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3000 साल पहले क्यों छोटा हो गया था मानव मस्तिष्क? पढ़ें ये स्टडी
Renuka Sahu
2 Nov 2021 2:45 AM GMT
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फाइल फोटो
वक्त के साथ-साथ कंप्यूटर का आकार भी छोटा होता गया. यही हाल हमारे दिमाग का भी हुआ है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वक्त के साथ-साथ कंप्यूटर का आकार भी छोटा होता गया. यही हाल हमारे दिमाग (Human Brain) का भी हुआ है. मानव मस्तिष्क का आकार पूरे मानव इतिहास में कई बार बदल गया है, लेकिन इंसानी दिमाग में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन करीब 3 हजार साल पहले हुआ है. खासकर इंसनी दिमाग के आकार में आए परिवर्तन ने वैज्ञानिकों को स्तब्ध कर दिया है. वैज्ञानिकों ने इसके लिए कई थ्योरी भी दी. लेकिन शायद इसका सटीक जवाब चीटियों के पास है. एक नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने इस ओर संकेत दिए हैं.
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दावा किया है कि 3000 साल पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने दिमाग को छोटा करना शुरू कर दिया. इसके पीछे एक अनजान ताकत थी. जिसे वैज्ञानिक चीटियां कह रहे हैं. आप सच पढ़ रहे हैं. वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग के छोटा होने के पीछे की वजह चीटियों के पास से खोजी है.
वैज्ञानिकों ने जब चीटियों के दिमाग के विकास का अध्ययन किया तब उन्हें पता चला कि इंसानों के दिमाग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा. असल में मामला ये है कि जब कोई जीव समूह या समुदाय या सभ्यता में एकसाथ विकास करता है, तब वह अपने दिमाग का ज्यादा उपयोग करता है. इसमें कलेक्टिव इंटेलिजेंस यानी सामूहिक बुद्धि का उपयोग होता है. इसमें कलेक्टिव इंटेलिजेंस यानी सामूहिक बुद्धि का उपयोग होता है. अगर चीटियों और इंसानों के दिमाग के प्राचीन दर्ज इतिहासों को खंगाला जाए तो पता चलता है जैसे-जैसे दिमाग का उपयोग सामूहिक तौर पर शुरु हुआ, दिमाग छोटे होते चले गए.
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 985 जीवाश्म और आधुनिक मानव मस्तिष्क का विश्लेषण किया है. वैज्ञानिकों ने 21 लाख साल पहले मिले दिमाग, 15 लाख साल पहले मिले दिमाग और 12,000 साल पहले मिले दिमागों को लेकर विश्लेषण किया. जिसके आधार पर कुदरत के करिश्मे को समझने में वैज्ञानिकों को काफी मदद मिली है. इस दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि, जैसे जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया है और इंसानों ने विशेषता हासिल करनी शुरू की है, उसी तरह से इंसानी दिमाग का आकार भी घटता गया है. प्राचीन काल के मनुष्यों को सूचनाओं को संग्रहीत करने के लिए कम मस्तिष्क ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे उनका दिमाग सिकुड़ जाता है.
इस स्टडी को करने वाले वैज्ञानिक डॉ. जेम्स ट्रैनिएलो ने कहा कि चीटियों का समाज इंसानों के समाज की तरह नहीं है. लेकिन उनके और हमारे समाज में बहुत सी समानताएं हैं. वो समूह में फैसला करते हैं. समूह में भोजन तैयार करते हैं. ज्यादातर कामों के लिए चीटियों के वर्ग निर्धारित हैं, जैसे कि इंसानों में हर काम के लिए अलग-अलग समूह या समुदाय निर्धारित किए गए थे. क्योंकि हर काम हर इंसान नहीं कर पाता. यहां पर काम का जातीय विभाजन नहीं बल्कि बौद्धिक स्तर पर विभाजन की बात कही जा रही है.
डॉ. जेम्स ट्रैनिएलो ने कहा कि चीटियों और इंसानों के बीच ये समानताएं ही दिमाग के स्वरूप को समझने की ताकत देती है. ये समानताएं कई बातों को उजागर करती है
Renuka Sahu
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