विश्व
World Environment Day: पर्यावरण के प्रति क्यों नहीं जागरूकता ?
Sanjna Verma
5 Jun 2024 9:17 AM GMT
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World Environment Day: वर्तमान में जिस प्रकार से तापमान बढ़ रहा है, उसका एक कारण यह भी है कि हमारा समाज पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं है। इसे सरकारी विफलता के रूप में देखा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सरकार केवल योजना बनाकर ही यह समझ लेती है कि उनका कर्तव्य पूरा हो गया, जबकि यह योजना नीचे तक जाए, यह जिम्मेदारी भी तो शासन की है, लेकिन शासन अभी तक पर्यावरण के मामले में कोई ठोस पहल नहीं कर सका। सरकार के सानिध्य में संचालित होने वाले गैर सरकारी संगठन भी पर्यावरण संरक्षण के अभियानों को अपनी आय का माध्यम मानकर ही कार्य करते हैं। इन संस्थाओं का कार्य कागजों पर सफलता दर्शाने वाला होता है, लेकिन धरातल पर उसकी परिणति वैसी नहीं होती जैसी दिखाई जाती है। पर्यावरण का अभियान केवल फोटो खिचाने तक ही सीमित होता जा रहा है।
देश में अनेक संस्थाओं द्वारा पौधारोपण के कार्य भी किए जाते हैं। विसंगति यह है कि Plantationकरने के बाद उन पौधों का क्या होता है। यह सब देखने का समय हमारे पास नहीं है। पौधों के लिए जल ही जीवन है और पौधा भी एक जीवित वनस्पति है। अगर किसी पौधे का जीवन जन्म के समय ही समाप्ति होने की ओर अग्रसर होता है तो स्वाभाविक रूप से यही कहा जा सकता है कि ऐसा करके हम निश्चित ही एक जीवन की हत्या ही कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति में हत्या के परिणाम क्या होते हैं, इसे बताने की आवश्यकता नहीं हैं, लेकिन यह सत्य है कि जिस पेड़ की असमय मौत होती है, उसकी आत्मा कराह रही होती है। हम अगर पेड़ या पौधे में जीवन का अध्ययन करें तो हमें स्वाभाविक रूप से यह ज्ञात हो जाता है कि जीवित वनस्पति जब मौत की ओर जाती है, तब उसकी क्या स्थिति होती होगी। अब जरा अपने शरीर का ही विचार कर लीजिए, उसे भोजन नहीं मिलेगा, तब शरीर का क्या हाल होगा।
वर्तमान में हम सब environmental pollution का शिकार हो रहे हैं। यह सब प्रकृति के साथ किए जा रहे खिलवाड़ का ही परिणाम है। हम सभी केवल इस चिंता में व्यस्त हैं कि पेड़ पौधों के नष्ट करने से प्रदूषण बढ़ रहा है, लेकिन क्या हमने कभी इस बात का चिंतन किया है कि हम प्रकृति संरक्षण के लिए क्या कर रहे हैं। क्या हम प्रकृति से जीवन रूपी सांस को ग्रहण नहीं करते? क्या हम शुद्ध वातावरण नहीं चाहते? तो फिर क्यों दूसरों की कमियां देखने में ही व्यस्त हैं। हम स्वयं पहल क्यों नहीं करते? आज प्रकृति कठोर चेतावनी दे रही है। बिगड़ते पर्यावरण के कारण हमारे समक्ष महामारियों की अधिकता होती जा रही हैं। अगर हम इस चेतावनी को समय रहते नहीं समझे तो आने वाला समय कितना विनाश कारी होगा, कल्पना कर सकते हैं।
वर्तमान में स्थिति यह है कि हम पर्यावरण को बचाने के लिए बातों से चिंता व्यक्त करते हैं। सवाल यह है कि इस प्रकार की चिंता करने समाज ने अपने जीवन काल में कितने पौधे लगाए और कितनों का संवर्धन किया। अगर यह नहीं किया तो यह बहुत ही चिंता का विषय इसलिए भी है कि जो व्यक्ति पर्यावरण के प्रभाव और दुष्प्रभावों से भली भांति परिचित है, वही निष्क्रिय है तो फिर सामान्य व्यक्ति के क्या कहने। ऐसे व्यक्ति यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि पर्यावरण और जीवन का अटूट संबंध है। यह संबंध आज टूटते दिखाई दे रहे हैं। प्राण वायु Oxygenभी दूषित होती जा रही है। वह तो भला हो कि ईश्वर के अंश के रूप में में भारत भूमि पर पैदा हुआ हमारे इस शरीर में ऐसा श्वसन तंत्र विद्यमान है, जो वातावरण से केवल शुद्ध ऑक्सीजन ग्रहण करता है, लेकिन सवाल यह है कि जिस प्रकार से देश में जनसंख्या बढ़ रही है, उसके अनुपात में पेड़ पौधों की संख्या बहुत कम है। इतना ही नहीं लगातार और कम होती जा रही है। जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।
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Sanjna Verma
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