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पृथ्वी को गर्म करने की प्रक्रियाओं तक को रोकने में इसकी महती भूमिका है
हाल ही में हुए ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (Glasgow Climate Summit) में भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का प्रयास ज्यादा दिखा यानि वायुमंडल पर ज्यादा जोर रहा. यह समझौता भी जलवायु तंत्र में महासागरों (Oceans) की भूमिका को सही तरह से रेखांकित करता दिखाई नहीं दिया. इसमें जहां कई देशों ने जमीन से होने वाले उत्सर्जन को काबू का इरादा तो जताया, लेकिन महासागरों के लिए कोई लक्ष्य नहीं बनाए गए. लेकिन महासागर पर्यावरण को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाते हैं जो इंसानों तक के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जरूरी है. यहां तक कि वह पृथ्वी को गर्म (Warming of Earth) करने की प्रक्रियाओं तक को रोकने में इसकी महती भूमिका है.
महासागरों (Oceans) की क्षमता को हमेशा नजरअंदाज किया गया है यह इस तथ्य से पता चलता हैकि औद्योगीकरण के युग से ही महासागरों ने मानव जनित ऊष्मा का 93 प्रतिशत हिस्सा खुद अवशोषित किया है. इसमें कुल मानव जनित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का एक तिहाई हिस्सा शामिल है. इसके प्रभाव बहुत गहरे रहे . इससे पानी की ऊष्मीय विस्तार (Thermal Expansion) हुआ जिससे समुद्र जलस्तर बढ़ गया, महासागरों का अमलीयकरण हुआ, ऑक्सीजन की हानि हुई और बहुत सारे महासागरीय जीवों को अपना घर बदलना पड़ा. इससे एक खतरे वाली बात यह रही कि इससे महासागरों की गैसें अवशोषण करने की क्षमता कम हो गई.
इसीलिए जरूरी है कि समुद्री उद्योंगों (Marine Industry) में जरूरी बदलाव हों फिलहाल जहाज उद्योग अकेले जर्मनी के द्वारा पैदा किए जाने वाला कार्बन फुटप्रिंट (Carbon Footprint) का उत्सर्जन कर रही है. अगर इसे एक देश माना जाए तो जहाज उद्योग (Shipping Industry) दुनिया का छठा सबसे बड़ा उत्सर्जक है. वैसे तो अंतरराष्ट्रीय समुद्रीय संगठन के एजेंडा में यह शीर्ष पर है, लेकिन जहाजों का कारण होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित नहीं हुए है. फिलहाल भोजन तंत्र उत्सर्जन आधारित कृषि, मछली पकड़ना, प्रसंस्कृत खाद्य दुनिया के एक तिहाई उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.
सही समुद्री भोजन (Marine Food) से पर्यावरण (Environment) के लिहाज से भी फायदेमंद हो सकता है. इसमें संधारणीय प्रंबंध तकनीकों वाली मत्स्य पालन वाला भोजन शामिल है. बाजार और तकनीक का उपयोग बड़े पैमाने पर उत्पादन और समुद्री घास की खपत के प्रबंधन के लिए किया जाना चाहिए. कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने वाले मैनग्रोव, समुद्री घास और नमकीन दलदलों जैसे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को बहाल और संरक्षित करना फायदेमंद हो सकता है. लेकिन ऐसे तंत्र महासागरीय तंत्र के स्वास्थ्य पर बहुत निर्भर करते हैं. प्लास्टिक प्रदूषण महासागरों की CO2 अवशोषण क्षमता को बहुत प्रभावित कर रहा है.
इसमें करीब 1.5 लक्ष्य हासिल करने के लिए उत्सर्जन कम करने की मात्रा का दसवां हिस्सा कम किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का आंकलन है कि समुद्र तटीय पवन (Coastal Wind) दुनिया को वर्तमान दर से 18 गुना ज्यादा ऊर्जा दे सकती है. सच कहा जाए तो एक दशक से जलवायु वार्ताओं में महासागरों (Oceans) को गंभीरता से शामिल नहीं किया जा रहा है. जहां वे COP26 सहित सभी वार्ताओं का हिस्सा रहे , वहां तटीय इलाकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के रूप में समुद्र जलस्तर के बढ़ने की चिंता के तौर पर ही रहे. ग्लासगो सम्मेलन में महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्रों के एकता को सुनिश्चित करने के महत्व को पहचाना गया.
ग्लासगो सम्मेलन (Glasgow Summit) में महासागरों (Oceans) परआधारित कदमों को मजबूत बनाने के लिए महासागर और जलवायु परिवर्तन पर वार्ता स्थापित की गई. इसमें संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के कई संकायों को इस पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया गया. फिलहाल किसी के लिए कोई बाध्यकारी कार्य करने का फैसला नहीं लिया गया है. पांच साल में पहली बार "महासागरों के कारण" घोषणापत्र जारी किया गया.
यह जरूरी हो गया है कि दुनिया के तमाम देश अपनी समुद्री सीमाओं (Coastal regions) के भीतर जलवायु (Climate Change) प्रभावों की रिपोर्ट करने के साथ उन की जिम्मेदारी लें. लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है समुद्री क्षेत्रों (Marine Regions) के लिए कानून बनाने की जरूरत अब बढ़ती जा रही है. एक मूलभूत खाका तैयार होना जरूरी है जिसके आधार पर यह तय किया जा सके कि महासागरों के लिए वित्त कैसे निर्धारित होगा. फिर भी COP26 में महासागरों के लिए संबंधी जलवायु कार्य सुनिश्चित नहीं किए गए हैं जो कि बहुत जरूरी है.
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