'कमल'-कैप्टन के समीकरण

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुलाकात का एकदम निष्कर्ष यह नहीं है

Update: 2021-10-01 05:53 GMT

दिव्याहिमाचल.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुलाकात का एकदम निष्कर्ष यह नहीं है कि वह भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं अथवा अपनी पार्टी बनाकर राजग (एनडीए) का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन यह कोई सामान्य राजनीतिक मुलाकात भी नहीं है। यह दौर ऐसा है, जब कांग्रेस के भीतर से ही कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। बल्कि कपिल सिब्बल सरीखे वरिष्ठ कांग्रेसी ने पार्टी को 'अध्यक्षहीन' करार दिया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस की बीते 28 माह से अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाने की मांग की है। पंजाब में चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस बिखराव की स्थिति में है। यह भी सामान्य राजनीतिक घटनाक्रम नहीं है। कैप्टन भी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं। यदि किसी भी स्तर पर भाजपा के साथ उनका तालमेल और गठजोड़ होता है, तो उसके पहले मायने होंगे कि कांग्रेस से उनके समझौते की संभावनाएं समाप्त हैं। आसार भी ऐसे ही हैं। कैप्टन आहत और अपमानित महसूस कर रहे हैं। बेशक भाजपा केंद्र सरकार में उन्हें कोई मंत्री पद न दे। यह संभव भी नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने ही एक फॉर्मूला स्थापित किया था कि 75 साल की उम्र के बाद कोई मंत्री, मुख्यमंत्री और कार्यकारी पद नहीं दिया जाएगा।
कैप्टन की उम्र भी 79 साल को पार कर चुकी है, लेकिन उन्हें फिर भी बहुत कुछ देकर अपने पाले में लाया जा सकता है। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल समापन की ओर है। यदि मौजूदा उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु को पदोन्नत कर राष्ट्रपति बनाया जाता है, तो कैप्टन को वह पद दिया जा सकता है। कमोबेश राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भाजपा और कैप्टन लगभग 'सहोदर' रहे हैं। कैप्टन अल्पसंख्यक भी हैं। हम सिर्फ संभावनाओं की व्याख्या कर रहे हैं। सूत्रों की ख़बर है कि कैप्टन के भाजपा की तरफ आने की चर्चा भी शीर्ष मुलाकात के दौरान की गई है। बहरहाल गृहमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री की 50 मिनट से भी ज्यादा मुलाकात महज शिष्टाचारवश नहीं हो सकती। उसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं। कैप्टन और किसानों के रिश्ते बेहद सौहार्द्रपूर्ण रहे हैं। कैप्टन अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष भी हैं। ज्यादातर किसान जाट, जटसिख और सिखों के विभिन्न समुदायों से ही आते हैं। किसान आंदोलन काफी लंबा खिंच चुका है। मुख्यमंत्री रहते हुए कैप्टन ने गन्ने का खरीद मूल्य 35 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया था। विधानसभा से समानांतर कृषि बिल भी पारित कराया था। यदि अब गंभीर प्रयास किए जाते हैं, तो कैप्टन भारत सरकार और आंदोलित किसानों के बीच 'सेतु' की भूमिका निभा सकते हैं। 2022 में आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। अधिकतर में भाजपा की ही सरकारें हैं। किसान आंदोलन भाजपा के समीकरण बिगाड़ सकता है, लिहाजा कैप्टन के जरिए किसानों को साधने की कोशिश की जा सकती है। कैप्टन किसानों को भरोसा दिला सकते हैं कि वह उनके पैरोकार हैं। विवादित कानूनों को डेढ़-दो साल के लिए स्थगित किया जा सकता है।
अब भी सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी, 2021 से रोक लगा रखी है। एमएसपी को कानूनी दर्जा दिए जाने पर सरकार गंभीर मंथन कर ही रही है। कैप्टन के मुताबिक, उन्होंने गृहमंत्री से आग्रह किया है कि केंद्र सरकार इन मुद्दों पर अविलंब निर्णय करे। गौरतलब यह भी है कि पंजाब में भाजपा के पास कोई कद्दावर और स्वीकार्य नेता नहीं है। अभी तक भाजपा बुजुर्ग अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल की 'छत्रछाया' में ही कुछ सीटें जीतती रही है। पूरा हिंदू वोट बैंक भी भाजपा के साथ नहीं है। यदि चुनाव में भाजपा को कैप्टन का सक्रिय समर्थन मिलता है और कुछ कांग्रेस विधायक पाला बदल कर भाजपा में आते हैं, तो पंजाब का चुनाव दिलचस्प हो सकता है। हिंदू, जटसिख और दलित वोटों में तीव्र धु्रवीकरण देखा जा सकता है। पंजाब जैसा ही भाजपा का राजनीतिक आधार हरियाणा में था, लेकिन बीते दो कार्यकाल से भाजपा सरकार में है। गृहमंत्री और कैप्टन का संवाद किसी निष्कर्ष तक पहुंचता लगेगा, तो बाद में प्रधानमंत्री मोदी से भी कैप्टन की बात हो सकती है। इस राजनीतिक परिदृश्य पर निगाह रखना बेहद जरूरी है। अब कैप्टन ने यह घोषणा भी कर दी है कि वह कांग्रेस में नहीं रहेंगे। जिस तरह कांग्रेस में उनकी उपेक्षा हुई, उससे वह नाराज हैं। यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी क्षति है कि उसका एक होनहार नेता पार्टी को छोड़ने जा रहा है।
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