पिता की डांट से नाराज दस साल के बच्चे ने जान दी

Update: 2023-04-26 09:13 GMT

फरीदाबाद न्यूज़: संजय कॉलोनी में शाम 10 वर्षीय बच्चे ने अपने घर की छत पर रस्सी से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. बताया जा रहा है कि बच्चा पिता की डांट से नाराज था. वह छत पर खेलने के बहाने गया था. कुछ देर बाद परिजन उसे छत पर फंदे से लटका पाया. मामले की सूचना पाकर मौके पर पहंची पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजनों को सौंप दिया है. पुलिस विभिन्न पहलुओं से मामले की जांच कर रही है.

जानकारी के अनुसार बच्चा तीसरी कक्षा में पढ़ता था. उसके पिता कार चालाते हैं. उसकी एक बड़ी बहन है. पुलिस की मानें तो प्राथमिक जांच में जानकारी मिली कि शाम बच्चे के पिता ड्यूटी से आए. इस दौरान उन्होंने बच्चे को पढ़ाई करते नहीं देखा. इस पर नाराज होकर वह बच्चे को डांटने लगे. इससे बच्चा नाराज हो गया और अपने मकान की छत पर खेलने चला गया. घर के लोग यही समझे की वह छत पर खेलने जा रहा है. कुछ देर बाद उसे देखने के लिए छत पर गए तो उनके होश उड़ गए. उन्होंने बच्चे को छत पर लगे एक कुंडी में बंधे रस्सी से बच्चे को लटका देखा. उसे तुरंत उससे उतारकर बीके अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां से उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर किया गया. लेकिन परिजन शहर स्थित एक निजी अस्पताल में बच्चे को भर्ती कराया. जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराने बाद परिजनों को सौंप दिया है. पुलिस आत्महत्या के कारणों की जांच कर रही है. साथ ही मृतक बच्चे के परिजनों से भी पूछताछ कर रही है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि विभिन्न पहलुओं से जांच की जा रही है.

सोशल मीडिया का असर पड़ रहा मनोचिकित्सक

ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अंकुर सचदेवा के अनुसार आजकल बच्चे भी मानसिक रोगी हो रहे हैं. 10 से 18 साल की उम्र में इस तरह के लक्षण ज्यादा मिल रहे हैं. इसका एक कारण सोशल मीडिया भी है बच्चों में मोबाइल औऱ टीवी देखने का चालन बढ़ रहा है . ऐसे में माता पिता को सावधान रहने की जरुरत है .

डॉ. अंकुर सचदेवा ने बताया की बच्चों को ज्यादा डांटें नहीं, उसे प्यार से समझाएं. बच्चों के समय बिताएं और उनसे बात करें. अगर बच्चे अकेले में रहने लगे और ज्यादा बात न करे तो सचेत हो जाएं. इस दौरान बच्चे खानपान पर भी ध्यान नहीं देते हैं. ऐसे में बच्चों को डाक्टर से दिखाएं. खुद भी बच्चों का काउंसलिंग करें और उन्हें व्यस्त रखें.

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