Busines: भारत-रूस के 100 अरब डॉलर व्यापार पर क्यों चिंतित हैं चीन और अमेरिका

चीन और अमेरिका की बड़ी टेंशन

Update: 2024-07-10 09:49 GMT

दिल्ली: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय रूस यात्रा के दौरान ऊर्जा, व्यापार, विनिर्माण और उर्वरक क्षेत्र में आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही, दोनों देशों ने द्विपक्षीय संतुलन व्यापार के लिए भारत से वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ाने और विशेष निवेश प्रणाली के तहत निवेश को फिर से मजबूत करने पर जोर दिया।वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने ऊर्जा क्षेत्र में भारत को रूस की मदद का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब दुनिया खाद्य उत्पादों, ईंधन और उर्वरकों की कमी से जूझ रही थी, तब भारत ने किसानों को कोई परेशानी नहीं होने दी और इसमें रूस ने अहम भूमिका निभाई। मोदी ने यह भी कहा कि रूस की मदद से देश में पेट्रोल और डीजल की कमी नहीं हुई।

अमेरिका और चीन के मुकाबले रूस के साथ द्विपक्षीय व्यापार आधा

इस समय भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 60 अरब डॉलर है। जो अमेरिका और चीन के मुकाबले करीब आधा है। आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 118.28 अरब डॉलर है। जबकि चीन के साथ सबसे ज्यादा 118.40 अरब डॉलर है। चीन से रिश्ते खराब होने के बाद भी भारत का सबसे ज्यादा कारोबार यहीं से होता है। व्यापार घाटे की बात करें तो यह 85 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। वहीं रूस के साथ यह 57 अरब डॉलर को भी पार कर गया था।वहीं वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ 36.74 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष था। अमेरिका उन चंद देशों में से एक है, जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष है। इस सूची में यूके, बेल्जियम, इटली, फ्रांस और बांग्लादेश भी शामिल हैं। पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल व्यापार घाटा 264.9 बिलियन डॉलर की तुलना में घटकर 238.3 बिलियन डॉलर रह गया।

क्यों चिंतित हैं चीन और अमेरिका?

जब से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की धरती पर पहुंचे हैं। तब से चीन और अमेरिका में बेचैनी बढ़ गई है। अगर सबसे पहले चीन की बात करें तो चीन रूस से अपनी नजदीकियां बढ़ाने में लगा हुआ है। वहीं दूसरी ओर रूस की भारत से दोस्ती रास नहीं आ रही है। ऐसे में भारत के पास रूस को चीन से दूर रखने का बेहतरीन मौका है। ताकि किसी भी वक्त चीन को धमकाने के लिए रूस की मदद ली जा सके।

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