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आपकी जींस पी जाती है आपके हिस्से का 3 साल का पानी, कपड़ों के कूड़े से कैसे बचें?

Neha Dani
24 May 2022 1:55 AM GMT
आपकी जींस पी जाती है आपके हिस्से का 3 साल का पानी, कपड़ों के कूड़े से कैसे बचें?
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एक बार पहने जा चुके कपड़ों को दोबारा किसी इवेंट में पहनने में कोई शर्म की बात नहीं है.

ग्लोबलाइजेशन के कारण दुनियाभर में लोगो में अधिक से अधिक ब्रांड को पहनने और फैशन ट्रेंड्स फॉलो करने की होड़ सी लगी है. आप तुलना करके देखिए आज के समय में आपके पास अपने दादा-दादी से 5 गुना ज्यादा कपड़े हैं. लोगों की जिंदगी में ये बदलाव बाजार में बड़ी संख्या में नए ट्रेंड्स और अपेक्षाकृत सस्ते होते कपड़ों की वजह से आया है. आइए जानते हैं कि कैसे हम ये फेशन ट्रेंड को फालो करते करते अपनी जिंदगी में ही जहर घोल रहे हैं.

कूड़ा बनता कपड़ा
दुनिया भर में फैशन इंडस्ट्री सालाना तकरीबन 80 बिलियन नए कपड़ों का प्रोडक्शन करती है. पिछले 20 साल में ये 400% तक बढ़ चुका है. आंकड़ों के मुताबिक एक साल में 5.30 करोड़ टन कपड़े के धागे का बनता है जिसका 70% सीधे कूड़े के ढेर में चला जाता है. वहीं औसतन पश्चिमी देशों में कपड़े को बेकार मानने से पहले सिर्फ 7 बार पहना जाता है. जिसके बाद वो इस्तेमाल से बाहर हो जाता है. एक रिसर्च के मुताबिक, कचरों के ढेर का 57% हिस्सा सिर्फ कपड़ों से भरा होता है. वहीं पश्चिमी दुनिया में एक परिवार हर साल औसतन 30 किलो कपड़े फेंक देता है. यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो की एक रिसर्च के मुताबिक सिर्फ 15% रिसाइकल या दान किया जाता है और बाकी सारा सीधे लैंडफिल साइट पहुंच जाता है या फिर जला दिया जाता है.
कितना जहर घोल रहे हैं Fashion Trend?
क्या आप जानते हैं कि अधिकांश देशों में जहां कपड़ों का उत्पादन किया जाता है, कपड़ा कारखानों से निकलते जहरीले पानी को सीधे नदियों में फेंक दिया जाता है. जिससे नदी का बहने वाला पानी प्रदूषित हो जाता है. पानी में जहरीले पदार्थ जैसे सीसा, पारा और आर्सेनिक आदि होते हैं. ये जहरीला पानी नदियों के रास्ते आसानी से समुद्र में फैल जाता है. जिसके बाद ये तेजी से जलीय जीवन और किनारे रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगी में जहर घोल देता है.
72% कपड़ों में यूज होता है सिंथेटिक फाइबर
इसके अलावा हमारे 72% कपड़ों में सिंथेटिक फाइबर का उपयोग किया जाता है. पॉलिएस्टर जैसे सिंथेटिक फाइबर दरअसल प्लास्टिक फाइबर होते हैं. ये नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं. इन्हें विघटित होकर नष्ट होने में 200 साल तक का समय लग सकता है. पूरी दुनिया में शिपिंग और इंटरनेशनल एयर ट्रैवल से हवा जितनी प्रदूषित होती है उससे कहीं ज्यादा एयर पॉल्यूशन सिर्फ टेक्सटाइल इंडस्ट्री से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैस से होता है.
ग्रीन हाउस गैस उगलता फैशन?
