आजादी के चौदह साल बाद दिसम्बर 1961 में आजाद हुआ। पुर्तगाली जनरल अल्बुकर्क ने हमला करके 1510 ई में गोवा पर कब्जा किया। गोवा पर पुर्तगालियों का 451 साल राज कायम रहा।

गोवा और यूरोपीय शक्तियां
गोवा किसी यूरोपीय देश का एशिया में पहला ठिकाना बना। 8 जुलाई 1497 को वास्कोडिगामा पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से चलकर दस महीने बारह दिन में लगभग बारह हजार मिल की दूरी तय कर कालीकट के तट पर पहुंचा। वास्कोडिगामा हिंद महासागर के जिस समुद्रीय जल मार्ग से भारत पहुंचा। इस खोज ने ही दरअसल यूरोपीय देशों के लिए एशिया और दक्षिण अफ्रीका में उपनिवेश बनाने का रास्ता आसान कर दिया। दुनिया के दो विपरीत ध्रुवों पर स्थित अटलांटिक और हिन्द महासागर के समुद्रीय जल मार्ग ने यूरोपीय देशों की समृद्धि 1575 ई से 1600 ई के बीच चरम पर पहुंचा दिया।
यूरोपीय देशों की दूसरी बड़ी कंपनियां पुर्तगालियों की भारत और हिन्द महासागर के रास्ते बढ़ते व्यापारिक विस्तार को बड़ी बारीकी से देख रहीं थी।पुर्तगालियों की सारी तरकीबें पहले अपना कर और फिर उन्हें मात देकर ही फ्रांसीसी, डच, और ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में दाखिल हुई।

ये कंपनियां पहले व्यापार के बहाने और फिर साम्राज्य स्थापित करने में कामयाब हुई। इस लिए गोवा की आजादी का एक खास मतलब है। यूरोपीय उपनिवेशवाद के असली मकसद को पहचाना और उसे परास्त करने के लिए ठोस राजनीतिक पहल करना। ब्रिटिश हुकूमत से भारत के 'छुटकारे' के लिए जिस अहिंसक सत्याग्रह की राह महात्मा गांधी ने दिखाया, उसी रास्ते चलकर उनके 'कुजात अनुयायी' डॉ. राम मनोहर लोहिया नवगोवा को पुर्तगालियों के चंगुल से मुक्त कराने की मुहिम छेड़ी।

लोहिया के गोवा 'सत्याग्रह आंदोलन' का नैतिक समर्थन महात्मा गांधी ने अपने 'हरिजन' पत्रिका में लेख लिखकर भी किया। पर महात्मा गांधी चाहते थे कि गोमांतक अपनी लड़ाई खुद लड़े। इस वजह से गोवा में डॉ.राम मनोहर लोहिया के प्रवेश पर पांच साल के लगे पाबंदी के बावजूद दुबारा प्रवेश के पहले गांधी चाहते थे कि लोहिया उनसे मिलें। यहां यह भी याद रखना चाहिए कि गोवा सत्याग्रह में गांधी के अलावा कांग्रेस के दूसरे नेताओं की कोई दिलचस्पी नहीं थी। जवाहरलाल नेहरु के लिए गोवा की आजादी का मामला गाल पर उगे उस 'छोटी फुंसी 'की तरह है, जिसे देश की आजादी के बाद मसल दिया जाएगा।

डॉ.राम मनोहर लोहिया के लिए गोवा मुक्ति का आंदोलन महज पुर्तगालियों से 'छुटकारा' का ही नहीं था। गोवावासियों के आर्थिक तरक्की के उपाय भी वे बता रहे थे। उन गोववासियों को जो पुर्तगालियों के द्वारा तमाम नागरिक अधिकारों पर पाबन्दी के बावजूद अपने रंगीन- मिजाजी के तब भी मशहूर थे। उस वक्त भी पांच लाख की आबादी वाले गोवा में दुनिया के सबसे ज्यादा शराब पीने वाले रहते थे। इस पाप से पुर्तगाली सरकार को 18 लाख रुपये की आमदनी होती थी। डॉ.लोहिया उनके सामने भविष्य के गोवा का नक्शा पेश कर रहे थे।

