तकनीक के दौर में सोशल व डिजिटल मीडिया अहम

Update: 2022-07-01 12:53 GMT

जनता से रिश्ता : आज के इस संकट और तकनीक के दौर में सोशल मीडिया की अहमियत काफी बढ़ गई है। ऑनलाइन पेमेंट हो या खरीदारी, संक्रमण काल में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हो या वर्क फ्रॉम होम नेट ने सभी को कनेक्ट कर रखा है। ऐसे में हर हाथ में संकट से उबरने के साथ-साथ तकनीक के लिए मोबाइल का इस्तेमाल बड़ा औजार साबित हुआ है। इस औजार पर महज पांच सौ-हजार रुपये के पैकेज से घर की दहलीज लांघे बगैर दुनिया मुट्ठी में यानी नेट- टु-कनेक्ट।इसी कनेक्टिविटी के दौरान मोबाइल पर औसतन हर मिनट एक टन की आवाज यानी व्हाट्सएप संदेश, फेसबुक नोटिफिकेशन। यदि गौर करें तो इस नोटिफिकेशन में सौ में औसतन 90-95 फिजूल के संदेश।

गांधी, गोडसे, सावरकर, हिंदी-ऊर्दू, हिंदू-मुसलमान या धर्मविशेष के खिलाफ कटुता वाले कई संदेश। अपने-अपने मतलब के लिहाज से इन्हीं संदेशों का सीजफायर (फारवर्ड करने का चलन)। यही रवैया सोशल मीडिया को असामाजिक बनाता है। फेसबुक, व्हाट्सएप ग्रुप, ट्विटर पर धड़ल्ले से कटुता वाले ई कचरा फैलाए जाते हैं। इनसे वैमनस्यता बढ़ती है। और यहीं से शुरू होती है सरकारी चिंता।
डिजिटल मीडिया की सरकारी चौकीदारी
अब डिजिटल मीडिया पर भी केंद्र सरकार की निगरानी हो चुकी है। ऑनलाइन न्यूज, फिल्में और वेब सीरीज अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन हैं। सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय की अब महज तकनीक पर नहीं बल्कि सामग्री (कंटेंट) पर भी नजर रहेगी।
केंद्र ने सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय में राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (एनसीसीसी) निदेशक को ऑनलाइन कंटेंट ब्लॉक करने का निर्देश जारी करने का अधिकार दिया है। आईटी एक्ट की धारा 69 और 69 ए के प्रावधानों के तहत किसी ऐसी जानकारी को रोकने का निर्देश दिया जा सकता है जो देश की रक्षा, अखंडता, संप्रभुता को प्रभावित करती हो।
क्या कहता है कानून?
यूं तो सुप्रीम कोर्ट में 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 66 ए को असांविधानिक करार दिया गया जिसमें किसी की भी गिरफ्तारी का मनमानी अधिकार नहीं। केरल के संदर्भ में यदि देखें तो 118 ए से पहले 118 डी को निरस्त किया जा चुका है। लेकिन पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि हाल के दिनों में जिस चीज का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है, वह है अभिव्यक्ति की आजादी।
सुप्रीम कोर्ट ने तो केंद्र सरकार से यहां तक कहा कि सोशल मीडिया को लेकर दिशा-निर्देश की सख्त जरूरत है, ताकि भ्रामक जानकारी देने वालों की पहचान हो सके, उन पर कार्रवाई हो सके। अदालत ने चिंता जताई कि हालात यह हैं कि यह हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं, अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल नफरत का बीज बोने के लिए नहीं होना चाहिए।
ऐसे में अब यदि सरकारें भी चिंतित हो रही हैं तो चिंता वाजिब है, चाहे वह केरल की लाल सलाम सरकार हो या भाजपा शासित भगवा सरकारें या केंद्र की सरकार। क्या हमें महज सरकार के भरोसे ही रहना चाहिए।
source-amarujala


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