शरजील इमाम ने किया हाई कोर्ट का रुख, राजद्रोह पर SC के आदेश का दिया हवाला, आज अंतरिम जमानत पर सुनवाई संभव
2019 में संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजील इमाम ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 2019 में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर भड़काऊ भाषण (Inflammatory Speech Case) देने के मामले में गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है (Sharjeel Imam Interim Bail Application). इमाम ने देश में राजद्रोह की सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए अंतरिम जमानत के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है (Delhi High Court). जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की पीठ मंगलवार को इमाम की अर्जी पर सुनवाई कर सकती है.
इमाम ने पहले से लंबित अपनी जमानत याचिका में अंतरिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की है. अधिवक्ता तालिब मुस्तफा, अहमद इब्राहिम और कार्तिक वेणु के माध्यम से अर्जी दायर की गई है. अर्जी में कहा गया है कि इमाम की जमानत खारिज करने का अदालत का आदेश मुख्य रूप से इस पर आधारित है कि उसके खिलाफ मामला राजद्रोह के आरोप के तहत उपयुक्त पाए जाने के मद्देनजर विशेष अदालत के पास दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 437 के अनुसार वर्णित सीमाओं में जमानत देने की कोई शक्ति नहीं है.
"इमाम की निरंतर कैद न्यायसंगत नहीं"
अर्जी में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर, विशेष अदालत के आदेश में वर्णित अड़चनें खत्म हो जाती हैं और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए (राजद्रोह) के तहत अपराध के लिए टिप्पणियों को अपीलकर्ता (इमाम) के खिलाफ कार्यवाही में ध्यान में नहीं रखा जा सकता है. अर्जी में कहा गया कि इमाम लगभग 28 महीने से जेल में है, जबकि अपराधों के लिए अधिकतम सजा, जिसमें 124-ए शामिल नहीं है, सात साल कैद है. अर्जी में कहा गया है कि इमाम की निरंतर कैद न्यायसंगत नहीं है और इस अदालत का हस्तक्षेप अपेक्षित है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को एक अभूतपूर्व आदेश के तहत देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कोई उचित सरकारी मंच इस पर पुनर्विचार नहीं कर लेता. शीर्ष अदालत ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को आजादी के पहले के इस कानून के तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के निर्देश भी दिये थे.