केंद्र कर रहा विचार, वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में रखें या नहीं, HC से कहा- कई लोगों से मांगे हैं सुझाव

केंद्र सरकार ने गुरुवार को उच्च न्यायालय को बताया कि वह वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में रखने के मसले पर एक ‘रचनात्मक दृष्टिकोण’ पर विचार कर रहा है।

Update: 2022-01-14 02:48 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्र सरकार ने गुरुवार को उच्च न्यायालय को बताया कि वह वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में रखने के मसले पर एक 'रचनात्मक दृष्टिकोण' पर विचार कर रहा है। सरकार ने न्यायालय को बताया कि इसके लिए उसने राज्य सरकारों, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सांसदों और अन्य से आपराधिक कानून में व्यापक संशोधन पर सुझाव मांगे हैं।

जस्टिस राजीव शकधर के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह जानकारी दी। उन्होंने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि मेहता ने इस मामले का उनके समक्ष उल्लेख किया और यह जानकारी दी। जस्टिस शकधर ने बताया कि सॉलिसिटर जनरल मेहता ने सुबह मामले का जिक्र किया और वह कह रहे थे कि सरकार इस मामले में रचनात्मक दृष्टिकोण पर विचार कर रही है।
मेहता ने जब इस मामले का उल्लेख किया तब जस्टिस सी हरि. शंकर मौजूद नहीं थे। इस मामले की सुनवाई जस्टिस शकधर और हरि शंकर की पीठ कर रहे हैं। हालांकि केंद्र की ओर से अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने पीठ को बताया कि सरकार आपराधिक कानून में संशोधन का एक व्यापक कार्य कर रहा है जिसमें आईपीसी की धारा 375 का अपवाद भी शामिल है।
सरकार ने कहा कि हमने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सुझाव मांगे हैं और इसके अलावा भारत के मुख्य न्यायाधीश, सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, न्यायिक अकादमियों, राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, सभी अदालतों की बार काउंसिल और आपराधिक कानूनों में व्यापक संशोधन के संबंध में संसद के दोनों सदनों के सदस्यों का सुझाव मांगा है।
इस पर पीठ ने कहा कि कानून में बदलाव में काफी वक्त लगेगा और केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा कि क्या वह विशेष रूप से वैवाहिक बलात्कार अपवाद के मुद्दे से निपट रही है। पीठ ने यह भी कहा है कि यदि आप (केंद्र) के पास आईपीसी की धारा 375 के अपवाद के बारे में कोई सुझाव हैं तो हम उस पर विचार करेंगे। पीठ ने कहा कि आम तौर पर इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है।
गृह मंत्रालय में अवर सचिव द्वारा दाखिल अतिरिक्त हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि यह पहले से ही मामले पर विचार कर लिया गया है और यह कि वैवाहिक दुष्कर्म के अपवाद को केवल याचिकाकर्ताओं के कहने पर प्राकृतिक सिद्धांतों के रूप में नहीं मारा जा सकता है। सरकार ने कहा है कि न्याय के हित में सभी हितधारकों के पक्षों की सुनवाई की जरूरत है।
मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि कुछ परिस्थितियों को अंतर-पक्षीय संबंधों के कारण दुष्कर्म के दायरे से बाहर करना समस्याग्रस्त है और वैवाहिक दुष्कर्म के अपवाद का परीक्षण किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि जब दुष्कर्म कानून एक यौनकर्मी के साथ जबरन संभोग के मामले में कोई छूट नहीं देता है जो देर से सहमति वापस लेने का विकल्प चुनता है, तो पत्नी को कम सशक्त क्यों होना चाहिए।
उच्च न्यायालय आईपीसी की धारा 375 के अपवाद को खत्म करके वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर गैर सरकारी संगठनों आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन और दो व्यक्तियों की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार ने 2018 में हलफनामा दाखिल करते हुए कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है।
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