कोरोना वैक्सीन की कंपनियों ने दिए अपने ह्यूमन ट्रायल्स के नतीजे, जानिए कब तक मिलेगा कौन-सा वैक्सीन
अब तक चारों ने ही अपने-अपने वैक्सीन का एफिकेसी रेट 90% या इससे ज्यादा प्रभावी बताया है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोनावायरस से बचाने के लिए वैक्सीन बनाने की होड़ फिनिश लाइन के करीब पहुंच गई है। चार कंपनियों ने अपने फेज-3 ट्रायल्स यानी ह्यूमन ट्रायल्स के अंतिम फेज के नतीजे घोषित कर दिए हैं। अब तक चारों ने ही अपने-अपने वैक्सीन का एफिकेसी रेट 90% या इससे ज्यादा प्रभावी बताया है। दरअसल, यह एफिकेसी रेट ही किसी वैक्सीन को अप्रूव करने का आधार बनता है। यह क्या है और कैसे निकाला जाता है, आइए समझते हैं...
वैक्सीन की एफिकेसी कैसे पता चलती है?
- यह एक लंबी और उलझी हुई प्रक्रिया है। रिसर्चर किसी वैक्सीन का ट्रायल करते हैं तो उसमें शामिल आधे लोगों को वैक्सीन लगाते हैं और आधे लोगों को प्लेसेबो यानी सलाइन देते हैं।
- फिर कुछ महीनों तक वॉलंटियर्स की निगरानी की जाती है और इस दौरान अलग-अलग जांच होती रहती है। ब्लड टेस्ट से देखते हैं कि शरीर में एंटीबॉडी डेवलप हुए हैं या नहीं। इंतजार किया जाता है कि किस ग्रुप के कितने लोग वायरस के लिए पॉजिटिव होते हैं।
- फाइजर के केस में कंपनी ने 44 हजार वॉलेंटियर्स को डोज दिया। कुछ महीनों की निगरानी में 170 लोगों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया। इनमें से 162 लोगों को प्लेसेबो दिया गया था, जबकि 8 लोग वैक्सीन वाले ग्रुप से थे।
- इन नंबरों के आधार पर फाइजर के रिसर्चर्स ने कैल्कुलेशन किए। जिस ग्रुप को वैक्सीन नहीं मिली थी, उनमें पॉजिटिव पेशेंट ज्यादा मिले। इसी तरह वैक्सीन वाले ग्रुप में पॉजिटिव पेशेंट कम थे। इससे ही एफिकेसी निकाली गई।
- वैज्ञानिकों के अनुसार जो लोग वैक्सीनेट होने के बाद बीमार हुए और जो बिना वैक्सीन के बीमार हुए, उनका अंतर ही एफिकेसी होती है। अगर दोनों ग्रुप्स में कोई अंतर नहीं मिलता तो एफिकेसी 0 हो जाती। वहीं, वैक्सीन वाले ग्रुप से कोई बीमार न होता तो एफिकेसी 100% हो जाती।
- 90% या इससे ज्यादा एफिकेसी का मतलब यह है कि वैक्सीन बेहतर तरीके से काम कर रही है। लेकिन यह नंबर आपको नहीं बताता कि अगर आपने वैक्सीन लगाया तो आपके बीमार होने के चांस कितने रह जाएंगे। इस वजह से यह नहीं कहा जा सकता कि वैक्सीन के आने के बाद दुनियाभर में कोविड-19 खत्म हो जाएगा।
जानिए किस कंपनी/संस्था के वैक्सीन का स्टेटस क्या है?
1. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी/ एस्ट्राजेनेका (ब्रिटेन)
तीसरे फेज के ट्रायल में ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (कोवीशील्ड) 90% तक असरदार पाई गई है। फरवरी अंतिम हफ्ते तक कोवीशील्ड की कम से कम 10 करोड़ डोज तैयार हो जाएगी। दुनिया की प्रमुख वैक्सीन प्रोडक्शन कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदार पूनावाला ने कहा कि अब तक 40 लाख डोज तैयार हो चुके हैं और केंद्र सरकार इसे 225 रुपए में खरीदने के लिए तैयार है। पूनावाला ने कहा कि प्राइवेट मार्केट में कोवीशील्ड का एक डोज 500 से 600 रुपए में मिलेगा। इससे डिस्ट्रीब्यूटर्स को फायदा भी होगा
2. फाइजर और बायोएनटेक (अमेरिका)
अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर और जर्मन कंपनी बायोएनटेक की जॉइंट कोरोना वैक्सीन फेज-3 ट्रायल में 95% असरदार साबित हुई है। कंपनी के मुताबिक, वैक्सीन उम्रदराज लोगों पर भी कारगर रही। इसके कोई सीरियस साइड इफेक्ट भी नहीं दिखे। फाइजर दिसंबर तक वैक्सीन के 5 करोड़ डोज बनाने की तैयारी में है।
कंपनी ने यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) को इमरजेंसी अप्रूवल हासिल करने के लिए आवेदन दे दिया है। फाइजर के फेज-3 ट्रायल में करीब 44 हजार लोग शामिल थे। इनमें से 170 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इनमें 162 मरीज ऐसे थे, जिन्हें वैक्सीन नहीं बल्कि प्लेसिबो दिया गया था।
3. मॉडर्ना (अमेरिका)
अमेरिका की बॉयोटेक कंपनी मॉडर्ना ने दावा किया है कि उसका बनाया वैक्सीन कोरोना के मरीजों को बचाने में 94.5% तक असरदार है। यह दावा लास्ट स्टेज क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों के आधार पर किया गया है। खास बात यह है कि यह वैक्सीन 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में 30 दिन तक सुरक्षित रह सकती है।
कंपनी ने बताया कि फेज-3 के ट्रायल में अमेरिका में 30,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया। इनमें 65 से ज्यादा हाई रिस्क कंडीशन वाले और अलग-अलग समुदायों से थे। कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव स्टीफन बैंसेल ने इस कामयाबी को वैक्सीन के डेवलपमेंट में एक अहम पल करार दिया। इस पर कंपनी जनवरी की शुरुआत से काम कर रही थी।
4. गामालेया रिसर्च इंस्टिट्यूट (रूस)
रूस में बनी वैक्सीन स्पूतनिक V ट्रायल के दौरान कोरोना से लड़ने में 95% असरदार साबित हुई है। क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे शुरुआती एनालिसिस में ये बात सामने आई है। पहला डोज देने के 28 दिन बाद इस वैक्सीन ने 91.4% इफेक्टिवनेस दिखाई थी। पहले डोज के 42 दिन बाद यह बढ़कर 95% हो गई। वैक्सीन को बनाने वाले गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबॉयोलॉजी ने यह दावा किया है।
वैक्सीन के दो डोज 39 संक्रमितों के अलावा 18,794 दूसरे मरीजों को दिए गए थे। रूस में यह दवा फ्री में मिलेगी। दुनिया के दूसरे देशों के लिए इसकी कीमत 700 रुपए से कम होगी। रूस ने दूसरे देशों के पार्टनर्स के साथ 2021 में 50 करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए वैक्सीन बनाने का करार किया है। डॉ. रेड्डी'ज लैबोरेटरी के साथ रूसी संस्था का करार हुआ है और भारत में फेज-2/3 के कम्बाइंड ट्रायल्स शुरू हो गए हैं।