New Delhi: दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन ऑफ कॉलेजिज प्रो. बालाराम पाणि ने दिल्ली विश्वविद्यालय वीमेंस एसोसिएशन के सेमिनार हाल में शिक्षा और महिला कल्याण के क्षेत्र में सराहनीय सेवाओं और उल्लेखनीय योगदान देने वाली देशभर की 30 विदुषी महिला शिक्षाविदों / समाजसेवियों को द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय सावित्रीबाई फुले अवार्ड से सम्मानित किया गया । इस वर्ष का द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय सावित्रीबाई फुले अवार्ड कालिंदी कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. मीना चरांदा को दिया गया । सम्मान स्वरूप उन्हें 11 हजार रुपये , शॉल , स्मृतिचिन्ह , प्रशस्ति पत्र , पटका दिया गया ।
इसके अलावा डूटा अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार भागी , संसद टीवी एंकर डॉ. मनोज वर्मा , संयुक्त कुलानुशासक प्रो.गीता सहारे , पूर्व विभागाध्यक्ष अंग्रेजी प्रो.अनिल अनेजा , हिंदी विभाग से प्रो. मंजू मुकुल कांबले , पीजीडीएवी कॉलेज के प्रो. मनोज कुमार कैन , प्रो.संदीप , प्रो. बलदेव सिंह चौहान , डीटीयू के प्रो.जयगोपाल शर्मा , जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रो.शक्ति कुमार , प्रो. अरविंद कुमार , प्रो.प्रीतम शर्मा , पोस्ट डॉक्टरल डॉ.धर्मबीर यादव गगन , महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के डॉ. हरिओम दहिया , डॉ.निर्मला , डॉ. के. योगेश, स्टार सवेरा के सम्पादक डॉ. बलवान सिंह बबियाण , उत्तर प्रदेश से डॉ .बबलू सिंह , राष्ट्रीय कवयित्री प्रीति चौधरी , डाइट दिल्ली से डॉ .पवन कुमार , हैदराबाद से डॉ .टी विष्णु मुर्थि , श्रीमती अरुणा दासरी आदि को अंतर्राष्ट्रीय सावित्रीबाई फुले अवार्ड राष्ट्रीय से सम्मानित किया गया। समारोह का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय माता सावित्रीबाई फुले शोध संस्थान, नई दिल्ली के तत्वावधान में किया गया। संस्थान के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन के अनुसार सम्मान स्वरूप सभी को शॉल , स्मृति चिन्ह , प्रशस्ति पत्र , अंग वस्त्र आदि भेंट किये गए ।
समारोह का उद्घाटन मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन ऑफ कॉलेजिज प्रो. बालाराम पाणि ने सावित्रीबाई फुले के चित्र पर माल्यार्पण कर किया । अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय भौतिकी विभाग में प्रोफेसर पी. डी. सहारे ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष श्री सुभाष चंद्र कानखेड़िया थे । इसके अलावा प्रो.के पी सिंह , सुश्री पल्लवी प्रियदर्शिनी , डॉ.संदीप कुमार , डॉ.जयप्रताप सिंह , डॉ.ऋषि रंगा आदि भी उपस्थित थे । कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रचार सचिव शिक्षाविद् डॉ. के. योगेश ने किया।
मुख्य अतिथि प्रो. बालाराम पाणि ने अपने संबोधन में कहा कि माता सावित्रीबाई फुले एक महान समाज सुधारक थीं , इन्होंने स्त्रियों की शिक्षा , समाज में फैली धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ लगातार संघर्ष किया । इनका सम्पूर्ण जीवन शिक्षाऔर समाज को समर्पित था । उन्होंने विषम परिस्थितियों में समाज में व्याप्त कुरीतियों के विपरीत जाकर स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाया , उनका जीवन संघर्ष निश्चित ही आज की महिलाओं के लिए प्रेरणा देता है , संसाधनों के अभाव में भी वह स्त्री शशक्तिकरण के लिए दृढ़ता से लड़ती रही । प्रो.