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क्या इतिहास से शीतकालीन खेलों का अस्तित्व खत्म हो जाएंगे?

Neha Dani
5 Feb 2022 9:20 AM GMT
क्या इतिहास से शीतकालीन खेलों का अस्तित्व खत्म हो जाएंगे?
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प्रभाव को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने पीओडब्लू को आर्थिक रूप से सहायता भी की है.

बीजिंग विंटर ओलंपिक में पहली बार पूरी तरह कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल हो रहा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे वैश्विक तापमान वृद्धि पर काफी ज्यादा असर पड़ेगा. अगर यही हाल रहा, तो शीतकालीन खेलों का अस्तित्व खत्म हो सकता है.इस बार विंटर ओलंपिक का आयोजन चीन में किया जा रहा है. यह आयोजन 4 फरवरी 2022 से 20 फरवरी 2022 तक होगा. इसमें डाउनहिल स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग जैसे खेल भी शामिल हैं जिनके लिए काफी ज्यादा बर्फ की जरूरत होती है. लेकिन चीन में जिस जगह पर इस खेल का आयोजन किया जा रहा है वहां पारंपरिक रूप से काफी कम बर्फ होती है. यह समस्या 2014 में भी सामने आयी थी. उस समय इस खेल का आयोजन रूस के सोची में हुआ था. यह इलाका उपोष्णकटिबंधीय (मकर रेखा तथा कर्क रेखा के समीप का क्षेत्र) था. चीन में डाउनहिल स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग का आयोजन यांगकिंग और जांगजिआकू के बंजर पहाड़ों में किया जाना है. यहां पूरी तरह कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया जाएगा. ऐसे में इसका काफी ज्यादा असर पर्यावरण पर होगा. स्ट्राउससबर्ग यूनिवर्सिटी में हाइड्रोलॉजी की प्रोफेसर कारमेन डी जोंग ने बीजिंग में होने वाले शीतकालीन खेलों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर शोध किया है. वह कहती हैं, "बर्फ का उत्पादन करने वाली तोपें न सिर्फ काफी ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करती हैं, बल्कि इसके लिए 30 किलोमीटर दूर से पानी भी लाना पड़ता है" हालांकि, बर्फ बनाने की प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि कई और भी कारण हैं जिनकी वजह से डी जोंग ने इस साल के विंटर ओलंपिक को 'अब तक का सबसे अस्थिर खेल' करार दिया है. वह कहती हैं कि स्की रन बनाने के लिए काफी पेड़ों को काटा गया है जिसके कारण मिट्टी का कटाव बढ़ जाएगा. साथ ही, खेल गांव बसाने और बुनियादी ढांचे जैसे कि सड़क और पार्किंग का निर्माण करने के लिए भी भारी मशीनों का इस्तेमाल किया गया है. एक अनुमान के मुताबिक, इससे एक करोड़ टन कार्बन का उत्सर्जन हुआ है.

