संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन

Update: 2022-07-17 07:55 GMT

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पुर्तगाल और केन्या की संयुक्त मेजबानी में गत 27 जून से एक जुलाई के बीच पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में आयोजित 'संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन' कई मायनों में खास रहा। वर्ष 2017 के बाद यह दूसरा मौका था, जब सैकड़ों देशों ने एक मंच पर आकर महासागरों को खतरे से बाहर निकालने के लिए एकजुटता दिखाई। इस सम्मेलन में महासागरीय विज्ञान का महत्व रेखांकित किया गया और वैज्ञानिक नवाचार बढ़ाने की बात भी कही गई। सम्मेलन में सहभागी देशों ने महासागरों की रक्षा के लिए एक नए राजनीतिक घोषणापत्र पर सहमति जताई है। 'लिस्बन घोषणापत्र' नामक इस संयुक्त उद्घोषणा के जरिये सदस्य देशों ने महासागरों के संरक्षण और उसकी जीवंतता बरकरार रखने के लिए प्रदूषण पर नियंत्रण, कार्बन उत्सर्जन में कमी और महासागरीय परितंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली मानवीय गतिविधियों पर अंकुश लगाने की प्रतिबद्धता जताई है।

महासागरों की वर्तमान स्थिति में सुधार के लिए विभिन्न देशों ने कई स्वैच्छिक संकल्प भी लिए हैं। इनमें 2040 तक कार्बन तटस्थता हासिल करना, प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाना, नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाना तथा महासागर अम्लीकरण से निपटने के उपायों पर शोध, जलवायु में सुधार संबंधी योजना बनाना और निगरानी के लिए पर्याप्त निवेश करना आदि शामिल हैं। महासागरों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021-2030 की अवधि को 'महासागर दशक' घोषित किया है। इस दौरान स्वच्छ और स्वस्थ महासागर बनाने के लिए लोगों को जागरूक किया जाना है। महासागरों, सागरों और जलीय संसाधनों का संरक्षण टिकाऊ विकास (एसडीजी) के 14वें लक्ष्य के रूप में भी समाहित है, जिसे 2030 तक हासिल करना है।
मानवीय गतिविधियों के कारण महासागर आज गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग, समुद्री जल के अम्लीकरण, कचरे के ढेर, संसाधनों के अति दोहन, प्रवाल विरंजन और प्रदूषण के चलते महासागरों की नैसर्गिक सुंदरता और गुणवत्ता दिनोंदिन क्षीण होती जा रही है। महासागरों के लगातार गर्म होने से समुद्री जीवों और वनस्पतियों का जीवन तबाह हो रहा है। इससे समुद्र का जलस्तर तो बढ़ ही रहा है, तटीय आबादी के लिए भी यह एक भावी खतरा है। महासागर दुनिया के आधे से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं और वायुमंडल में निहित कुल कार्बन डाई-ऑक्साइड के करीब 30 फीसदी हिस्से को अवशोषित कर लेते हैं। इस तरह ये वातावरण की अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर पृथ्वी के ताप को नियंत्रित करने और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से आबादी को बचाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। महासागर पृथ्वी के फेफड़े और कार्बन सिंक, दोनों की भूमिका निभाते हैं। हालांकि उनकी यही विशेषता उनके लिए काल बनती जा रही है।
दरअसल, वातावरण से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के कारण समुद्री जल का तेजी से अम्लीकरण हो रहा है। अनुमान है कि इस सदी के खत्म होने तक महासागरों की अम्लता में 100 से 150 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इससे महासागरों की जैव विविधता प्रभावित होगी, जिसका असर मानव जीवन के विविध क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। महासागरों में कचरे के बढ़ते ढेर ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। हर दिन लगभग 80 लाख टन कचरा समुद्र में फेंका जाता है। समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक की मात्रा ने भी समुद्री परितंत्र को प्रभावित किया है। वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक और उसके टुकड़ों की संख्या अधिक होने की आशंका है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर में हर साल लगभग एक करोड़ दस लाख टन प्लास्टिक कूड़ा-कचरा समुद्रों में बहा दिया जाता है। लिस्बन में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन स्थल पर समस्त एकल-उपयोग प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था, ताकि दुनिया को ठोस संदेश दिया जा सके। चूंकि महासागरों के साथ सभी जीवों का अस्तित्व जुड़ा है, ऐसे में, वैश्विक समुदाय को इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। महासागरों को पहुंच रही क्षति से निपटने के लिए दुनिया को तत्काल कार्रवाई करनी होगी। amarujala

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