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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तर कोरिया ने अपने नागरिकों के लिए एक अजीबोगरीब फरमान जारी किया. उन्हें अपने घर की खिड़कियां-दरवाजे बंद रखने हैं. किसी इमरजेंसी में घर से बाहर निकलना पड़े तो खुद को पूरी तरह से ढंके रखना है. ये एहतियात चीन से कथित तौर पर आ रही खतरनाक पीली धूल (yellow dust coming from China) से बचने के लिए उठाए जा रहे हैं. उत्तर कोरिया के मुताबिक इस धूल में कोरोना वायरस हैं. वैसे बता दें कि चीन से हर साल इस मौसम में पीली धूल उठती है.
उत्तर कोरिया में क्या हैं कोरोना के हाल
इस देश में अब तक कोरोना संक्रमण का कोई भी मामला आधिकारिक तौर पर दर्ज नहीं हुआ है. बीच में ऐसी भी जानकारी आई कि इस देश के तानाशाह ने अपनी सीमा पर किसी भी संदिग्ध के दिखाने देने पर उसे गोली मारने के आदेश दिए थे. ये आदेश कोरोना संक्रमण के देश के भीतर आने से रोकने के लिए था.
धूल के चलते लगा लॉकडाउन
अब इसी देश में एक और अजीब आदेश जारी हुआ है. यहां चीन से उड़ रही पीली धूल को वायरस फैलाने वाला मानते हुए उस धूल से बचाव के लिए लगभग बंदी लगा दी गई है. ये एक तरह से दूसरे देशों के कोरोना वायरस लॉकडाउन जैसा ही है.
धूल से कोरोना का डर
इस अलग-थलग पड़े देश में चीन से आ रही पीली धूल में कोरोना वायरस के होने की आशंका जताई जा रही है. और सारे उपाय इस धूल से बचाव के लिए हो रहे हैं. उत्तर कोरिया ही क्यों, मध्य एशियाई देश तुर्कमेनिस्तान में चीन की पीली धूल को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है.
चाइना डस्ट भी कहते हैं इसे
यलो डस्ट असल में चीन और इनर मंगोलिया के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल है. इसे चाइना डस्ट स्टॉर्म या एशियन डस्ट भी कहते हैं. ये सितंबर-अक्टूबर के आसपास हर साल उड़ती देखी गई है, जिसकी वजह है इस दौरान चलने वाली तेज हवा. हवा से रेत के हल्के कण उड़ते हुए चीन से होते हुए उत्तर और दक्षिण कोरिया और जापान के आसमान को भी अपनी चपेट में ले लेते हैं. आंधी इतनी तेज होती है कि कई बार ये धूल अमेरिका के वायु स्तर पर भी असर डालती है.
कारखाने हैं एक कारण
धूल की बड़ी वजह चीन में तेजी से कल-कारखानों का बनना है. बता दें कि अस्सी के दशक से चीन में औद्योगिकीकरण में तेजी आई. जंगल काटकर कारखाने बने. ऐसे में रेगिस्तान से चली आंधी को रोकने का कोई जरिया नहीं रहा. साथ में इस धूलभरी हवा में चीन के कारखाने की प्रदूषित हवा भी मिलने लगी, जो और खतरनाक है.
पीली धूल का एक कारण रूस भी है
सोवियत संघ (तत्कालीन) के दौरान आमू और सिर नदियों की दिशा बदली गई. इसके कारण कजाखस्तान और उजबेकिस्तान जैसे इलाकों में सूखा पड़ने लगा. दरअसल सोवियत एग्रीकल्चर प्रोग्राम के तहत दोनों ही नदियों को मध्य एशियाई रेगिस्तानों की ओर मोड़ दिया गया था ताकि वहां कपास की उपज हो सके. अब चूंकि कजाखस्तान और उजबेकिस्तान सूखने लगे हैं, लिहाजा वहां भी इस धूल को रोकने का कोई बंदोबस्त नहीं. यही वजह है कि बारिश के बाद और सर्दियां शुरू होने से पहले चलने वाली ये पीली आंधी चीन के पड़ोसियों के लिए आफत ले आती है.
कितनी खतरनाक है ये धूल
इसपर स्टडी के नतीजे डराते हैं. इसके मुताबिक चीन की धूल में सिलिकॉन की मात्रा 24 से 32 प्रतिशत तक होती है. इसके अलावा एलुमीनियम, कैल्शियम, मर्करी और कैडियम जैसे खतरनाक तत्व होते हैं, जिसका सांस में जाना फेफड़ों से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा करता है. इससे लंग टिश्यू के मरने और लंग कैंसर जैसी बीमारियां भी बढ़ी हैं. धूल के कण छोटे से लेकर काफी छोटे भी होते हैं. ये सीधे खून में मिलकर गर्भ में शिशु को भी गंभीर विकृतियां दे सकते हैं.
उत्तर और दक्षिण कोरिया पहले से हैं परेशान
चीन की ये पीली धूल उत्तर और दक्षिण कोरिया दोनों के गुस्से का कारण रही है. कोरियाई देशों की हवा में उपस्थित 30% सल्फ्यूरिक एसिड और 40% नाइट्रिक एसिड चीन से आ रहे हैं. इस बारे में कई बार इंटरनेशनल स्तर पर भी शिकायत की जा चुकी है. यहां तक कि जापान ने भी यलो डस्ट के बारे में कोई ठोस कदम उठाने की बात चीन से कही लेकिन फिलहाल तक तो हाल जस का तस है.