संयुक्त राष्ट्र के मानवतावादी अभियानों के प्रमुख मार्क लोवकॉक ने कहा है कि युद्ध प्रभावित देश यमन में हालत तेजी से बिगड़ रहे हैं और अगर दानदाताओं खासतौर पर खाड़ी के उसके पड़ोसी देशों ने संयुक्त राष्ट्र की 3.85 अरब डॉलर की मांग पर उदारतापूर्वक दान नहीं दिया तो यमन को अब तक के सबसे भयानक अकाल का सामना करना पड़ेगा। लोवकॉक ने बुधवार को कहा कि खाड़ी देशों खासतौर पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने वर्ष 2018 और 2019 में उदारतापूर्वक दान दिया था ,लेकिन पिछले वर्ष उन्होंने इसमें जबरदस्त कटौती की थी। उन्होंने कहा कि इससे एजेंसी वर्ष 2020 में प्रति माह केवल 90लाख लोगों को खाद्य पदार्थ और अन्य मानवीय सहायता मुहैया करा पाई थी जबकि वर्ष 2019में खाद्य पदार्थ और मानवीय सहायता पाने वाले लोगों की संख्या एक करोड़ 30 लाख से एक करोड़ 40 लाख व्यक्ति प्रति माह थी। उन्होंने संवाददाताओं से कहा वे 40लाख लोग जिन्हें पिछले वर्ष भोजन नहीं मिला वे '' उन लोगों में शामिल हैं जो भुखमरी की ओर बढ़ रहे हैं।'' लोवकॉक ने कहा,'' इस कोष के बिना और लोग काल के गाल में समा जाएंगे, अब जो देश के हालात हैं, जहां कुछ इलाकों में पहले ही अकाल है, उसमें अकाल की विभीषिका और बढेगी और ऐसा अकाल दुनिया ने दशकों में नहीं देखा होगा। तो इस लिहाज से बहुत कुछ दांव पर है।'' गौरतलब है कि अरब के इस सर्वाधिक निर्धन देश में संघर्ष 2014 में उस वक्त शुरू हुआ जब ईरान समर्थित हुती विद्रोहियों ने यमन की राजधानी सना और देश के उत्तरी इलाकों पर कब्जा कर लिया था। लोवकॉक ने कहा कि सोमवार को वह यमन के लिए चौथा सम्मेलन करेंगे और उन्हें उम्मीद है कि इसमें अन्य देशों के विदेश मंत्रियों सहित उच्च स्तर के प्रतिनिधि भाग लेंगे साथ ही इसमें खाड़ी देशों से भी मजबूत सहयोग मिलेगा।