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भारत की रूस के साथ गहरी दोस्ती है इसके अलावा अमेरिका भी नई दिल्ली को निकट सहयोगी मानता रहा है।
रूस और यूक्रेन जंग का असर अब वैश्विक संबंधों पर भी दिखना शुरू हो गया है। इस युद्ध के चलते विभिन्न देशों के सामरिक संबंधों पर इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर देखने को मिल रहा है। पूर्वी लद्दाख में भारत के प्रति चीन के व्यवहार में आए बदलाव को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की उदारता के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर रूस है। आखिर पूर्वी लद्दाख में चीन के इस दृष्टिकोण के बदलाव के पीछे क्या बड़ी वजह है। इसका रूस यूक्रेन जंग से क्या संबंध है। रूस ने चीन पर भारत के प्रति नरम रवैये को लेकर क्यों दबाव डाला। आइए जानते हैं कि क्या इस पूरे मामले में विशेषज्ञों की क्या राय है।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि दरअसल, चीन के विदेश मंत्री वांग यी की इस महीने की यात्रा के ऐलान के बाद इस तरह के सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वांग की यात्रा का मकसद भारत और चीन के साथ आपसी संबंधों को बहाल करेगा। चीन के रुख में अचानक इस बदलाव को यूक्रेन और रूस युद्ध से जोड़कर देखा जा रहा है। इसमें कोई अचरज भी नहीं है। इसके कई कारण भी है।
2- उन्होंने कहा कि रूस और यूक्रेन जंग में एक बाद तो स्थापित हो गई कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। रूस यूक्रेन के बीच चल रहे लंबे संघर्ष के बाद भी अब तक समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं निकल सका। उन्होंने कहा कि जैसे अफगानिस्तान में अमेरिका की स्थिति थी, वैसे ही हालात यूक्रेन में रूस के लिए पैदा होते जा रहे है। रूस एक महाशक्ति है। इसके बावजूद रूसी सेना करीब चार सप्ताह से यूक्रेनी सेना से जूझ रही हैं। इस जंग में दोनों पक्षों की अपार क्षति हुई है।
3- इस युद्ध का एक और असर पड़ा है, जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए घाटे का सौदा हो सकता है। आम रूसी जिस तरह से इस युद्ध की मुखालफत कर रहा है उससे पुतिन की सत्ता अस्थिर हो सकती है। पुतिन के इस फैसले का विरोध रूस में हो रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी इस युद्ध से सबक जरूर लिए होंगे। भारत के साथ अनावश्यक सीमा विवाद और जंग की धमकी देने वाले चिनफिंग को यह बात समझ में आ गई है कि सीमा विवाद का निस्तारण भारत के साथ जंग लड़कर नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब भारत एक परमाणु संपन्न राष्ट्र है। भारत की रूस के साथ गहरी दोस्ती है इसके अलावा अमेरिका भी नई दिल्ली को निकट सहयोगी मानता रहा है।
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