चंडीगढ़ पीजीआई के ओटोलेरिनोलॉजी विभाग के डॉ. संदीप बंसल के मुताबिक ओएसए काफी घबराहट पैदा करने वाली कंडीशन है। इसे लेकर लोगों में जागरुकता की कमी है। रात को नींद न आने पर अक्सर लोग दवाई खाकर सोने की कोशिश करते हैं। ऐसे में बीमारी या कंडीशन बनी रहती है और उस पर काम नहीं किया जाता। ओएसए कुछ ऐसा नहीं है कि रात को नींद न आने पर दवाई खाकर ठीक कर लिया जाए। ओएसए बाकी स्लीप डिसऑर्डर से थोड़ा अलग है। यदि रात को व्यक्ति को नींद आने में कोई दिक्कत है तो उसके दो कारण हो सकते हैं। इसमें या तो व्यक्ति को रात में नींद नहीं आती या फिर रात को वह सोता है मगर सांस की दिक्कत(घुटन) महसूस करता है और बार-बार उठते हैं। यह दोनों ही स्थितियां आपस में बिल्कुल अलग हैं।
पहला केस इंसोम्निया का है जिसमें व्यक्ति मनोचिकित्सक के पास जा सकता है। वहीं दूसरा केस ओएसए का है। आब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्नोईया दिल से जुड़ी सभी बड़ी बीमारियों की जड़ है। वहीं वयस्कों और बच्चों में भी कई बीमारियों की जड़ है। कोरोना बीमारी में ओएसए एक स्वतंत्र रिस्क कारक है। इसके चलते व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती तक होना पड़ सकता है। स्टडीज में पता चला है कि 22 प्रतिशत पुरुष और 17 प्रतिशत महिलाएं ओएसए से पीड़ित हैं। डा. संदीप बंसल पीजीआई के इएनटी विभाग में स्लीप सर्विसेज के इंचार्ज हैं। उनके मुताबिक पीजीआई में वह ओएसए के हर महीने 30 नए मरीज आ रहे हैं। महीने में 15 से 20 स्लीप स्टडीज हो रही हैं। कोरोना काल में भी ऐसी 10 स्टडी की गई थी। उनके मुताबिक स्लीप एप्निया के कई कारण हो सकते हैं। ओएसए का मुख्य कारण मोटापा है और इसका इलाज संभव है।
ओएसए में मुख्य रुप से नींद के दौरान बार-बार सांस का कम होना शामिल है। इसके चलते सांस लेने में जोर लगाना पड़ता है। नींद के दौरान कई बार अंजाने में व्यक्ति सांस लेना बंद कर देता है। एक बार जब फिर से सांस लेने का सिग्नल आता है सांस खुलती है तो व्यक्ति घर्राटे लेने लगता है। वह लंबी सांस लेता है और कई बार अचानक हांफने लगता है, दम घुटने लगता है। ऐसे में वह उठ खड़ा होता है।