यही नहीं हमारे अधिकांश कपड़ों में उपयोग किए जाने वाले सिंथेटिक फाइबर (पॉलिएस्टर, ऐक्रेलिक, नायलॉन, आदि), फोसेल फ्यूल से बने होते हैं. जिससे उत्पादन में प्राकृतिक फाइबर की तुलना में अधिक एनर्जी का इस्तेमाल होता है. वहीं इसके निर्माण और ट्रांसपोर्टेशन के दौरान उपयोग की जाने वाली बिजली की वजह से भी बहुत अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है. साथ ही 'सस्ते सिंथेटिक फाइबर भी N2O जैसी गैसों का बनाते हैं, जो CO2 की तुलना में 300 गुना ज्यादा खतरनाक होती है.
फैशन उद्योग आपका पानी सोख रहा है
हमारे सभी कपड़ों की रंगाई और अन्य प्रक्रिया के लिए भारी मात्रा में ताजे पानी का उपयोग किया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक प्रति टन कपड़ा रंगने में करीब 200 टन ताजे पानी का इस्तेमाल होता है. यहीं नहीं कपास की खेती आमतौर पर गर्म और शुष्क इलाकों में की जाती है इस वजह से इसके उत्पादन के लिए भी खूब पानी की आवश्यकता होती है. सिर्फ 1 किलो कपास के उत्पादन के लिए लगभग 20,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है.
एक जीन्स पी जाती है आपका 3 साल का पानी
UN एनवायरनमेंट प्रोग्राम के मुताबिक, एक इंसान 3 साल में 3781 लीटर पानी पीता है. वहीं इतना ही पानी सिर्फ एक जींस बनाने में खर्च हो जाता है. पॉलिएस्टर और ऐक्रेलिक जैसे सिन्थेटिक फाइबर्स प्लास्टिक पॉलीमर्स से बनते हैं. सिन्थेटिक कपड़ों में सिर्फ ऐक्रेलिक को रिसाइकल किया जा सकता है. लेकिन ये प्रकिया भी जटिल होने के कारण ज्यादा प्रचलित नहीं है. कपड़ों को रंगाई के लिए भी एक साल में करीब 20,000 टन पानी का इस्तेमाल होता है. जिसके बाद ये कैमिकल रंगों वाला प्रदूषित पानी सीधे नदी-नालों में जाकर प्रदूषण फैलता है.
Slow and Sustainable है नया Fashion Trend
कोविड महामारी की वजह से पिछले कुछ समय दुनिया भर में लोगो का फैशन को ले कर नजरिया बदला है. अब दुनिया भर की फैशन इंडस्ट्री अब Slow and Sustainable Fashion की तरफ रुख कर रही है. मार्केट में दर्जनों ऐसे Sustainable ब्रांड्स आ चुके हैं कपड़ों को बनाने के लिए लिए जैविक यानि organic मटीरियल का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन ये अभी काफी मंहगे हैं.
कपड़ों को रंगने के लिए भी अब आर्गेनिक डाई का इस्तेमाल हो रहा है. सिर्फ कपड़े ही नहीं बल्कि बैग्स, शूज, मेकअप और ज्वेलरी भी आर्गेनिक होती जा रही है. वही स्लो फैशन ट्रेंड्स फॉर कई सेलेब्रिटीज ग्लोबल लेवल पर प्रमोट भी कर रहे है. ताकि लोगो में RECYCLE का क्रेज बढे़ और एक कपड़े का कई बार इस्तेमाल हो सके.
दोबारा पहने कपड़े
हाल ही में रिक्की केज (इंडियन म्यूजिक कंपोजर) ने अप्रैल 2022 में ग्रैमी अवार्ड्स में जो कपड़े पहने थे वही कपड़े उन्होंने मई 2022 में कांस फिल्म फेस्टिवल में भी पहने. इन्होंने एक हैश टैग #ReWear4Earth का इस्तेमाल करते हुए पोस्ट शेयर कर लिखा कि एक बार पहने जा चुके कपड़ों को दोबारा किसी इवेंट में पहनने में कोई शर्म की बात नहीं है.
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