यह कहा जा रहा है कि भारत में करोड़ों गरीब, पिछड़े एवं कम आय वाले लोगों को अर्थव्यवस्था के औपचारिक माध्यम में शामिल करके उन्हें डिजिटल माध्यम के जरिये पारदर्शी ढंग से वित्तीय और बैंकिंग सेवाओं की सरल उपलब्धता सुनिश्चित किए जाने से आम आदमी तक सब्सिडी, वित्तीय सेवा, राशन, प्रशासनिक तथा स्वास्थ्य सेवाओं सहित कई बहुआयामी सुविधाएं बिना मध्यस्थों के पहुंच रही हैं।दुनिया भर में यह भी रेखांकित हो रहा है कि भारत में आम आदमी और छोटे कारोबारियों को छोटी रकम के सरल कर्ज देकर उनके जीवन को आसान और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में सूक्ष्म वित्त क्षेत्र का सकल ऋण पोर्टफोलियो (जीएलपी) तेजी से बढ़ रहा है। 16 जून को प्रकाशित माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (एमएफआईएन) के नए आंकड़ों के मुताबिक, जीएलपी 31 मार्च, 2022 तक 10 प्रतिशत बढ़कर 2,85,441 करोड़ रुपये हो गया, जो 31 मार्च, 2021 तक 2,59,377 करोड़ रुपये था।
खास बात यह भी है कि सूक्ष्म वित्त उद्योग से बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इसके तहत मार्च, 2022 में ऋण खाते बढ़कर 11.31 करोड़ हो गए, जो मार्च, 2021 में 10.83 करोड़ थे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) ने देश में वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। देश में लागू की गई विभिन्न वित्तीय समावेशन योजनाओं से देश का आम आदमी कितना लाभान्वित हो रहा है, इसका आभास भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) इकोरैप के द्वारा प्रकाशित भारत में वित्तीय समावेशन शोध रिपोर्ट, 2021 से लगाया जा सकता है।इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अब वित्तीय समावेशन के मामले में जर्मनी, चीन और दक्षिण अफ्रीका से आगे है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जनधन योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग की तस्वीर बदल दी है। जिन राज्यों में प्रधानमंत्री जनधन योजना खातों की संख्या ज्यादा है, वहां अपराध में गिरावट देखने को मिली है। यह भी देखा गया है कि अधिक बैंक खाते वाले राज्यों में शराब और तंबाकू उत्पादों जैसे नशीले पदार्थों की खपत में महत्वपूर्ण एवं सार्थक गिरावट आई है।
निस्संदेह देश के गरीब एवं कमजोर वर्ग के अधिकांश लोग वित्तीय समावेशन का लाभ लेने के लिए आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन वित्तीय समावेशन की डगर पर कई बाधा और चुनौतियां भी दिखाई दे रही हैं। अब भी बड़ी संख्या में जनधन खाते निष्क्रिय पड़े हुए हैं। देश में डिजिटल बुनियादी ढांचा कमजोर है। डिजिटल लेन-देन की बुनियादी जरूरत-कंप्यूटर और इंटरनेट बड़ी संख्या में लोगों की पहुंच से दूर हैं।वित्तीय लेन-देन के लिए बड़ी संख्या में लोग डिजिटल भुगतान तकनीकों से अपरिचित हैं। छोटे गांवों में बिजली की पर्याप्त पहुंच नहीं है। साथ ही मोबाइल ब्रॉडबैंड स्पीड के मामले में भी देश अभी बहुत पीछे है। उम्मीद की जा सकती है कि पोर्टल जन समर्थ के तहत शामिल नौ मंत्रालयों की 13 विभिन्न योजनाओं के साथ-साथ देश में लागू विभिन्न वित्तीय समावेशी विकास योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन से देश के गरीब व कमजोर वर्ग के करोड़ों लोगों को वित्तीय राहत, सुविधा और सुरक्षा मिल सकेगी। इससे देश में आर्थिक-सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास का नया अध्याय शुरू हो सकता है।