तालाबों को संवारने से बढ़ेगा भूजल का स्तर
By पंकज चतुर्वेदी: वर्ष 2023 के लिए देश के सक्रिय गैसोलीन संसाधन आकलन रिपोर्ट से पता चलता है कि देश का कुल वार्षिक वार्षिक पुनर्भरण 449.08 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो 2022 की तुलना में 11.48 बीसीएम अधिक है। यह आकलन सेंट्रल काउंसिल बोर्ड और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा संयुक्त रूप से …
By पंकज चतुर्वेदी: वर्ष 2023 के लिए देश के सक्रिय गैसोलीन संसाधन आकलन रिपोर्ट से पता चलता है कि देश का कुल वार्षिक वार्षिक पुनर्भरण 449.08 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो 2022 की तुलना में 11.48 बीसीएम अधिक है। यह आकलन सेंट्रल काउंसिल बोर्ड और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। यह सुधार एक आशा तो है, लेकिन देश में भू-दृश्य खतरनाक हैं। तीन महीने पहले ही संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं मानव सुरक्षा संस्थान (यूएनयू-ईएचएस) के शोध में यह बात सामने आई थी कि भारत में पृथ्वी के अंतिम छोर तक पहुंच के करीब है। रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में 78 फीसदी भूभाग अतिदोहित हैं और उत्तर-पश्चिमी भारत में 2025 तक के भूभाग पाताल में नहीं पहुंच पाए हैं। भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाले भूशैल हैं, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से अधिक हैं। भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र पूरी आबादी के लिए पेट डिमांड का खजाना है। पंजाब और हरियाणा देश में 50 प्रतिशत चावल और 85 प्रतिशत कच्चे माल की आपूर्ति होती है।
देश का बड़ा हिस्सा पेय जल और खेती के लिए खेत पर प्रतिबंध है। जिस कृषक ने हरित क्रांति को संवारा और भारत को एक खाद्य-सुरक्षित राष्ट्र बनाया, वह कृषकों के संसाधन अतिदोहन के अब खतरे में हैं। एक तरफ हर घर नल योजना है, तो दूसरी तरफ अधिक अन्न ओबने का दवाब। सतह के जल के भंडार, जैसे नदी, तालाब, झील आदि आकर्षण रह रहे हैं या उगे हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ सब्जियों का मूल्य और समय कम होना तो ही है। ऐसे में पानी का सारा दारोमदार खनिज पर है, जो अनंत काल तक चलने वाला स्रोत नहीं है। भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा खेती होती है। यहां 50 मिलियन हेक्टेयर से अधिक जमीन पर 460 मिलियन घन मीटर पानी खर्च होता है। कुल की आवश्यकता 41 प्रतिशत जलीय सतह और 51 प्रतिशत भूगर्भ सेतु है। गैट 50 के दौरान भूतल के प्रयोग से 115 गुना टूट गया है। भारत के 360 यानी 63 प्रतिशत आरोही में कोयला स्तर की गिरावट गंभीर श्रेणी में पहुंच गई है। कई जगह जीवाश्म भंडार हो रहे हैं। यह है कि जिन शटर में प्लास्टर लेवल से आठ मीटर नीचे बात चली है, वहां गरीबी दर नौ-दस प्रतिशत अधिक है। यदि स्थिर बांड जारी है, तो भारत की कम से कम 25 प्रतिशत कृषि जोखिम में होगी।
हरियाणा के 65 फीसदी और उत्तर प्रदेश के 30 फीसदी ब्लॉकों में फिल्म का स्तर पर पहुंच गया है। इन राज्यों को जल संसाधन मंत्रालय ने अंधाधुंध दोहन निषेध के उपाय भी सुझाये हैं। इन्सेक्टोरियल कोचिंग प्रबंधन पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया है। राजस्थान में 94 प्रतिशत शहजादे शेयरहोल्डर पर प्रतिबंध हैं। विशेषज्ञ विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दो पूर्वी राज्य के 140 खंडों में शायद ही जमीन से पानी बाहर जा सकेंगे। जमीन के बेताशा दोहन की ही त्रासदी है कि उत्तर प्रदेश के कई जिले-कानपुर, लखनऊ, आगरा आदि भूकंप संदेश हो गए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो भूमंडल में जहर इस कदर शोक है कि गांव के गांव कैंसर जैसे तालाब के गढ़ बन गए हैं। दिल्ली के गोदाम में अंधाधुंध रसायनिक खादों का इस्तेमाल और रेस्तराँ की दुकान की जमीन से रिसने से मिला हुआ है। पुतली दिल्ली में अब रेड जोन यानि लगभग ख़त्म होने वाली है।
केंद्र सरकार ने 2020 में 6000 करोड़ रुपये की लागत से अटल आचल वैल्युएशन योजना शुरू की थी, जिसमें सात राज्यों के 80 उद्यमों के कुल 229 ब्लॉकों को शामिल किया गया था, 8220 जिलों में पीने के पानी तक का गंभीर संकट पैदा हो गया है। . वर्ष के प्रारंभ में इस योजना की राष्ट्रीय संचालन समिति की समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई कि राज्यों में योजना की प्रगति सूची नहीं है। स्पष्टतः यह है कि यदि आज धरती के गर्भ में जल का भंडार बढ़ रहा है, तो यह सबसे बड़ा कारण है कि धरती की सतह पर तालाबों में पानी जमने की योजना की प्रगति ही है। संवारा के महलों के लिए सबसे मजबूत उपाय है। यह भूतिया सच है कि किसी को भी नहीं देखा जाता है, इसलिए उसके गुणों पर लोगों को सलाह देना कठिन है। आज जरूरत है कि हर गांव-कस्बे का जल बजट तैयार हो, हिसाब-किताब लगाया जाए कि कितने अनाज उपलब्ध हैं, पुनर्भरण की कितनी मात्रा का अनुमान है, खेती, पीने और अन्य खाद्य पदार्थों का कितना हिसाब-किताब होना चाहिए। गुजरात में किसान सिक्के और बर्तन जैसे पानी की अधिकता वाली सब्जियां अनार और जीरा की ओर जाने की आवश्यकता को समझ में आती हैं, जो न केवल कम पानी का उपयोग करते हैं, बल्कि अच्छी कीमत भी प्राप्त करते हैं। हरियाणा और पंजाब में सरकार धान की जगह पर मोटे अनाज की खेती करने की कोशिश कर रही है। यह संभव है, जब आम लोग इस संकट को खुद महसूस करेंगे। कानूनी जांच से तो पानीदार समाज बनने से रहा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)