कोरोना वायरस को लेकर नई स्टडी, वैज्ञानिकों ने कहा- सीजनल बीमारी है, जानिए कैसे महामारी बनी?

Update: 2021-05-03 07:45 GMT

कोरोना वायरस को लेकर एक नई स्टडी सामने आई है कि ये वायरस सीजनल था. गर्म तापमान और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले मौसम में इसे रोकने में मदद मिल सकती है. स्टडी के मुताबिक जिन जगहों पर तापमान ज्यादा है और ज्यादा देर तक सूरज की तेज रोशनी आती है, वहां पर कोरोना संक्रमण की दर कम है. यानी जो देश इक्वेटर लाइन (भूमध्यरेखा) या उसके आसपास हैं वहां पर कोरोना संक्रमण कम है. जबकि ठंडे देशों और भूमध्यरेखा से दूर के इलाकों में कोरोना संक्रमण ज्यादा है. 

स्टडी में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कोरोना संक्रमण को लेकर गर्मी के अलावा कई अन्य फैक्टर भी जरूरी है. साथ ही ये भी कहा गया है कि सिर्फ गर्मी बढ़ने से ही कोरोना वायरस खत्म नहीं होगा. हालांकि, गर्मियों में कोरोना वायरस के फैलने की दर कम हो जाती है. ये स्टडी हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है. स्टडी में कहा गया है कि भूमध्यरेखा के आसपास के देशों में जहां गर्मी ज्यादा होती है या उनकी जलवायु उष्णकटिबंधीय है, वहां पर कोरोना संक्रमण कम है. 
स्टडी करने वाले साइंटिस्ट्स ने कहा कि तीव्र अल्ट्रावॉयलेट किरणों के रेडिएशन और ज्यादा तापमान से कोरोना संक्रमण को रोकने में मदद मिल सकती है. लेकिन इसके साथ ही कोरोना संबंधी अन्य सख्त प्रतिबंधों का पालन भी जरूरी है. पिछले साल सर्दियों में कोरोना वायरस को लेकर कहा गया था कि ये गर्मियों में थोड़ा कमजोर होगा. हालांकि, कई रेस्पिरेटरी वायरस जैसे फ्लू के वायरस सीजनल होते हैं. ये सर्दियों में तेजी पकड़ते हैं. 
स्टडी में बताया गया है कि वैज्ञानिक इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं कि कोरोना जैसे फ्लू के वायरस सीजनल पैटर्न को फॉलो करते हैं. लेकिन इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. जैसे- रेस्पिरेटरी वायरस सर्दी वाले जगहों, कम तापमान और कम ह्यूमेडिटी वाले इलाकों में ज्यादा देर तक हवा में तैरते हैं या जीवित रहते हैं. जबकि, गर्म इलाकों में ऐसा नहीं होता. इसलिए सर्दियों में इंसानों में संक्रमण की दर तेजी से फैली थी. 
प्रयोगशाला में की गई जांच के अनुसार यह बात पुख्ता हुई है कि ज्यादा तापमान के साथ आद्रता वाले स्थानों पर कोरोना वायरस का जीवन छोटा हो जाता है. ये जल्दी ही निष्क्रिय हो जाते हैं. इस स्टडी में 9 जनवरी 2021 को दुनिया के 117 देशों में फैले कोरोना वायरस की स्टडी की गई है. इसमें देश के तापमान, भूमध्यरेखा के पास होना और आद्रता के आधार पर कोरोना वायरस संक्रमण की जांच की गई. 
इस स्टडी में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के देशवार आंकड़ों की भी मदद ली गई है. इसमें बताया गया है कि कैसे कौन सा देश कोरोना वायरस से कितना ज्यादा प्रभावित है. वहां पर हवाई यात्राओं की स्थिति क्या है. स्वास्थ्य पर सालाना खर्च कितना है. आर्थिक विकास की दर और युवाओं-बुजुर्गों के बीच का अनुपात भी जांचा गया है. 
भूमध्यरेखा से हर 1 डिग्री बढ़ने पर यानी इक्वेटर लाइन से ऊपर और नीचे जाने पर अलग-अलग देशों में कोरोना संक्रमण के बढ़ने की दर 4.3 फीसदी बढ़ी है. यानी हर 10 लाख लोगों में से 4.3 फीसदी लोग कोरोना संक्रमित होते चले गए हैं. यानी जो देश भूमध्यरेखा के ऊपर और नीचे 1000 किलोमीटर की रेंज में हैं, वहां पर अन्य देशों की तुलना में 33 फीसदी कम कोरोना केस हैं.
जर्मनी के हीडेलबर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ और चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों के मुताबिक सर्दियों में कोरोना वायरस के बढ़ने का खतरा और ज्यादा होगा. क्योंकि दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में धरती के उत्तरी गोलार्ध में आने वाले देशों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े थे, जबकि भूमध्यरेखा के 1000 किलोमीटर ऊपर और 1000 किलोमीटर नीचे मौजूद देशों में यह दर तुलनात्मक रूप से कम था. 
इस स्टडी में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट्स का अध्ययन नहीं किया गया है. जैसे अफ्रीकी और ब्रिटिश वैरिएंट को इस स्टडी में शामिल नहीं किया गया है. इसलिए वैज्ञानिकों ने यह दावा नहीं किया है कि नए कोरोना वैरिएंट्स पर मौसम का कितना असर होता है. 


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