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Wuhan Lab: दुनिया की सबसे बदनाम वुहान लैब में काम करने वाली विदेशी वैज्ञानिक ने कई बड़े खुलासे

Rani Sahu
28 Jun 2021 1:13 PM GMT
Wuhan Lab: दुनिया की सबसे बदनाम वुहान लैब में काम करने वाली विदेशी वैज्ञानिक ने कई बड़े खुलासे
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दुनिया की सबसे बदनाम वुहान लैब में काम करने वाली विदेशी वैज्ञानिक ने कई बड़े खुलासे किए हैं

Foreign Scientist In Wuhan Lab: दुनिया की सबसे बदनाम वुहान लैब में काम करने वाली विदेशी वैज्ञानिक ने कई बड़े खुलासे किए हैं. डेनियल एंडरसन (Danielle Anderson) चीन की वुहान लैब में महामारी की शुरुआत से पहले काम करती थीं और वह मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया की रहने वाली हैं. चमगादड़ में वायरस पर रिसर्च करने वाली विशेषज्ञ एंडरसन ऐसी अकेली विदेशी नागरिक हैं, जिन्होंने वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की बीएसएल-4 लैब में काम किया है. उन्होंने यहां नवंबर 2019 तक काम किया था. अब उन्होंने ब्लूमबर्ग को एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.

कोरोना वायरस चीन के वुहान शहर से फैलना शुरू हुआ और तेजी से इसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. महामारी की शुरुआत से ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि वायरस को इसी लैब में बनाया गया था (Danielle Anderson Wuhan Lab). ऐसे में एंडरसन का इंटरव्यू काफी जरूरी माना जा रहा है. इस पूरे विवाद में बैट वुमन शी झेंगली का भी नाम आ रहा है, जिसके साथ एंडरसन ने काम किया है. उन्होंने कहा कि लैब को लेकर जो भी बात की जा रही है उसमें आधा सच है. जानकारी को तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा है. यहां भी बाकी लैब की तरह ही काम होता है.
एंडरसन को काफी पसंद आई लैब
फिलहाल मेलबर्न के पीटर डोहर्टी इंस्टीट्यूट फॉर इंफेक्शन एंड इम्युनिटी में काम कर रहीं एंडरसन ने 2016 में वुहान के वैज्ञानिकों के साथ सहयोग करना शुरू किया था. उनकी रिसर्च इस बात पर केंद्रित थी कि इबोला और निपाह जैसे वायरस चमगादड़ों में कोई बीमारी क्यों पैदा नहीं करते हैं. 42 साल की एंडरसन ने वुहान लैब में इबोला पर रिसर्च करने को करियर की एक बड़ी उपलब्धि बताया है. वह उस समय वुहान में ही थीं, जब विशेषज्ञों को पता चला था कि वायरस (SARS-CoV-2) फैलना शुरू हो गया है. वह 2018 में अपनी पहली यात्रा के दौरान बायोकंटेनमेंट लैब को देख काफी खुश हुईं.
रिसर्च के लिए 45 घंटे की ट्रेनिंग ली
उन्होंने बताया कि इस लैब में हवा, पानी और कचरे को फिल्टर करने की व्यवस्था है. यहां उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए 45 घंटे की ट्रेनिंग तक लेनी पड़ी. जब उन्होंने पासिंग सर्टिफिकेट हासिल किया, तभी उन्हें लैब में रिसर्च करने की अनुमति मिली. वो वहां काम करने वाले बाकी वैज्ञानिकों के साथ लंच और डिनर पर भी जाती थीं (Covid Origin 19 Origin). लैब के वैज्ञानिक काम करते हुए सिर से लेकर पैर तक सेफ्टी गियर पहनते थे. जब भी कोई लैब से बाहर जाता था तो उसे कैमिकल और पर्सनल शावर लेना होता था.
वैज्ञानिकों के बीमार पड़ने का दावा?
बीते महीने ही 18 वैज्ञानिकों ने जरनल साइंस में कोविड-19 की उत्पत्ति की जांच की मांग की थी. इनका मानना है कि इसे लैब में बनाया गया है. कुछ रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया था कि नवंबर 2019 में इस लैब के तीन वैज्ञानिक कोविड जैसे लक्षण से बीमार हुए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था (Wuhan Lab Latest News). इसलिए दुनिया ये मांग कर रही है कि चीन वुहान लैब लीक के दावे की जांच करने दे. लेकिन एंडरसन कहती हैं कि वह वुहान में जितने भी लोगों को जानती हैं कि उनमें से कोई भी 2019 के आखिर तक बीमार नहीं पड़ा.
वायरस को प्राकृतिक मानती हैं एंडरसन
एंडरसन कहती हैं, 'अगर लोग बीमार हुए थे, तो मुझे लगता है कि मैं भी बीमार होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुझे वैक्सीन लगने से पहले मेरी सिंगापुर में जांच हुई थी, लेकिन मैं संक्रमित नहीं थी.' वह कहती हैं कि संक्रमण के लक्षण पता करने की एक प्रक्रिया होती है. उच्च जोखिम वाली लैब में इसका समान रूप से पालन होता है. हालांकि उन्होंने ये कहा कि वायरस का लैब से फैलना नामुमकिन भी नहीं है. वह जानती हैं कि वायरस लैब से आसानी से लीक हो जाते हैं. एंडरसन का मानना है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है. उनका कहना है कि ये लैब बहुत बड़ी है, इसलिए उन्हें साफतौर पर नहीं पता कि कौन किस चीज पर काम कर रहा था. लेकिन वह कोविड की जांच को जरूरी नहीं मानतीं.


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