‘हिट एंड रन’ कानून पर जागरूकता जरूरी

भारत एक लंबी विरासत को समय के साथ लिए चल रहा है। आगे विकास की गाथा में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। समय के साथ-साथ आवश्यकता अनुसार हर चीज में परिवर्तन प्रकृति का नियम है। उसी प्रकार से देश में कुछ समय से पूराने कानूनों में संशोधन कर नए नियम बनाए जा रहे हैं …

Update: 2024-01-09 04:38 GMT

भारत एक लंबी विरासत को समय के साथ लिए चल रहा है। आगे विकास की गाथा में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। समय के साथ-साथ आवश्यकता अनुसार हर चीज में परिवर्तन प्रकृति का नियम है। उसी प्रकार से देश में कुछ समय से पूराने कानूनों में संशोधन कर नए नियम बनाए जा रहे हैं जिनमें अब चर्चा में हिट एंड रन का नया कानून है। भारतीय न्याय संहिता में कई नए प्रावधान जोड़े गए हैं और अपडेट किए गए हैं, जिसमें से एक प्रावधान को लेकर देशभर में वाहन चालकों का विरोध जारी है। विरोध का कारण ‘हिट एंड रन’ का नया कानून है, यानी एक्सीडेंट होने के बाद भागने पर मिलने वाली सजा के नियमों में बदलाव पर ट्रक और बस ड्राइवर विरोध कर रहे हैं। नए हिट एंड रन कानून के तहत अगर रोड एक्सीडेंट में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है और ड्राइवर एक्सीडेंट एरिया से भाग जाता है तो उसे 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है। सजा के साथ-साथ ही मौके से भागने वाले ड्राइवर को जुर्माना भी देना पड़ेगा। हिट एंड रन के मामले तब होते हैं जब चालक लापरवाही से गाड़ी चलाते समय किसी व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य या संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं और उसके बाद संबंधित कानूनी अधिकारियों के साथ अपने वाहन और ड्राइविंग लाइसेंस को पंजीकृत करने में विफल रहते हैं। आम आदमी के शब्दों में, हिट एंड रन का मतलब गाड़ी चलाते समय किसी व्यक्ति या संपत्ति को मारना और फिर भाग जाना है। सबूतों और गवाहों के अभाव के कारण दोषियों की पहचान करना और उन्हें सजा देना बहुत कठिन हो जाता है।

हालांकि ऐसे कई उदाहरण हैं जब कानून ने उन्हें दोषी ठहराया है। हिट एंड रन के मामलों में सबसे बड़ा मुद्दा किसी भी प्रत्यक्ष सबूत का न होना है। आम तौर पर अपराधी को अपराध स्थल पर खड़ा करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं होता है। इससे पुलिस के लिए जांच को आगे बढ़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी तेज रफ्तार वाहनों और अत्यधिक भीड़ के कारण गवाह भी जांच में मदद नहीं कर पाते हैं। साथ ही गवाह अक्सर कानूनी पचड़े में नहीं फंसना चाहते। पुलिस को ऐसे मामलों में अप्रत्यक्ष सबूतों पर निर्भर रहना पड़ता है। जांच के लिए अपराध स्थल की बहुत सटीक और सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता होती है। दुर्घटना के गवाह भी पीडि़तों की मदद करने के इच्छुक और अनिच्छुक नहीं हैं। इससे काफी जनहानि होती है। वर्ष 2013 में, शीर्ष अदालत ने सरकार को अच्छे लोगों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया। हालांकि ये कानून बनने के बाद भी ज्यादातर कागजों पर ही उपलब्ध हैं। हालांकि कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में ये कानून बहुत महत्व रखते हैं। हिट एंड रन दुर्घटना के बाद आपके द्वारा की जाने वाली कार्रवाई चिकित्सा और कानूनी दोनों कारणों से महत्वपूर्ण है। कानूनी दृष्टिकोण से, वे इस बात पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं कि क्या आपको कोई मुआवजा मिल सकता है, और यदि हां, तो आपको कितना मिलेगा। अन्य महत्वपूर्ण मामलों के अलावा, आपको यह जानना होगा कि हिट एंड रन कार दुर्घटना के बाद क्या करना है, हिट एंड रन दुर्घटनाओं की रिपोर्ट कहां करनी है, और हिट एंड रन दुर्घटना को कैसे साबित करना है। 1. अगर आपको मौका मिले तो कार की तस्वीर लें। 2. दुर्घटना स्थल पर न जाएं। यदि आप दूसरे ड्राइवर का पीछा करने की कोशिश करते हैं, तो आप स्वयं कानून तोड़ देंगे। 3. यदि आपको या किसी अन्य को चोट लगी हो तो एम्बुलेंस को कॉल करें। 4. पुलिस को दुर्घटनास्थल पर आने के लिए बुलाएं। किसी भी गवाह के साथ संपर्क विवरण का आदान-प्रदान करें। 5. दुर्घटना रिपोर्ट भरते समय पुलिस का सहयोग करें। जितनी जल्दी हो सके दुर्घटना रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त करें। आपका वकील और शायद आपकी बीमा कंपनी इसे देखना चाहेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात, किसी कुशल व्यक्तिगत चोट वकील से संपर्क करें।

