नई दिल्ली. झुग्गी मामले में बड़ा फैसला देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने ये साफ किया कि 1 जनवरी 2006 से पहले बनी झुग्गी के मालिक ही पुनर्वास के पात्र हैं. साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में पात्रता दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड की साल 2015 की अधिसूचना के आधार पर निर्धारित की जाएगी. कोर्ट ने ये टिप्पणी करते हुए हजरत निजामुद्दीन के ग्यासपुर की झुग्गी को तोड़ने पर लगी रोक को हटा दिया. गौरतलब है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने ये रोक हटाने की मांग की थी. इस पर हाईकोर्ट ने डीडीए से कहा कि वे झुग्गीवालों को पुनर्वास के लिए सभी सहायता मुहैया करवाएं.
गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पुनर्वास नीति की ये शर्त है कि अधिसूचना के तहत झुग्गी झोपड़ी बस्ती मान्य हो. सरकार ने मामले में हाईकोर्ट से कहा कि वे झुग्गीवालों को डीयूएसआईबी के आश्रय गृह में जगह देने को तैयार हैं. लेकिन इसमें एक पेंच ये है कि वो स्थान झुग्गी के वर्तमान स्थान से काफी दूर है.
कानून के अनुसार आगे बढ़ें
कोर्ट ने इस दौरान डीडीए को स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे कानून की पालना करें और काम को आगे बढ़ाएं. कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 की नीति स्पष्ट करती है कि केवल 1 जनवरी, 2006 से पहले आई झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां ही उक्त नीति के तहत पुनर्वास/पुनस्थापन की पात्र हैं. हाईकोर्ट ने डीडीए को कानून के अनुसार आगे बढ़ने की अनुमति देते हुए कहा कि झुग्गियों के निवासियों को बीच में नहीं छोड़ा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि लंबे समय से डीडीए निजामुद्दीन में से झुग्गियों को हटाने का प्रयास कर रहा है लेकिन इसको लेकर मामला हाईकोर्ट में था. अब दिल्ली हाईकोर्ट ने भी पुनर्वास योजना के तहत झुग्गियों को हटाने के लिए दिल्ली डवेलपमेंट अथॉरिटी को आदेश दे दिया है और अभी तक लगी रोक को हटा दिया गया है.