शेख़ सादी की कहानियां जिन्हें पढ़ना यानी जीवन को सही रास्ते पर लाने की कोशिश करना
, जिसकी वज़ह से उन्हें शीराज़ी कहा जाता है. उनकी पैदाइश
लेख | हज़रत शेख़ सादी शरफ़ुद्दीन और तख़ल्लुस सादी था. वह शीराज़ (ईरान) के रहने वाले थे, जिसकी वज़ह से उन्हें शीराज़ी कहा जाता है. उनकी पैदाइश को लेकर अलग-अलग तारीख़ें सामने आती हैं. उनकी पैदाइश 13वीं 14वीं शताब्दी के बीच कहीं रही होगी. उनकी उम्र को लेकर भी अलग अलग मत सामने आते हैं. माना जाता है कि उनकी उम्र 120 साल की रही. इसमें से तीस साल उन्होंने तालीम हासिल करने में, तीस साल दुनिया घूमने में, तीस साल लिखने-पढ़ने और संकलन में गुज़ारे. बचे हुए तीस उन्होंने एकांतवास में बिताए. एक बार उनके एक मित्र उनके बाग़ के फूल देखकर बहुत ख़ुश हुए. वह फूल ले जाना चाहते थे. सादी ने उनसे कहा, बाग़ के फ़ूल हमेशा नहीं रहते और बहार का ज़माना वफ़ादार नहीं होता. मैं गुलिस्तां की किताब लिख सकता हूं. पतझड़ भी इस किताब का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी. इस तरह गुलिस्तां किताब पूरी हुई. यह किताब मूल रूप से पर्शियन में लिखी गई. इसके बाद अनेक ज़ुबानों में इसका अनुवाद हुआ. हाल ही में शेख़ सादी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक गुलिस्तां, अनुवाद डॉ नाज़िया ख़ान (मैंड्रेक पब्लिकेशन्स) पढ़ने का मौका मिला. डॉ. नाज़िया ने इसे उर्दू और अंग्रेज़ी से अनुवाद करके पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है.गुलिस्तां दरअसल छोटी-छोटी नैतिक कथाएं-नसीहतें हैं. जीवन दर्शन है. सियासत, बुढ़ापा, ज़िंदगी, इश्क़, ख़ामोशी, सब्र और इत्मीनान और फ़कीरी से जुड़ी तमाम ऐसी कथाएं हैं, जो आपको जीने का ढंग सिखाती हैं. इन कथाओं को पढ़ते हुए आपको यह भी अहसास होगा कि ये हर समय और दौर में प्रासंगिक हैं. उदाहरण के लिए ‘ज़ालिम बादशाह हुक़ूमत नहीं कर सकता’ कथा कहती है कि भेड़िए से गडरिए का काम नहीं लिया जा सकता. जिस बादशाह ने ज़ुल्म करना शुरू कर दिया, उसने मानो अपनी हुक़ूमत की जड़ ही उखाड़ दी. एक अन्य कथा है, ‘आराम की क़ीमत’. इस कथा में एक बादशाह एक ग़ुलाम के साथ नाव में सवार हो