मिसाइल परीक्षणों ने पास-पड़ोस के देशों के साथ-साथ अमेरिका को भी हैरत में डाल रखा है। बीते रविवार को उत्तर कोरिया ने अब तक की अपनी सर्वाधिक शक्तिशाली मिसाइल का परीक्षण करने का दावा किया। इस साल की शुरुआत से वह लगातार मिसाइलें दाग रहा है। इन परीक्षणों के पीछे उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन का क्या मकसद है, इसे लेकर कई तरह के कयास लगाए गए हैं।
परमाणु शक्ति की मिले मान्यता
विश्लेषकों का कहना है कि 2022 के पहले चार हफ्तों में सात मिसाइलों के परीक्षण कर किम ने अपने देश की जनता के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी खास संदेश देने की कोशिश की है। वे शायद यह बताना चाहते हैं कि मौजूदा वैश्विक हालात के बीच उत्तर कोरिया भी एक मजबूत और प्रभावशाली ताकत है। सियोल स्थित एवहा वूमन्स यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय की एसोसिएट प्रोफेसर लीफ-एरिक एजली ने अमेरिकी टीव चैनल सीएनएन से कहा- 'जिस समय दुनिया के संसाधन दूसरी जगहों पर लगाए जा रहे हैं, किम एशिया को अस्थिर करने की धमकी दे रहे हैं। वे चाहते हैं कि दुनिया अब उत्तर कोरिया को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दे।'
उत्तर कोरिया ने इस वर्ष जिन सात मिसाइलों के परीक्षण किया, माना जाता है कि वे अलग-अलग क्षमताओं की हैं। उन्हें हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल भी शामिल है, जिसे अभी दुनिया की सबसे शक्तिशाली मिसाइलों में एक गिना जाता है। इसके अलावा उसने ऐसी क्रूज मिसाइलों के परीक्षण भी किए हैं, जो अमेरिका के पास लंबे समय से मौजूद हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इन मिसाइलों का परीक्षण कर किम ने यह बताना चाहा है कि वे उत्तर कोरिया को ऐसी ताकत बना रहे हैं, जो न सिर्फ अपने पड़ोसी देशों, बल्कि अमेरिका के सामने भी तन कर खड़ा हो सके।
दक्षिण कोरिया में अगले महीने हैं चुनाव
बताया जाता है कि इस रविवार को उत्तर कोरिया ने जिस अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया, वह प्रशांत महासागर में मौजूद अमेरिकी द्वीप गुआम तक मार करने में सक्षम है। जानकारों का कहना है कि किम अगले महीने दक्षिण कोरिया में होने वाले चुनाव के बाद वहां बनने वाली सरकार को लेकर चिंतित हैं। इस चुनाव में कंजरवेटिव उम्मीदवार यून सुक यिओल के जीतने की काफी संभावना है। समझा जाता है कि यून की सरकार दक्षिण कोरिया की वर्तमान सरकार की तुलना में उत्तर कोरिया के प्रति अधिक सख्त रुख अपनाएगी।
सियोल स्थित कूकमिन युनिवर्सिटी में प्रोफेसर आंद्रेई लानकोव ने रूसी थिंक टैंक वल्दाई क्लब की वेबसाइट पर एक ब्लॉग मे लिखा है- 'दक्षिण कोरिया के कंजरवेटिव एक अलग कोरिया के अस्तित्व को ही नहीं मानते।'
विशेषज्ञों ध्यान दिलाया है कि अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से जो बाइडन ने उत्तर कोरिया के मुद्दे को ठंडे बस्ते में रखा है। उनका ज्यादा ध्यान ताइवान और यूक्रेन पर केंद्रित रहा है। इसीलिए जनवरी में किए गए उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों पर अमेरिका की वैसी प्रतिक्रिया नहीं आई, जैसी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समय आती थी। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि किम खबरों में रहना पसंद करते हैं। इसलिए वे लगातार मिसाइल परीक्षण कर विश्व मंच पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराने में जुटे हुए हैं।