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डब्ल्यूएचओ ने किया जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का आह्वान

jantaserishta.com
8 Nov 2024 8:02 AM GMT
डब्ल्यूएचओ ने किया जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का आह्वान
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नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नई रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाते समय स्वास्थ्य पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी है। यह रिपोर्ट 2024 में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन (सीओपी29) से पहले आई है, जो बाकू, अजरबैजान में आयोजित होगी। इस विशेष रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के नेताओं से अपील की है कि वे जलवायु वार्ताओं में स्वास्थ्य को भी शामिल करें और इसे अलग-थलग मुद्दा न मानें।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडहानोम घेब्रेसस ने रिपोर्ट में कहा, "जलवायु संकट एक स्वास्थ्य संकट भी है, इसलिए जलवायु एक्शन में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना न केवल नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है बल्कि इससे अधिक न्यायसंगत और न्यायसंगत भविष्य के लिए रास्ता खुल सकता है।" यह रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ ने 100 से अधिक संगठनों और 300 विशेषज्ञों के सहयोग से तैयार की है। इसमें कुछ महत्वपूर्ण कदम बताए गए हैं, जो उन 3.6 अरब लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के सबसे अधिक खतरे में जी रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन में सफलता का मुख्य मापदंड मानव स्वास्थ्य और भलाई होना चाहिए। इसके अलावा, फॉसिल फ्यूल (पारंपरिक ईंधन) पर निर्भरता खत्म करने और इनके सब्सिडी को बंद करने की बात कही गई है। रिपोर्ट में स्वच्छ और टिकाऊ विकल्पों में निवेश की सिफारिश की गई है, जिससे प्रदूषण के कारण बढ़ रही बीमारियों को कम किया जा सके और कार्बन उत्सर्जन को भी घटाया जा सके।
इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत बनाने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से स्वास्थ्य प्रणालियों को सुरक्षित बनाने, और स्वास्थ्य तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लाभों को बढ़ावा देने के लिए व्यावहारिक दिशा निर्देश दिए गए हैं। हाल ही में द लांसेट की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। रिपोर्ट के अनुसार, 15 में से 10 स्वास्थ्य खतरे रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गए हैं।
हालांकि 2015 के पेरिस समझौते में तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का संकल्प लिया गया था, लेकिन तापमान अब भी इस सीमा के करीब है। यदि समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो इससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ सकते हैं।
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