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क्यों पंजशीर से खौफ खाता है तालिबान? घाटी में घुसने की अभी तक हिम्मत नहीं, पढ़े पूरी कहानी
jantaserishta.com
20 Aug 2021 11:53 AM GMT
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अफग़ानिस्तान के जिस इलाक़े की मिसाल दी जाती रहेगी, वो है इस देश का वो अभेद्य किला...
तालिबान ने जिस तरह से रातो-रात अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया, उससे पूरी दुनिया हैरान है. हैरान इसलिए नहीं है कि तालिबान ने कब्जा कर लिया, बल्कि इसलिए है कि तालिबान ने जिस तेज़ी से कब्जा किया, वो किसी ने नहीं सोचा था. तालिबान के लड़ाके रातो-रात राष्ट्रपति भवन में घुसे और उधर, राष्ट्रपति अशरफ गनी अपना माल-मत्ता समेट कर मुल्क से निकल लिए. अफगान सेना ने तालिबान के सामने घुटने टेक दिए. लेकिन अफगानिस्तान का एक प्रांत ऐसा भी है, जो तालिबान के लिए अभी भी चुनौती बना हुआ है. तालिबान ने उस प्रांत से दूरी बना रखी है.
अब आने वाले कई सालों तक महज़ 70 हज़ार तालिबानी लड़ाकों के आगे तमाम हथियारों से लैस साढ़े तीन लाख अफग़ान फ़ौजियों के घुटने टेकने के किस्से सुने और सुनाए जाते रहेंगे. लेकिन इसी के साथ अपने जज़्बे और जिदारी के लिए अफग़ानिस्तान के जिस इलाक़े की मिसाल दी जाती रहेगी, वो है इस देश का वो अभेद्य किला, जिसे आज तक कोई जीत नहीं सका. पंजशीर यानी पांच शेरों की घाटी. जी हां, यही वो जगह है जहां तालिबान का भी कोई ज़ोर नहीं चलता. यहां ना तो देश के दूसरे हिस्सों की तरह कोई अफरातफरी है और ना ही पंजशीर के रहनेवाले लोग तालिबान से ख़ौफ खाते हैं. बल्कि उन्होंने तो ये तय कर रखा है कि अगर तालिबान ने गलती से भी इधर आने की हिमाक़त की, तो उसे ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा कि इन आतंकियों की सात पुश्तें याद रखेंगी.
काबुल के उत्तर में लगभग 150 किलोमीटर दूर मौजूद इस घाटी की आबादी लगभग 2 लाख है. और ये इस इलाक़े का इतिहास रहा है कि पंजशीर पर कभी भी कोई बाहरी ताकत अपनी हुकूमत नहीं चला सकी. अफ़गानिस्तान के 34 सूबों में से यही वो सूबा है, जहां पहले भी तालिबान का कोई ज़ोर नहीं चला. और इस बार भी तालिबान यहां से दूर ही है. और तो और 70 और 80 के दशक में जब सोवियत सैनिकों ने अफगानिस्तान पर धावा बोला था, तब भी उन्हें यहां के लड़ाकों से मुंह की खानी पड़ी थी और वो पंजशीर से पार नहीं पा सके थे. अब सवाल ये है कि आख़िर पंजशीर में ऐसा क्या है कि कभी भी कोई दूसरी ताक़त उस पर हावी नहीं हो सकी? तो आइए, आपको इसका जवाब सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं.
असल में पंजशीर में ताजिक समुदाय के लोगों की एक बड़ी रिहाइश है. पूरे अफ़गानिस्तान की आबादी में ताज़िकों का हिस्सा करीब 25 से 30 फीसदी है. इनके अलावा यहां हज़ारा समुदाय के लोग भी रहते हैं, जिन्हें चंगेज़ खां का वंशज समझा जाता है. यहां नूरिस्तानी और पशई समुदाय के लोगों की भी ठीक-ठीक आबादी है. लेकिन इन सारे समुदायों में जो एक बात कॉमन है, वो है इनका किसी ग़ैर ताकत के आगे घुटने ना टेकने का जज़्बा. और इस बार भी इन लोगों ने कुछ ऐसा ही तय कर रखा है. ये इन लोगों का जज़्बा ही है, जिसकी बदौलत अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति रहे अमरुल्लाह सालेह ने ना सिर्फ़ इसी पंजशीर घाटी में शरण ले रखी है, बल्कि इसी घाटी में रहनेवाले लोगों के दम पर उन्होंने खुद अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति भी घोषित कर दिया है.
वैसे तो पंजशीर में तालिबान से टकरानेवाले बहादुरों की एक अच्छी खासी फ़ौज है, लेकिन यहीं से आनेवाले अहमद शाह मसूद का नाम इस कतार में सबसे आगे है. दरअसल, अहमद शाह मसूद पंजशीर की मिलिशिया के वो नेता थे, जिन्होंने तालिबान को नाको चने चबवा दिए थे. पंजशीर के शेर के तौर पर मशहूर अमहद शाह मसूद ने ही नॉर्दन अलायंस की नींव रखी थी और उनके तमाम यूरोपीय मुल्कों के साथ भी बेहद करीबी रिश्ते थे. लेकिन हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ झंडाबरदारी करनेवाले मसूद से ये आतंकी इतने खार खाते थे कि उन्होंने धोखे से अमहद शाह मसूद की जान ली थी. अल कायदा के एक आतंकी ने टीवी पत्रकार बन कर उनसे मुलाकात करने का वक़्त लिया और उन पर हमला कर उनकी जान ले ली थी. लेकिन उनके बाद अब उनके बेटे अहमद मसूद ने पंजशीर के इस मिलिशिया की कमान संभाली है और उन्होंने तालिबान से मुकाबले का ऐलान भी कर दिया है.
