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अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती का सामना कर रहे अमेरिका के ब्लैक-फुटेड फेरेट (नेवले की प्रजाति) को खतरे से बाहर निकालने की उम्मीद जग गई
अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती का सामना कर रहे अमेरिका के ब्लैक-फुटेड फेरेट (नेवले की प्रजाति) को खतरे से बाहर निकालने की उम्मीद जग गई है। दरअसल, उत्तरी अमेरिका के इस जीव का पहला सफल क्लोन 10 दिसंबर को पैदा हुआ है। खास बात यह है कि इसे जिस मादा की कोशिकाओं (cells) से बनाया गया है, उसकी मौत 30 साल पहले हो गई थी। इसके जन्म के लिए एक पालतू फेरेट को सरोगेट के तौर पर इस्तेमाल किया गया। वैज्ञानिक इस सफलता से बेहद उत्साहित हैं और क्लोनिंग के साथ-साथ विलुप्तप्राय जीवों को बचाने की कोशिश में इसे बड़ी उप्लब्धि माना जा रहा है।
क्यों जरूरी थी क्लोनिंग?
जूलॉजिस्ट्स का कहना है कि एलिजाबेथ एन नाम की फेरेट की सेहत ठीक है। उसके ऊपर फर निकल आए हैं और कॉलराडो के कार स्थित नैशनल ब्लैक-फुटेज फेरेट कंजर्वेशन सेंटर (NBFCC) में वह आराम से घूम रही है। आगे चलकर अगर एलिजाबेथ बच्चे पैदा करती है तो जेनेटिक-विविधता को बढ़ाने और बरकरार रखने में अहम भूमिका निभाएगी। दरअसल, आज जितने ब्लैक-फुटेड फेरेट मौजूद हैं वे सभी सिर्फ 7 मादाओं से पैदा हुए हैं जिसकी वजह से इस प्रजाति में जेनेटिक विवधता बेहद कम हो गई है।
क्या होगा फायदा?
अमेरिकी फिश ऐंड वाइल्डलाइफ सर्विस के मुताबिक सीमित जेनेटिक विविधता होने से किसी प्रजाति को पूरी तरह दोबारा लाना मुश्किल हो जाता है। कम विविधता की वजह से प्रजाति में बीमारियों, जेनेटिक समस्याओं, आसपास की दुनिया के अनुरूप खुद को बदलने की सीमित क्षमता और प्रजनन दर कम होने की आशंका बढ़ जाती है। जिस मादा, विला, से एलिजाबेथ को क्लोन किया गया है वह उन सातों जीवों से अलग है। इसलिए इसके प्रजनन करने पर जीन पूल बेहतर हो जाएगा। जेनेटिक टेस्टिंग से पता चला है कि विले के जीनोम में जीवित आबादी की तुलना में ज्यादा विविधता थी।
1988 में हो गई थी मादा की मौत
साल 2018 में वाइल्डलाइफ सर्विस ने पहली बार विलुप्तप्राय जीवों को बचाने और वापस लाने के लिए जेनेटिक इस्तेमाल की इजाजत Revive and Rescue नाम की गैर-प्रॉफिट संस्था को दी थी। क्लोनिंग के लिए एक पालतू मादा फेरेट के eggs में विला का जेनेटिक मटीरियल ट्रांसफर किया गया था। विला का जेनेटिक मटीरियल 1988 में फ्रीज कर दिया गया था। इससे बनने वाले embryo को सरोगेट फेरेट में ट्रांसफर किया गया।
इसी तरह क्लोन की गई थी डॉली
इसी तरह की प्रक्रिया दशकों पहले डॉली भेड़ को बनाने के लिए अपनाई गई थी। वहां सरोगेट उसी की प्रजाति की थी। हालांकि, यहां विलुप्तप्राय ब्लैक-फुटेड फेरेट मादा को खतरे में डालने से बचने के लिए दूसरी प्रजाति का इस्तेमाल किया गया। Revive and Rescue के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर रायन फेलन का कहना है कि अब एलिजाबेथ को देखने से उसकी और ऐसी सभी प्रजातियों के संरक्षण की उम्मीद जगती है जो संकट का सामना कर रही हैं। इस वक्त दुनिया में कुल 400-500 फेरेट हैं लेकिन अब चिड़ियाघरों, वन्यजीव संगठनों और आदिवासियों के योगदान से इनकी आबादी बढ़ रही है।
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