विश्व

जब स्वीडनवा‎सियों से कहा आपके मुंह में घी शक्कर तो बज उठी ता‎लियां

Rani Sahu
17 May 2023 4:47 PM GMT
जब स्वीडनवा‎सियों से कहा आपके मुंह में घी शक्कर तो बज उठी ता‎लियां
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स्टॉकहोम । विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जब स्वीडन वा‎सियों से कहा ‎कि आपके मुंह में घी शक्कर तो वहां पर ता‎लियों की गड़गड़ाहट होने लगी। ‎विदेश मंत्री अपनी तीन ‎दिनी ‎विदेश यात्रा पर स्वीडन में यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत मंत्रालयी मंच की बैठक में भाग ले रहे हैं। उन्होंने यहां भारतीय समुदाय के साथ बातचीत के दौरान ‘भारतीय संस्कृति के वैश्वीकरण’ पर पूछे गये एक सवाल का जवाब देते हुए हिंदी के मुहावरे, ‘आपके मुंह में घी-शक्कर’ का उपयोग किया, जिसके बाद लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। जयशंकर यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत मंत्रालयी मंच की बैठक में भाग लेने के लिए स्वीडन की तीन दिवसीय यात्रा पर यहां आये हैं। उन्होंने रविवार शाम स्वीडन में भारतीय समुदाय के लोगों से बातचीत की और द्विपक्षीय संबंधों में आई प्रगति से उन्हें अवगत कराया। यह पूछे जाने पर कि वैश्वीकरण के इस युग में क्या पश्चिम ने ‘हैमबर्गर’ के बजाय पानी पूरी खाना शुरू कर दिया है और क्या अब ‘शर्ट’ पर न्यूयॉर्क के बजाय नई दिल्ली छपेगा, उन्होंने कहा, एक शब्दावली है, जिसे ‘आपके मुंह में घी-शक्कर’ कहा जाता है। इस पर लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने तालियां बजाईं।
विदेश मंत्री ने रविवार शाम को कहा ‎कि स्वीडन का ईयू के सदस्य, एक नॉर्डिक साझेदार और एक साथी बहुपक्षवादी देश के रूप में महत्व है। हमने भारत में जारी उन बदलावों के बारे में बात की, जो हमारी वैश्विक उपस्थिति को बढ़ाते हैं और विदेशों में भारतीयों के लिए अवसर पैदा करते हैं।
इससे पहले जयशंकर ने स्वीडन के अपने समकक्ष टोबियास बिलस्ट्रॉम के साथ रविवार को यहां व्यापक चर्चा की। इस दौरान हिंद-प्रशांत, यूरोप की सामरिक स्थिति तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को जोखिम मुक्त करने पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया। विदेश मंत्री के तौर पर जयशंकर की यह पहली स्वीडन यात्रा थी। जयशंकर ने ऐसे समय में यह यात्रा की, जब भारत और स्वीडन अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 साल पूरे कर रहे हैं। स्वीडन वर्तमान में ईयू परिषद की अध्यक्षता कर रहा है।
जयशंकर ने स्वीडन के रक्षा मंत्री पॉल जॉनसन से भी मुलाकात की और दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय एवं वैश्विक सुरक्षा पर विचारों का आदान-प्रदान किया। इससे पूर्व ईआईपीएमएफ को संबोधित किया और भारत और यूरोपीय संघ के बीच ऐसे ‘नियमित, समग्र और स्पष्ट संवाद’ का आह्वान किया, जो केवल आज के संकट तक ही सीमित न हो।
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