भारतीय न्याय संहिता में हिट एंड रन कानून में जो नए प्रावधान हैं, उसके मुताबिक अगर गाड़ी ड्राइवर हादसे के बाद पुलिस को सूचना दिए बिना फरार होता है तो उसे 10 साल की सजा होगी। इसके साथ ही भारी जुर्माना भी वसूला जाएगा। इस कड़े प्रावधान का देशभर के ट्रक, ट्रेलर, बस, लोक परिवहन और टैक्सी ड्राइवर विरोध कर रहे हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस नए कानून के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं और हाइवे जाम किए जा रहे हैं। दुर्घटना के आंकड़े बताते हैं कि हिट एंड रन के मामलों में हर साल देश में 50 हजार लोगों की मौत हो जाती है। मौतों के इन आंकड़ों को देखते हुए ड्राइवरों पर सख्ती करते हुए नए कानून में सख्त प्रावधान जोड़े गए हैं। एक दृष्टि से देखें तो ड्राइवरों के लिए आगे कुआं, पीछे खाई है। नए कानून का विरोध करने वाले ड्राइवरों का कहना है कि अगर दुर्घटना के बाद वे मौके से फरार होते हैं तो उन्हें 10 साल की सजा हो जाएगी। अगर वे मौके पर ही रुक जाते हैं तो भीड़ उन पर हमला करके पीट-पीट कर मार देगी। ड्राइवरों के लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति हो गई। यह बात सही भी है कि कई बार उग्र भीड़ हिंसक रूप ले लेती है और मामला मॉब लिंचिंग का रूप ले लेता है। इस काले कानून के कारण पूरे देश में ट्रक ड्राइवर चक्का जाम करने की धमकियां दे रहे हैं।

अब देखते हैं कि इस देश की अर्थव्यवस्था कैसे चलती है। देश के ड्राइवर कह रहे हैं कि हम हैं तो देश की अर्थव्यवस्था है, हम नहीं तो देश की अर्थव्यवस्था नहीं, जब तक हम चलेंगे तब तक देश की अर्थव्यवस्था चलेगी, हम नहीं चलेंगे तो देश की अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी। अब देखते हैं कि इस कानून का देश के लिए फायदा होता है या नुकसान, समस्त ड्राइवर समाज असंमजस में है कि ऐसा कैसा कानून क्योंकि सडक़ पर चलते हैं तो दुर्घटनाएं हो ही जाती हैं, जानबूझ कर तो हम बिल्ली को भी बचाने का प्रयास करते हैं, मगर कई बार तेज रफ्तार बाइकर्स खुद ट्रकों से टकरा जाते हैं, ऐसे में हम क्या करेंगे। ऐसी बातों से स्पष्ट होता है कि कानून न अच्छा है न बुरा है, कानून तो कानून है, किसी चीज की कमी है तो वो जागरूकता की तथा कानून में भीड़ वाले पहलू की दृष्टि से सोचने की, क्योंकि भीड़ अगर मारपीट करती है तो उसका जिम्मेवार कौन? इन सवालों का जवाब जब मिलेगा तब कानून को लोग स्वयं मानेंगे, वैसे भी यह कानून केवल ट्रक या बस चालकों के लिए नहीं, बल्कि सभी वाहन चालकों के लिए है। कानूनों व नियमों का पालन तो करना ही चाहिए, सरकार को आवश्यकता है कि जनहित से जुड़े इस महत्वपूर्ण कानून पर ड्राइवरों की सलाह व चर्चा-परिचर्चा आवश्यक रूप से करे।

प्रो. मनोज डोगरा

शिक्षाविद

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