पाणि ने आगे कहा कि सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका है जिन्होंने 1848 में पहला बालिका विद्यालय खोला जिसमें 9 बालिकाओं ने प्रवेश लिया । वे इस विद्यालय की पहली अध्यापिका और प्राचार्या रही । इसलिए उन्हें भारत की आधुनिक बालिका शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली शिक्षिका कहा जाता है । उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया उसी तरह से आज के हमारे शिक्षकों को भी उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और संकल्प लेना चाहिए कि हमें अपने घर व आसपास रहने वाली बालिकाओं को पढ़ाना है । यदि एक महिला पढ़ती है तो पूरा परिवार पढ़ता है इसलिए हमें बालिका शिक्षा पर ध्यान चाहिए ताकि वर्तमान पीढ़ी शिक्षा से वंचित न रहे ।
विशिष्ट अतिथि श्री सुभाष चंद्र कानखेड़िया ने कहा कि महाराष्ट्र में बालिकाओं के लिए विद्यालय खोलने व उन्हें शिक्षा दिलाने में माता सावित्रीबाई फुले के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता । वह स्त्री शिक्षा का काम ऐसे समाज के लिए कर रही थीं जो पूरी तरह से शिक्षा से वंचित रहा । उन्होंने कहा कि आज जिन्हें सावित्रीबाई फुले सम्मान मिला है वे अपने- अपने क्षेत्रों में जाकर बालिका शिक्षा के लिए कार्य करें । उन्होंने बताया कि यह फुले दम्पत्ति की ही देन है कि उच्च शिक्षा में सर्वाधिक बालिका पढ़ रही हैं , यदि वह इनके लिए विद्यालय नहीं खुलती तो आधी आबादी शिक्षा से दूर रहती , इसलिए समाज को उनका ऋणी रहना चाहिए ।
संस्थान के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने अपने संबोधन में माता सावित्रीबाई फुले के सामाजिक महत्व को बताते हुए मुख्य रूप से स्त्री शिक्षा , स्त्री सशक्तिकरण , रोजगार में स्त्री की भूमिका और समाज में स्त्रियों की स्थिति पर अपने विचार रखे । उन्होंने वर्तमान परिदृश्य में शैक्षिक पाठ्यक्रमों में माता सावित्रीबाई फुले को पढ़ाना चाहिए जिससे बालक / बालिका उनसे प्रेरित हो , इसके साथ ही समाज में स्त्रियों के प्रति नवीन दृष्टिकोण पैदा हो । डॉ. सुमन ने प्रो.पाणि के समक्ष उनके नाम पर दिल्ली विश्वविद्यालय में कॉलेज खोलने का प्रस्ताव रखा । साथ ही उनके नाम पर उनके नाम पर शिक्षा केन्द्र तथा पीठ की स्थापना की जाए । डॉ.सुमन ने अपने संबोधन में कहा कि वह अपने शोध संस्थान के माध्यम से यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर सावित्रीबाई फुले को स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाए , इनपर शोधकर्ताओं द्वारा शोध हो ताकि वर्तमान पीढ़ी को पता चले कि उन्होंने कितना कष्ट सहकर बालिका शिक्षा के लिए काम किया ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो.पी.डी. सहारे ने कहा कि माता सावित्रीबाई फुले देश की पहली ऐसी महिला है जिन्होंने बालिकाओं की शिक्षा पर बल दिया । उन्होंने बताया कि किस प्रकार वह जब स्कूल जाती थीं तो उसके ऊपर कीचड़ , गोबर व मलमूत्र फेंका जाता था , वह विद्यालय जाते समय दो साड़ी लेकर जाती थीं , लेकिन हार नहीं मानी । फुले दम्पत्ति ने महाराष्ट्र में पहला विद्यालय बालिकाओं के खोला । उन्होंने मांग रखी कि सावित्रीबाई फुले को पाठ्यक्रम में शामिल कर आज की युवा पीढ़ी को उनके विषय में बताया जाना चाहिए , साथ ही उन पर डीयू व अन्य विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हो और उनके साहित्य का अनुवाद कर भारतीय भाषाओं में लोग पढ सके । प्रोफेसर सहारे ने भी बालिकाओं की शिक्षा पर जोर दिया और कहा कि हमें सावित्रीबाई फुले की शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर गाँव- गाँव में विद्यालय खोलने के लिए सरकार व संस्थाओं को प्रेरित करना चाहिए । मंच संचालन डॉ. के.योगेश ने किया , धन्यवाद डॉ.के.पी.सिंह ने किया ।