गांधी के ग्रामस्वराज्य का मतलब और 'कोऑपरेटिवखेती' के महत्व समझा रहे थे। अन्याय के प्रतिरोध का गांधीवादी तरकीब बता रहे थे। गोवा के औद्योगिक विकास के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल का तरीका समझा रहे थे। दक्षिण भारत के लोगों के लिए रेस्तराओं और 'रेस्ट हॉउस' का विकास कर स्थानीय गोवावासियों के लिए रोजी-रोजगार उपाय सुझा रहे थे।

जर्मनी से उनके मित्र रहें डॉ.जुलियो मेनेजिस बताते हैं-
गोवा के मामले में डॉ लोहिया की दिलचस्पी 1938 में ही शुरू हो गई थी, जब गोमांतकों ने अपनी आजादी के लिए अभियान शुरू किया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आगरा जेल से रिहा होने के बाद कुछ दिन आराम करने के इरादे से डॉ.लोहिया गोवा पहुंचे।
गोवा का सत्याग्रह आंदोलन
गोवा में नागरिक अधिकारों पर पाबंदी की वजह से सभा करने, संगठन खड़ा करने , भाषण देने यहाँ तक शादी के कार्ड भी बिना सेंसर के छपवाने की पाबंदी थी। इन तमाम पाबंदियों को दर किनार कर 18 जून 1946 को डॉ.राम मनोहर लोहिया ने मड़गांव में पांच हजार लोगों के बीच भाषण दिया।

इस सभा में 'जय हिंद' और 'डॉ लोहिया जिंदाबाद' के नारे लगे। डॉ.लोहिया और मेनेजिस को गिरफ्तार कर लिया गया। पर इस सभा के बाद ही गोवा में नागरिक अधिकारों की बहाली और गोवा के सत्याग्रह आंदोलन की नींव पड़ी।

गांधी के राजनीतिक योगदान की चर्चा करते हुए आचार्य नरेंद्र देव ने कहा-
"गांधी ने भारत की आम जनता को अभय कर दिया। ठीक वहीं काम डा राम मनोहर लोहिया ने गोवावासियों के लिए किया। डॉ लोहिया ने आततायी, निरंकुश पुर्तगाली सत्ता के विरूद्ध सत्याग्रह के व्यवहारिक उपाय बता कर गोवावासियों को संघर्ष के तैयार कर किया।

गोवा में एक अरसे तक सत्याग्रह आन्दोलन चला। 8 जुलाई 1946 को जारी एक प्रेस नोट में डॉ. लोहिया कहते है-
"निःसंदेह जब हिंदुस्तान आजाद होगा, तब गोवा भी आजाद हो जाएगा। पर इस विचार में एक तरह की अकर्मण्यता और अपनी आजादी का खोने का भी खतरा है। " आगे डॉ लोहिया का सवाल है कि " गोवा उस तरह से संघर्ष करने के लिए क्यों नहीं तैयार हैं, जैसा कि सतारा और बलिया ने किया?"

बता दें कि देश की आजादी के पांच साल पहले ही बलिया ने आजादी की घोषणा कर दिया। पश्चिम बंगाल में मेदनीपुर और महाराष्ट्र में सतारा ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विद्रोह कर अपनी सत्ता कायम कर लीं थी। गोवा सत्याग्रह में भी पूरे देश के लोगों ने उसमें हिस्सा लिया था। इन नेताओं में मध्यप्रदेश के समाजवादी नेता यमुना प्रसाद शास्त्री, लखनऊ के मेयर रहें दाऊजी गुप्ता, बलिया के राम विचार पांडे और गंगा शरण सिंह, पश्चिम बंगाल बंगाल के लोकसभा सदस्य रहें त्रिदीव चौधरी आदि प्रमुख हैं।

सन् 1955 में डॉ.लोहिया के आह्वान पर गोवा आंदोलन में भाग लेने गए त्रिदीव चौधरी को बारह साल जेल की सजा सुनाई गई। फिर बाद में उन्हें 19 महीने बाद जेल से रिहा किया गया।

श्री चौधरी ने बांग्ला में 'सालाजा रेर जेले उन्नीस मासे' पुस्तक लिखीं है। इस पुस्तक का और ' एक्शन इन गोवा' का हिंदी, बांग्ला, मराठी, अंग्रेजी और कोंकणी में पुनः प्रकाशन गोवा की आजादी के साठ साल और गोवा सत्याग्रह के पचहतर साल पूरा होने पर याद स्वरूप "डॉ राम मनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन दिल्ली" की ओर किया जा रहा है।


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।


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