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जहां 6 महीने तक नहीं निकलता सूरज, वहा होता है रोशनी का जुगाड़

Admin4
18 July 2021 2:34 PM GMT
जहां 6 महीने तक नहीं निकलता सूरज, वहा होता है रोशनी का जुगाड़
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जहां कई महीनों तक सूरज की रौशनी पड़ती ही नहीं. जी हां, यहां साल के 6 महीने दिन रहता है और बाकी के महीने रात. पहाड़ों के बीच स्थित है शहर

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- ओस्लो: दुनिया में खगोलीय घटनाओं (Astronomical Events) के एक से बढ़कर एक रोमांचित कर देने वाले नमूने मौजूद हैं. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि दुनिया में एक ऐसी जगह है, जहां कई महीनों तक सूरज की रौशनी पड़ती ही नहीं. जी हां, यहां साल के 6 महीने दिन रहता है और बाकी के महीने रात.

पहाड़ों के बीच स्थित है शहर
नार्वें (Norway) में टेलीमार्क एरिया के पास पहाड़ों की बीच में स्थित इस शहर को रजुकान (Rjukan) नाम दिया गया है. यहां के निवासी लगभग 6 महीने तक बिना धूप के रहते हैं. इसी कारण उनके शरीर में विटामिन डी की भारी कमी हो जाती है. जानकारी के मुताबिक इस शहर को एक हाइड्रो पावरहाउस (Hydro powerhouse) के रूप में नॉर्स्क हाइड्रो में काम करने वालों के लिए बसाया गया था.
शीशे से सूरज लाने का सपना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस शहर के संस्थापक सैम आइड (Sam Eyde) ने 1913 तक वहां पर सूरज की रोशनी लाने के लिए शीशा बनाने का सपना देखा था. हांलाकि उनके जीते जी ऐसा हो नहीं सका. जिसके बाद विकल्प के तौर पर नागरिकों को घाटी से बाहर और पहाड़ों पर ले जाने के लिए एक गोंडोला, जिसे हवाई ट्रामवे या क्रोबोबेन भी कहते हैं, उसे बनाया गया था ताकि उन्हें विटामिन डी मिल सके.
100 साल बाद तैयार हुआ शीशा
लेकिन सैम आइड ने लोगों को रास्ता दिखा दिया था. उनकी मौत के बाद स्थानीय लोगों और आर्टिस्ट मार्टिन एंडरसन (Martin Anderson) ने सैम की कल्पना के बारे में विचार किया, और लगभग 100 साल बाद आधिकारिक तौर पर रजुकान सन मिरर (Rjukan sun mirror) का इस्तेमाल किया गया. जिसके बाद स्थानीय निवासियों को अब शहर के 6,500 वर्ग फुट के क्षेत्र में सूरज की रोशनी ले सकते हैं.
शीशे ने टूरिज्म को दिया बढ़ावा
शीशे की मदद से करीब 80 फीसदी सूर्य की किरणों को शहर की तरफ भेज दिया जाता है. इस योजना की लागत 750,000 डॉलर बताई जाती है.स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मिरर के लगने के बाद लोगों की बहुत मदद हुई है. साथ ही टूरिज्म को भी बढ़ावा मिला है. जानकारी के अनुसार साल 2015 में इस जगह को नॉर्वे के आठवें यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के रूप में पहचान मिली थी.


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