सरकार ने छात्रों को यह विकल्प दिया है कि यदि कोरोना से परिस्थितियां ठीक होने पर उनमें से कुछ परीक्षाएं देना चाहते हैं तो उसका भी इंतजाम हो सकता है। मगर यह विकल्प बहुत कम छात्र ही लेना चाहेंगे क्योंकि मनौवैज्ञानिक रूप से प्रत्येक छात्र स्नातक पाठ्यक्रम में जाने को उत्सुक होगा परन्तु असली दिक्कत इसी मोर्चे पर आ सकती है क्योंकि छात्रों को पास करने का फार्मूला उनके विद्यालयों के हाथ में दे दिया गया है। बिना परीक्षा के उनका परिणाम उनके पुराने रिकार्ड पर निर्भर करेगा। पिछली कक्षाओं में छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों को संज्ञान में लेते हुए परीक्षाफल घोषित किया जायेगा। जो छात्र जितना मेधावी है उसी के हिसाब से उसके प्राप्तांक होंगे।
इन्हीं प्राप्तांकों के आधार पर उसे किसी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में प्रवेश मिलेगा। इसके साथ यह भी हकीकत है कि विद्यालय से महाविद्यालय में जाने का समय छात्रों के जीवन का वह नाजुक दौर होता है जब किशोर वय समाप्त होकर युवावस्था शुरू होती है और जमीनी हकीकत ज्यादा उजागर होती है मगर अपने सपनों में मगन रहने का समय भी यही होता है। युवाओं के इन सपनों से ही देश आगे भी बढ़ता है। हालांकि सरकार ने सारी देखरेख के लिए एक समिति बनाने का भी फैसला किया है मगर इस समिति को समग्रता में छात्रों का भविष्य तय करना होगा। स्कूलों पर ही छात्रों का आंकलन करने का जिम्मा छोड़ने से सबसे पहला सवाल स्कूलों की गुणवत्ता पर ही खड़ा होगा।
अर्थात स्कूलों का भी आंकलन करने की जरूरत पड़ेगी। इनकी श्रेणियां बनाने का काम भी करना होगा। यह कार्य नवगठित समिति की ही देखरेख में विशेषज्ञ उपसमिति द्वारा किये जाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी। यह इसलिए जरूरी होगा कि स्कूलों की श्रेष्ठता के आधार पर ही छात्रों की मेधा और प्रतिभा का आंकलन विश्वविद्यालय व महाविद्यालय करेंगे। यह बहुत स्वाभाविक है क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय किसी तीसरे दर्जे के छात्र की जगह प्रतिष्ठित स्कूल के विद्यार्थी को वरीयता देना चाहेगा। जबकि स्वयं ही छात्रों का आंकलन करने के लिए अधिकृत हुए स्कूलों की कोशिश हो सकती है कि उनके छात्रों को अधिकाधिक अंक मिलें क्योंकि यह आंतरिक आंकलन ही होगा।
इसी विसंगति को रोकने के लिए जरूरी होगा कि स्कूलों के भी पुराने परीक्षाफल के रिकार्ड के आधार पर उनका वर्गीकरण करके ए बी सी डी श्रेणियां बनाई जायें। ऐसा इसलिए जरूरी होगा क्योंकि छात्रों की योग्यता का पैमाना अब एक ही परीक्षा में प्राप्तांक नहीं बल्कि उनके स्कूलों द्वारा दिये गये अंक होंगे। जिनके पढ़ाई के स्तर एक समान नहीं हैं। इन स्कूलों की योग्यता किस पैमाने पर तय हो इसका भी आंकलन करना जरूरी हो जायेगा। दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा है कि स्नातक प्रवेश के लिए वह किसी प्रकार की परीक्षा नहीं लेगा और स्कूलों द्वारा दिये गये अंकों का ही संज्ञान लेगा। इसमें एक और सवाल विश्वविद्यालयों के ही वर्गीकरण का भी है। देश में इस समय विश्वविद्यालयों की भी बाढ़ आयी हुई है।
इनकी श्रेणियां भी कमोबेश विभिन्न स्रोतों से तय होती रहती हैं। हमें देखना यह होगा कि मेधावी छात्रों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो और आंतरिक आंकलन प्रणाली में किसी प्रकार का भेदभाव न हो। जरूरी नहीं कि 11वीं कक्षा अथवा 12वीं की स्कूली त्रैमासिक अथवा अर्ध मासिक परीक्षा में कम नम्बर लाया छात्र प्रतिभावान न हो। हो सकता है कि वह अपनी वार्षिक परीक्षा में बेहतर नम्बर लाने के लिए रात- दिन लगा हुआ रहा हो । स्कूली शिक्षकों को छात्र का समग्रता में मूल्यांकन करना चाहिए और इसका विवरण नतीजा कार्ड में देना चाहिए। इसी प्रकार किसी अनजान स्कूल में पढ़ने वाला कोई छात्र अत्यधिक प्रतिभाशाली हो सकता है। उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का परिचय देना भी शिक्षकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए। यह सारा कार्य नव गठित शिक्षा समिति को ही देखना होगा जिससे प्रत्येक छात्र के साथ न्याय हो सके और उसका भविष्य उज्जवल रह सके। बच्चों के व्यावहारिक ज्ञान की परख अच्छे ढंग से करने की शुरूआत करती है तो परीक्षाएं रद्द करना स्वागत योग्य कदम है।