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2001 में तालिबान का शासन खत्म होने के बाद भी लोगों का रवैया कुछ कुछ ही बदला है।
अफगानिस्तान में बंदूक और हथियारों के दम पर तालिबान की पकड़ मजबूत होती जा रही है। अफगानिस्तान के कई अहम प्रांतों में तालिबान का कब्जा हो रहा है और अफगान की सेना कमजोर नजर आ रही है। इस बीच तालिबानियों को रोकने और उन्हें सीधी टक्कर देने के लिए एक महिला गवर्नर सामने आई है। अफगानिस्तान में कत्लेआम मचा रहे आतंकी संगठन तालिबान से लड़ने के लिए महिला गवर्नर सलीमा मजारी ने अपनी एक फौज बनाई है। सलीमा मजारी अपने इलाके में फौज खड़ी कर रही हैं। उनकी फौज में शामिल लोग अपनी जमीन और मवेशी बेच कर लोग हथियार खरीद रहे हैं और उनकी सेना में शामिल हो रहे हैं।
ऐसे कर रही लोगों को फौज में शामिल
अफगानिस्तान की सलीमा मजारी चारकिंत ज़िले की महिला गर्वनर हैं, जिनसे लोहा लेना शायद ही तालिबान के लिए आसान हो। वह किस तरह अपनी फौज को मजबूत कर रही हैं, इसकी बानगी लगातार देखने को मिल रही है। पुरुष प्रधान अफगानिस्तान के एक जिले की महिला गवर्नर माजरी तालिबान से लड़ने के लिए मर्दों की फौज जुटाने निकली हैं। पिकअप की फ्रंट सीट पर खुद सलीमा माजरी मजबूती से बैठी रहती हैं। वह उत्तरी अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों से गुजरती हैं और अपनी फौज में स्थानीय लोगों को शामिल करती रहती हैं। उनकी गाड़ी की छत पर लगे लाउडस्पीकर में एक मशहूर स्थानीय गाना बजता रहता है।गाड़ी पर गाना बज रहा था, "मेरे वतन... मैं अपनी जिंदगी तुझ पर कुर्बान कर दूंगा"। इन दिनों सलीमा अपने इलाके के लोगों से यही करने को कह रही हैं। बता दें कि मई की शुरूआत से ही तालिबान अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में उमड़ा चला आ रहा है.
चारकिंत पर अब भी तालिबान का कब्जा नहीं
यही वो समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई खत्म करने और फौज की वापसी का हुक्म दिया था। इसके बाद से बहुत दूरदराज के पहाड़ी गांवों और घाटियों पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। अब हालत यह हो गई है कि तालिबान ने अफगान के काबुल को छोड़कर अफगान के प्रमुख प्रांतों को अपने कब्जे में ले लिया है। हालांकि, तालिबान अब तक चारकिंत पर पूरी तरह से कब्जा नहीं कर पाया है। बाल्ख प्रांत के मजार ए शरीफ से करीब घंटे भर की दूरी पर मौजूद चारकिंत सावधान है। तालिबान के शासन में महिलाओं और लड़कियों की पढ़ाई लिखाई और नौकरी पर रोक लग गई थी। 2001 में तालिबान का शासन खत्म होने के बाद भी लोगों का रवैया कुछ कुछ ही बदला है।
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