ओलंपिक खेल का आयोजन करने वाली समिति 'बीजिंग आयोजन समिति (बीओसी)' ने वादा किया था कि वह कम से कम कार्बन उत्सर्जन करने का प्रयास करेगी और ज्यादातर काम अक्षय ऊर्जा की मदद से किया जाएगा. जोंग कहती हैं कि समिति ने आयोजन स्थल के लिए विंड टरबाइन और सोलर फार्म का निर्माण किया है, इसके बावजूद काफी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन हुआ है. उन्होंने कहा कि शुष्क क्षेत्र में बर्फ बनाने के लिए पानी को पहाड़ पर पहुंचाया जा रहा है. इसके 'इस्तेमाल में खर्च होने वाली ऊर्जा' को जलवायु तटस्थता की गणना में शामिल नहीं किया गया है. वह कहती हैं, "समस्या यह है कि बीजिंग की जलवायु बर्फ बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है. शुष्क मौसम होने की वजह से तेज हवाएं बहती हैं और धूल उड़ाती हैं. ये धूल बर्फ पर जम जाती है. इसका साफ मतलब है कि यूरोपीय आल्प्स की तुलना में इस इलाके में दोगुनी बर्फ की जरूरत होगी. इसलिए, स्नो गन का इस्तेमाल सामान्य से अधिक समय तक किया जा रहा है और इसके लिए काफी ज्यादा पानी का इस्तेमाल हो रहा है" यह समस्या इसलिए बढ़ गई है कि इस खेल का आयोजन ऐसे शुष्क इलाकों में किया जा रहा है जहां पानी और बर्फ की कमी है. अधिकांश यूरोपीय या उत्तरी अमेरिकी देश खर्च और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की वजह से इस खेल का आयोजन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में इस खेल का आयोजन एशियाई देश कर रहे हैं. शीतकालीन खेलों के भविष्य को खतरा कृत्रिम बर्फ पर बीजिंग की निर्भरता कोई नई बात नहीं है. 2014 के विंटर ओलंपिक के दौरान रूस के सोची में 80 फीसदी कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया गया था. 2018 में विंटर ओलंपिक का आयोजन उत्तरी कोरिया के प्योंगयांग में किया गया था. यहां भी 90 फीसदी कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल हुआ था. 2010 का विंटर ओलंपिक कनाडा के वैंकूवर में आयोजित किया गया था. यहां गर्मी की वजह से कृत्रिम बर्फ बनाना काफी मुश्किल काम था, इसलिए हेलिकॉप्टर से बर्फ को वहां ले जाया गया.
अगर बर्फ बनाने के लिए अक्षय ऊर्जा से संचालित होने वाली मशीनों का इस्तेमाल करने के बावजूद वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नाटकीय रूप से कम करने में सफलता नहीं मिलती है, तो इसका साफ असर शीतकालीन खेलों के भविष्य पर पड़ेगा. एक नए अध्ययन से पता चला है कि ऐसा होने पर विंटर ओलंपिक का आयोजन करने वाले पिछले 21 आयोजकों में से सिर्फ एक ही 2100 तक इस खेल के लिए 'सुरक्षित हालात' उपलब्ध करा सकेंगे. हालांकि, अगर पेरिस जलवायु समझौते के उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा कर लिया जाता है, तो जलवायु के अनुकूल मेजबान देशों की संख्या बढ़कर आठ हो जाएगी. इस अध्ययन में खास तौर पर गर्म मौसम में स्कीइंग की सुरक्षा को लेकर एथलीटों से बात की गई है. साथ ही, जलवायु से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है. जिस तरीके से धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है वह जारी रही, तो अगले 30 सालों के अंदर विंटर ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाले देशों की संख्या कम हो जाएगी. अध्ययन के मुख्य लेखक और वॉटरलू यूनिवर्सिटी में भूगोल और पर्यावरण प्रबंधन के प्रोफेसर डेनियल स्कॉट कहते हैं, "अगर हम उत्सर्जन में कटौती की दर से नीचे जाते हैं, तो इस सदी के मध्य तक हमारे पास सिर्फ चार ऐसे देश होंगे जहां शीतकालीन खेलों का आयोजन जलवायु के अनुकूल स्थितियों में हो सकेगा. वहीं, इस सदी के अंत में जापान का सप्पोरो ही एक ऐसा इलाका होगा जहां ऐसे खेलों का आयोजन किया जा सकेगा" स्कॉट ने कहा कि 2014 में रूस के सोची में खेल का आयोजन हुआ था. यह जगह पहले से इस खेल के हिसाब से जलवायु के अनुकूल नहीं थी. जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उससे कई और देशों में इस खेल का आयोजन नहीं हो पाएगा. कई स्की एथलीटों को भी "अपने खेल के भविष्य के बारे में वाकई चिंता है" संस्थागत परिवर्तन की जरूरत सिर्फ ओलंपिक की मेजबानी करने वाली जगहों को जलवायु के अनुकूल बनाने से समस्या का हल नहीं होगा. ऑस्ट्रिया के इंसब्रुक में मौजूद जलवायु को लेकर काम करने वाला समूह 'प्रोटेक्ट आवर विंटर्स यूरोप (पीओडब्ल्यू)' के समन्वयक जोरेन रोंग कहते हैं कि खेल पर ध्यान केंद्रित करने' और हर दो साल में एक बड़े आयोजन के दौरान कार्बन के उत्सर्जन को कम करने से वैश्विक तापमान में वृद्धि कम नहीं होने वाली है. रोंग कहते हैं, "पीओडब्ल्यू चाहती है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति, ओलंपिक खेल का आयोजन करने वाले अलग-अलग देश और इससे जुड़े लोग एक मंच पर आएं. वे ऊर्जा के स्रोत, वितरण और उसके उपभोग को लेकर सरकारों से संस्थागत परिवर्तन की मांग करें और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं" अमेरिकी स्कीयर रिवर रैडामस यूथ ओलंपिक गेम्स में तीन बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. उनकी उम्र 23 वर्ष है. वे इस बार भी बीजिंग ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले हैं. रैडामस भी अपने खेल पर जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने पीओडब्लू को आर्थिक रूप से सहायता भी की है.


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