बोटाद जिले की इस घटना ने एक बार फिर सरकार और पुलिस प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इसलिए कि इससे पहले जब-जब ऐसी घटनाएं हुर्इं हैं, उनसे कोई सबक नहीं लिया गया। जैसा कि पुलिस बता रही है कि इस जिले के रोजिद गांव में जहरीली शराब बनाने का काम चल रहा था। इसके लिए मिथाइल अल्कोहल अमदाबाद से लाया जाता था। लेकिन हैरत की बात यह है कि पुलिस को आज तक इसकी भनक भी नहीं लगी! इससे पता चलता है कि राज्य की पुलिस कैसे काम कर रही है? उसका खुफिया तंत्र कितना लचर है जिसको यह भी पता नहीं कि जिलों से लेकर गांवों में चल क्या रहा है।
ऐसा भी नहीं कि अवैध शराब का कारोबार केवल एक ही गांव में चल रहा होगा! अगर यह कांड नहीं हुआ तो यह धंधा चलता रहता। जैसी कि खबरें आई हैं, जिस गांव में यह हादसा हुआ है, उस गांव के सरपंच ने पुलिस को गाव में चल रहे शराब के अवैध कारोबार के बारे में शिकायत भी की थी, लेकिन पुलिस ने उन्हें ही थाने में बुला कर धमका दिया था। जाहिर है, बिना पुलिस और शराब माफिया की मिलीभगत के इस तरह के गैरकानूनी धंधे चल नहीं सकते।
याद किया जाना चाहिए कि जुलाई 2009 में भी जहरीली शराब से अहमदाबाद में एक सौ तीस से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके पहले 1989 में राज्य के वड़ोदरा शहर में भी जहरीली शराब ने एक सौ बत्तीस लोगों की जान ले ली थी। छोटी-मोटी घटनाओं की तो गिनती भी नहीं हो सकती। बहुत से मामले तो उजागर भी नहीं हो पाते। लेकिन इतने बड़े-बड़े जहरीली शराब कांडों के बाद भी अगर सरकारें ऐसे अवैध धंधों को रोक नहीं पाती हैं तो इसे घोर नाकामी, लाचारी और बेशर्मी से ज्यादा क्या कहा जाए?
अगर माफिया और अवैध धंधे करने वालों को राजनीतिक और पुलिस संरक्षण के आरोप लगते हैं तो वे बेवजह नहीं लगते। जब-जब ऐसे बड़े कांड हुए, तब-तब विशेष जांच दल से लेकर बड़े जांच आयोग भी बने। सबने अपनी रिपोर्ट भी दीं। लेकिन किसी भी गंभीरता के साथ काम हुआ हो, ऐसा लगता नहीं। वरना न तो शराब माफिया और पुलिस का गठजोड़ कायम रह पाता और न ही भविष्य में ऐसी दुखद घटनाएं फिर से हो पातीं। इसलिए बोटाद जिले की इस घटना ने 'गुजरात माडल' पर एक बार फिर प्रश्नचिह्न लगाया है।
JANSATTA