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नासा का ये शोध शुक्र ग्रह की पड़ताल से जुड़ी है
दुनियाभर में बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं, ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का बढ़ता जलस्तर, वायरस जैसे जैविक युद्ध और परमाणु युद्ध का खतरा आदि उस विनाश का संकेत दे रहे हैं कि एक ना एक दिन इस धरती का अंत होना तय है। कल्पना कीजिए अगर ऐसा हो गया, तो आगे क्या होगा? क्या इंसानी नस्ल इस विनाश से बच पाएगी? अगर मानव बच भी गए, तो उनका गुजारा कैसे होगा? इन सभी सवालों का जवाब हासिल करने के लिए वैज्ञानिकों ने 'डूम्स डे' की थ्योरी दी थी। इसके बाद 'डूम्स डे क्लॉक', 'डूम्स डे वॉल्ट' पर तेजी से काम हुआ।
हालांकि, इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि दुनिया खत्म होगी या नहीं। लेकिन इस रोचक विषय को लेकर नासा का शोध जारी है। द सन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नासा के द्वारा शुरू किया गया एक नया मिशन दुनिया के सबसे महत्वूपर्ण सवाल का जवाब ढूंढने में मदद कर सकता है।
नासा का ये शोध शुक्र ग्रह की पड़ताल से जुड़ी है। ऐसे में ये संभव है कि वैज्ञानिक उस सिद्धांत को सही तरीके से परिभाषित कर दें कि धरती का अंत कैसे होगा? साइंस फोकस की रिपोर्ट के मुताबिक, 'एक थ्योरी ये है कि शुक्र कभी पृथ्वी की तरह रहा होगा। इस सबसे गर्म ग्रह शुक्र में महासागर और धरती की सतह पर मौजूद टेक्टॉनिक प्लेट भी होंगी, जिसका वातावरण घने ग्रीनहाउस गैसों जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड एवं सल्फर डाइऑक्साइड से मिलकर बना होगा। कुछ वैज्ञानिकों का तो ये भी मानना है कि हो सकता है अरबों साल पहले इस ग्रह पर जीवन मौजूद रहा हो।'
विशेषज्ञों की मानें, तो शुक्र का ड्यूटेरियम-हाइड्रोजन रेशियो धरती की तुलना में 100 गुना अधिक है। इसके पीछे की वजह ये भी है कि 'शुक्र' ग्रह पर पहले बहुत पानी रहा होगा, जो अब गायब हो चुका है। शुक्र ग्रह से जुड़ी ऐसी कई गुत्थियों को सुलझाने के लिए नासा कुछ साल बाद 2028 से 2030 के बीच अपना DAVINCI+ Veritas Probes रवाना करेगा।
DAVINCI + मिशन पर जाने वाला यान शुक्र ग्रह की सतह पर जाकर इसके ड्यूटेरियम-हाइड्रोजन अनुपात को फिर से मापेगा। आपको बता दें कि इससे पहले सन 1970 और 1980 के दशक में हासिल हुए इसी रेशियो के नतीजों को 100 फीसदी सटीक नहीं माना जाता है।
वहीं एक सिद्धांत ये भी है कि शुक्र पर हुए ज्वालामुखी विस्फोटों से वातावरण में बहुत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्पन्न हुई, जो एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस प्रभाव का कारण बनी। नासा की जांच हाई रेज्यूलेशन वाली तस्वीरें और रडार डेटा भी एकत्र करेगी, ताकि हमें शुक्र की सतह के बारे में एक सटीक जानकारी मिल सके और इसकी सतह और वातावरण की तुलना धरती से की जा सके। शुक्र ग्रह से जुड़े सभी सिद्धांतों का अध्ययन कर धरती के अंत के समय का अनुमान भी लगाया जा सकेगा।
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