गौर करने की बात है कि यूक्रेन दुनिया के लिए रोटी की एक टोकरी है। वह गेहूं, जौ, मक्का और सूरजमुखी का एक प्रमुख निर्यातक है। युद्ध शुरू होने के बाद निर्यात लगभग ठप था। अनाज का एक और बड़ा निर्यातक रूस भी है, उसे भी अनाज के निर्यात में मुश्किलें आने लगीं। खास बात यह है कि रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया को 29 प्रतिशत अनाज की आपूर्ति करते हैं। एकबारगी वैश्विक अनाज बाजार में 29 प्रतिशत की कमी बहुत मायने रखती है। नतीजा यह हुआ था कि विश्व बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतें तेजी से बढ़ीं, मिसाल के लिए, मई में गेहूं की कीमत फरवरी की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत अधिक हो गई। किसी तरह से कीमतें इधर कुछ संभली हैं, लेकिन अनाज भंडार का अभाव होने लगा है। अत: आपूर्ति सामान्य करने के लिए खासकर रूस को राजी करना जरूरी था। पश्चिमी देश यह आरोप लगा रहे थे कि रूस अनाज-आपूर्ति रोककर दुनिया का भयादोहन कर रहा है। रूस को भी यह अवश्य ध्यान होगा कि अनाज का यदि ज्यादा अभाव हुआ, तो इससे उसकी लोकप्रियता में तेजी से कमी आएगी। आम लोगों का गुस्सा रूस पर फूटेगा, अत: रूस ने राजी होकर एक चतुराई का ही परिचय दिया है। दुनिया के तमाम देशों को यह ध्यान रखना चाहिए कि भूख दूर करना सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर कहीं कोई भूख से मर रहा है, तो विकसित देशों के लिए भी यह शर्म की बात है।
ध्यान रहे, संयुक्त राष्ट्र ने संभावित अकाल और राजनीतिक अशांति की चेतावनी दी थी। इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी के पूर्वी अफ्रीका के आपातकालीन निदेशक शाश्वत सराफ ने कहा है कि इन अवरोधों के हटने से पूर्वी अफ्रीका में 1.80 करोड़ से अधिक लोगों को भूख से लड़ने में तत्काल मदद मिलेगी। इस क्षेत्र में 30 लाख लोग पहले से ही भयावह भूख की स्थिति का सामना कर रहे थे। आईपीसी के अनुसार, दुनिया के 34 से ज्यादा देशों में लाखों लोग अकाल के कगार पर हैं। साल 2022 पहले ही अकाल वर्ष जैसा घोषित है और अगला साल भी बिगड़ने की आशंका है। यह समूचे सभ्य मानव समाज के लिए चिंता की बात है कि 21वीं सदी में भी लोग दो-वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। विज्ञान से जो सहूलियत हमें हासिल हुईं, उन्हें युद्ध छीन रहा है। जो देश युद्ध को परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से भड़काने में लगे हैं, उन्हें फिर सोचना चाहिए कि आज दुनिया के लिए ज्यादा जरूरी क्या है।
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