पंजशीर के लोगों में अपनी आज़ादी और अपने इलाक़े को लेकर जो लगाव है, वो इस इलाक़े को देश के दूसरे हिस्सों से अलग करती है. आज जब तालिबान लगभग पूरे अफगानिस्तान में दोबारा काबिज हो चुका है, यहां के लोग तालिबान से मुकाबले की तैयारी कर रहे हैं. उनका कहना है कि वो तालिबान से आखिरी दम तक लड़ेंगे, फिर चाहे इसका अंजाम कुछ भी क्यों ना हो. और यही वो वजह है, जिसकी बदौलत अब पंजशीर में तालिबान के खिलाफ़ दूसरे समुदायों और मिलिशिया के लड़ाके भी एकजुट होने लगे हैं, ताकि वो तालिबान से अपने देश को फिर से आज़ाद करा सकें. हालांकि तालिबान की ताकत के आगे पंजशीर की ताकत कागज़ों पर तो कुछ भी नहीं है, लेकिन जिदारी के मामले में इनका कोई सानी नहीं. पंजशीर ने अपने लड़ाकों की सही-सही तादाद का तो खुलासा नहीं किया, लेकिन अंदाज़ा ये है कि यहां लगभग 6 हज़ार लड़के तालिबान से टकराने को तैयार है.
फिलहाल खबर ये भी है कि इसी पंजशीर में तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए 10 हजार से ज्यादा फौजी इकट्ठा हो चुके हैं जो तालिबान का सामना करना चाहते हैं. पंजशीर में तालिबान के खिलाफ जो देशभक्त लड़ाके जमा हुए हैं उनमें अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और अफगानिस्तान के वॉर लॉर्ड कहे जाने वाले जनरल अब्दुल रशीद दोस्तम की फौजें शामिल हैं. पंजशीर को तालिबानियों के रॉकेट्स और गोलियों का डर नहीं है, बल्कि उन्हें अगर किसी बात का डर है, तो वो है तालिबानियों को उस व्यूह रचना का, जिससे उन्हें मुश्किल हो सकती है. असल में पंजशीर को लगता है कि तालिबान उन्हें काबू करने के लिए उन पर सीधा हमला तो नहीं करेगा, लेकिन उन चारों तरफ से पहरे लगा देगा. ताकि उनके खाने-पीने की और दूसरी जरूरी चीज़ों की कमी हो जाए.
पंजशीर को तालिबान से मुकाबले कि लिए लेटेस्ट हथियारों की भी ज़रूरत है और उन्हें शिकायत है कि सरकार ने उनकी इन ज़रूरतों की तरफ कभी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. पंजशीर ही वो जगह है, जिसे नॉर्दन एलायंस का गढ़ माना जाता है. 1996 में जब तालिबा ने काबुल पर कब्ज़ा कर लिया था, तब पंजशीर के शेर अमहद शाह मसूद ने ही नॉर्दन एलायंस की बुनियाद रकी थी. तब इसका पूरा नाम था- यूनाइटेड इस्लामिक फ्रंट फॉर द साल्वेशन ऑफ अफग़ानिस्तान. धीरे-धीरे इस एलायंस की ताकत बढ़ती रही और ताजिक समुदाय के अलावा दूसरे नस्लीय खेमे भी इसके साथ गए. और फिर नॉर्दन एलांयस ने अफगानिस्तान पर राज भी किया. इसी नॉर्दन एलायंस को भारत, ईरान, रुस, तुर्की, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों ने भी सपोर्ट किया. लेकिन बाद में ये इससे अलग होकर अफगानिस्तान की सियासी पार्टियों ने नई सरकार बनाई.
अब पंजशीर की एक्जैक्ट लोकेशन और इसकी कुछ और खूबियों की बात करते हैं. काबुल से 150 किमी दूर मौजूद ये इलाक़ा हिंदुकुश की पहाड़ियों के क़रीब है. यहां से पंशजीर नदी बहती है और ये पूरा का पूरा इलाका इसी नदी के इर्द-गिर्द आबाद है. पंजशीर से एक अहम हाई-वे है, जहां से हिंदुकुश तक पहुंचा जा सकता है. यहीं खवाक पास से उत्तरी मैदानों तक पहुंचा जा सकता है और यहीं अंजोमन पास से बादाखशन तक रास्ता जाता है. पंजशीर का ये इलाक़ा खनिज पदार्थों के मामले में काफी अमीर है. ये और बात है कि विकास और खनन की तकनीकों की कमी से आबादी अब भी गरीब ही है. मध्य काल में पंजशीर का इलाक़ा चांदी के खनन के लिए काफी मशहूर था. 1985 तक यहां से 190 कैरेट के क्रिस्टल तक निकाले जा चुके हैं. यहां के क्रिस्टल दूसरे इलाक़ों के क्रिस्टल के मुकाबले कहीं ज़्यादा बेहतर माने जाते हैं. यहां जमीन के नीचे बेशकीमती पत्थर पन्ना का भी विशाल भंडार है लेकिन पन्ना के इस विशाल भंडार का खनन तो दूर, अभी तक इसे छुआ भी नहीं गया है.
ज़ाहिर है किसी पिछड़े या विकासशील देशों के किसी दूसरे इलाक़े की तरह पंजशीर भी सियासी इच्छाशक्ति की कमी और भ्रष्टाचार का शिकार होता रहा है. तभी तो सात ज़िलों वाले इस सूबे के 512 गावों में आज तक बिजली और पीने के पानी की सप्लाई नहीं आई है और ये इलाका आज भी विकास की राह देख रहा है.
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