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सलमान रुश्दी की किताब द सेटेनिक वर्सेज विवादित क्यों? जारी किया था मौत का फतवा

Neha Dani
13 Aug 2022 5:06 AM GMT
सलमान रुश्दी की किताब द सेटेनिक वर्सेज विवादित क्यों? जारी किया था मौत का फतवा
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कट्टरपंथियों ने इस किताब के पब्लिशर को भी निशाना बनाकर हमला किया था।

न्यूयॉर्क: भारतीय मूल के प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में हमला हुआ है। उन्हें गंभीर हालात में अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। अभी तक हमले के पीछे की वजह का पता नहीं चल सका है। सलमान रुश्दी अपने उपन्यास द सेटेनिक वर्सेज को लेकर लंबे समय से विवादों के घेरे में रहे हैं। यह किताब आज भी दुनियाभर के कई मुस्लिम देशों में प्रतिबंधित है। उनकी मौत को लेकर ईरान के सर्वोच्च धार्मिक गुरु अयातुल्लाह अली खुमैनी ने फतवा भी जारी किया था। विवाद के बावजूद ब्रिटेन और अमेरिका में रुश्दी को भरपूर सम्मान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें फ्रांस ने भी कमांडर डी ल'ऑर्ड्रे डेस आर्ट्स एट डेस लेट्रेस नियुक्त किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि द सेटेनिक वर्सेज में ऐसा क्या था, जिसे लेकर कट्टरपंथी उनकी मौत चाहने लगे।



1988 में प्रकाशित हुआ था द सेटेनिक वर्सेज
द सेटेनिक वर्सेज सलमान रुश्दी का चौथा उपन्यास था, जो 1988 में प्रकाशित हुआ। इस किताब ने बाजार में आते ही तहलका मचा दिया। इसे लेकर विवाद इतना बढ़ा कि दुनियाभर के कई देशों ने इस उपन्यास को तत्काल प्रतिबंधित कर दिया। भारत में भी सलमान रुश्दी की द सेटेनिक वर्सेज उपन्यास पर पाबंदी है। इस उपन्यास की खरीद या बिक्री को पूरी तरह से गैर कानूनी घोषित किया गया है।


रुश्दी पर पैगंबर के अपमान का लगाया गया आरोप
कट्टरपंथियों का दावा है कि इस उपन्यास में सलमान रुश्दी ने पैगंबर मोहम्मद का अपमान किया है। दावा किया गया कि इस किताब का शीर्षक एक विवादित मुस्लिम परंपरा के बारे में है। इसे पढ़ने वालों ने कहा कि सलमान रुश्दी ने अपनी किताब में इस परंपरा को लेकर खुलकर लिखा है। जिसके बाद पूरी दुनिया में इस उपन्यास को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गए। दुनियाभर के मुस्लिम धर्मगुरुओं और स्कॉलर्स ने इस उपन्यास पर तत्काल बैन लगाने की मांग की। जिसके बाद द सेटेनिक वर्सेज को प्रतिबंधित कर दिया गया।

खुमैनी ने जारी किया था मौत का फतवा, ट्रांसलेटर की हत्या
इस किताब को लेकर ईरान के सर्वोच्च धर्मगुरु अयातुल्लाह अली खुमैनी ने सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया था। इतना ही नहीं, इस उपन्यास के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की भी हत्या कर दी गई। इसके अलावा इस उपन्यास के इटैलियन अनुवादक पर भी जानलेवा हमले हुए। कट्टरपंथियों ने इस किताब के पब्लिशर को भी निशाना बनाकर हमला किया था।

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