प्रेसक्लब बन चुका है तथाकथित पत्रकारों का पे-क्लब
अध्यक्ष बनने वाले पत्रकार राजनीतिक मोहरा बनकर कर रहे प्रेस क्लब को बदनाम पत्रकारों को मिलने वाले लाभ से खुद पदाधिकारी अकले लेते रहे हैं लाभांवित, पत्रकारों को ठेंगा प्रेस क्लब में बड़े मीडिया हाऊस के पत्रकार नेताओं के दलाल बनकर करते रहे हैं काम प्रेसक्लब के जो भी पदाधिकारी रहे सरकारी सुविधा का दोहन …
- अध्यक्ष बनने वाले पत्रकार राजनीतिक मोहरा बनकर कर रहे प्रेस क्लब को बदनाम
- पत्रकारों को मिलने वाले लाभ से खुद पदाधिकारी अकले लेते रहे हैं लाभांवित, पत्रकारों को ठेंगा
- प्रेस क्लब में बड़े मीडिया हाऊस के पत्रकार नेताओं के दलाल बनकर करते रहे हैं काम
- प्रेसक्लब के जो भी पदाधिकारी रहे सरकारी सुविधा का दोहन करते रहे
- प्रेसक्लब के मठाधीशों ने पत्रकार बनाने की जगह बना दिया सत्ता पक्ष का लाइजनर
- फोटोग्राफरों की चल रही अपनी अलग-अलग मोहब्बत की दुकान,जो सचिव के पीके क्लब के मेंबर है
रायपुर। राजधानी का प्रेसक्लब अपनी कारगुजारियों के लिए पूरे प्रदेश में कुख्यात है। बड़े मीडिया हाऊस के पत्रकार मंत्रियों और अधिकारियों के मुखबिर के रूप में काम करते है। जिसके एवज में उन्हें मेहनताना मिलता है। पिछले पांच साल तक कोई भी मीडिया हाउस ने प्रेसक्लब की दुर्गति को लेकर न तो चिंतन किया और न सुधारने में कोई योगदान नहीं दिया। बल्कि माइक और आईडी लेकर चलने वाले पत्रकारों को किसी विशेष खेमे का लाइजनिंग अफिसर बना दिया जाता है और वसूली के नए-नए पैंतरे सिखाते हैं। विधानसभा में तो फुल लाइजनिंंग को खेल चलता है। प्रेसक्लब से दुत्कारे गए पत्रकार वहां के मुख्यकर्ताधर्ता बन गए है।
उनके हिसाब से वहां सचिव विधानसभा का पास बनवाते हैं, न तो यहां जनसंपर्क का चलता है न ही विधानसभा के सचिव का। यहां तो दलाल टाइप पत्रकारों का ही दबंगई चलता है। जो साल के आखिर में होने वाले विधानसभा सत्र में जिन्हें सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टिंग का पुरस्कार दिया जाता है भले ही उसे विधानसभा लिखने नहीं आता हो । क्योंकि भाजपा सरकार में यह परंपरा रही है कि सत्र के अंत में पत्रकारों को गिफ्ट में फ्रीज, लेपटाप,नकद राशि से उपकृत किया जाता रहा है। भाजपा के सरकार आते ही सारे फूल छाप पत्रकार प्रेसक्लब में कब्जा करने की होड़ में चुनाव मैदान में कूद गए हैं। 1962 से बने प्रेसक्लब में चाटुकारिया करने वाले पत्रकार ही फले -फूले उनको ही जमीन-मकान, दुकान का लाभ मिला बाकी तो आज भी समोसा छाप पत्रकार है, जिनका न घर है न ठिकाना, वो तो बस प्रेसक्लब की आईडी लेकर बड़े गर्व से बताते है कि मैं प्रेसक्लब का सदस्य हूं। प्रेसक्लब ही हमारा ठिकाना है और घर है। चुनाव आते ही सारे पत्रकार मानद सदस्य के रूप में प्रेसक्लब में होने वाले चुनाव में अपने पैनल को जीताने के लिए हर रात को प्रेसक्लब को बार में तब्दील कर वोट की गणित का जमा खर्च करते हैं। मकसद सिर्फ प्रेसक्लब में कब्जा करना है। चूंकि राजधानी के प्रेस क्लब के अध्यक्ष का पद काफी प्रभावशाली माना गया है। इस वजह से लोग अध्यक्ष बनने के लिए जी तोड़ मोहनत कर रहे है।
येनकेन प्रकारेण प्रेसक्लब में एंट्री पाकर शासन और प्रशासन के नजदीकी बन कर अपने खिलाफ होने वाली जांच से बचना चाह रहे है। जिसमें प्रमुख रूप से वामपंथी विचारधारा के पत्रकार है । वहीं मतदान के लिए अभी से चुनावी समीकरण बनने लगे हैं, जिसमें परंपरागत पुराने पैनल और सक्रिय लोग तो पीछे हैं लेकिन पिछली सरकार में सत्ता की भागीदारी संभालने वाले पत्रकारों ने प्रेस क्लब में एंट्री का मोर्चा संभाल लिया है। जो पत्रकार कम नेता की मुद्रा में हाथ जोड़ते नजर आ रहे है। ताकि किसी भी तरह से सदस्यों का समर्थन मिल सके।