आर्थिक बजट: कल संसद में पेश होगा आर्थिक सर्वेक्षण, भावी नीतियों की मिलेगी झलक, रोजगार, महंगाई और विनिवेश की स्थिति का चलेगा पता
कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद देश की इकोनोमी की स्थिति कैसी रही, इसका खुलासा बहुत हद तक सोमवार को पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 हो जाएगा।
नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद देश की इकोनोमी की स्थिति कैसी रही, इसका खुलासा बहुत हद तक सोमवार को पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 हो जाएगा। संसद के बजट सत्र के शुभारंभ होने के कुछ ही मिनटों बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सर्वेक्षण को सदन पटल पर रखेंगी। मंगलवार, 01 फरवरी को आम बजट 2022-23 पेश होने से पहले सर्वेक्षण से यह पता चल सकेगा कि आम बजट 2021-22 में की गई घोषणाओं का अभी तक कितना अमल हुआ है। साथ ही सरकार की भावी आर्थिक नीतियों का एक खाका भी इससे सामने आएगा। बाजार निवेशक से लेकर आम उद्योग समुदाय और बाहरी विशेषज्ञों की इस बात पर खास तौर पर नजर होगी कि रोजगार, महंगाई, विनिवेश, इकोनोमी में टेक्नोलोजी की बढ़ती भूमिका के बारे में आर्थिक सर्वेक्षण क्या तस्वीर दिखाती है।
आम तौर पर वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार ही आर्थिक सर्वेक्षण को तैयार करता है। लेकिन इस बार सर्वेक्षण पेश होने से दो दिन पहले ही आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन की नियुक्ति हुई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दूसरे अधिकारियों की तरफ से तैयार सर्वेक्षण को नागेश्वरन किस तरह से अपने कार्यकाल में लागू करते हैं।
इस सर्वेक्षण में आर्थिक विकास दर का सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता
इस सर्वेक्षण को लेकर सबसे दिलचस्प बात यह होगी कि वर्ष 2022-23 के दौरान अर्थव्यवस्था की विकास दर को लेकर क्या अनुमान लगाया जाता है। अमूमन हर वित्त वर्ष के लिए सरकार की तरफ से सबसे पहला विकास दर अनुमान का खुलासा आर्थिक सर्वेक्षण में ही होता है। इसके बाद आम बजट में और आरबीआइ की मौद्रिक नीतियों में इसे दोहराने की परंपरा रही है। दूसरी तरफ, पिछले पांच वर्षों का अनुभव बताता है कि वित्त मंत्रालय की तरफ से पेश किये जाने वाले इस सर्वेक्षण में आर्थिक विकास दर का सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सका है।
अगर कोरोना काल (वर्ष 2020-21) व इसके बाद के वर्ष को छोड़ दें तब भी वर्ष 2018-19 व वर्ष 2019-20 में आर्थिक विकास दर की रफ्तार अनुमान से काफी दूर था। नोटबंदी के बाद के वर्ष 2017-18 में में तो देश की विकास दर आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमान से ज्यादा रही थी। उसके बाद वर्ष 2018-19 में इसमें 7-7.5 फीसद विकास दर का अनुमान लगाया गया था जबकि वास्तविक तौर पर विकास दर सिर्फ चार फीसद रही थी।
कोरोना से वैश्विक इकोनोमी के प्रभावित होने की कही गई थी बात
कोरोना काल की शुरुआत से पहले जारी सर्वेक्षण में 6-6.5 फीसद विकास दर हासिल होने का अनुमान लगाया गया था जबकि उस वर्ष इकोनोमी में 7.3 फीसद की गिरावट हुई थी। कोरोना से वैश्विक इकोनोमी के प्रभावित होने की बात जनवरी, 2020 के शुरुआत से होने लगी थी। वर्ष 2021-22 में इसने 11 फीसद की विकास दर हासिल करने की बात कही थी जबकि अब सरकार ने इसके 9.2 फीसद रहने की बात कही है।
आर्थिक सर्वेक्षण विकास दर के अलावा इकोनोमी के समक्ष मौजूदा बड़ी चुनौतियों का जिक्र करते हुए उससे निपटने को लेकर सरकार के समक्ष विकल्पों का भी विस्तार से जिक्र करने वाला एक प्रपत्र है। पूर्व में हम देख चुके हैं कि चाहे आय कर दाताओं को सब्सिडी कम करने की बात हो या जएएम (जनधन, आधार नंबर व मोबाइल) की बात हो या पेट्रोलियम सब्सिडी को धीरे धीरे खत्म करने का फार्मूला हो, इन सभी के बारे में सरकार की भावी नीतियों का सबसे पहले संकेत आर्थिक सर्वेक्षण में ही मिला है। यह भी देखा गया है कि सर्वेक्षण से बजट में होने वाली घोषणाओं का भी अच्छा खासा संकेतक मिल जाता है।