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अंतरराष्ट्रीय राजनीति में क्या है ISS की दशा

Gulabi
1 March 2022 2:58 PM GMT
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में क्या है ISS की दशा
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ISS की दशा
हाल ही में रूस (Russia) ने कहा था कि उसके पास इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station) को गिराने के विकल्प है जिसका खामियाजा भारत और चीन तक को भुगतना पड़ सकता है. इस बयान के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं और कुछ अर्थ हैं जिनका खुलकर जिक्र नहीं हो रहा है. इसमें इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्थिति भी शामिल है. यह मुद्दा इस समय बहुत बड़ा नहीं है, और ना ही यह कोई नया मुद्दा है. आईएसएस अंतरिक्ष अन्वेषण में एक अहम उपलब्धि है, लेकिन यह कई अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक मुद्दा भी बनता रहा है.
एक बहुत बड़ी उपलब्धि
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन साल 1998 प्रक्षेपित किया गया था जिसमें अमेरिका, रूस और यूरोप सहित कई देशों की भागीदारी रही. पिछले 23 साल में तमाम देशों के सहयोग से इस स्टेशन पर प्रमुख रूप से शून्य गुरुत्व पर प्रयोग किए गए. इसके अलावा ऐसे भी प्रयोग किए गए जिन्हें पृथ्वी पर करना संभव ही नहीं था.
अमेरिका से दूर हो रहा था रूस
लेकिन पिछले कुछ सालों में स्पेस स्टेशन पर उसके सदस्य देशों की राजनीति का असर पड़ा. अमेरिका के आर्टिमिस समझौते पर रूस सहमति नहीं जता सका. चीन से अमेरिका की पुरानी प्रतिद्वंदता थी इसलिए चीन ने आईएसएस के बदले में खुद का इंटरनेशनल स्टेशन बनाने की ठानी और अब वह इसमें सफल भी चुका है. वहीं रूस ने भी पिछले साल के अंत अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया. और अमेरिका से दूरी होने पर चीन के सहयोग से योजनाएं बनाने लगा है.
खत्म होने की ओर है स्टेशन
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की उम्र उम्मीद से ज्यादा लंबी हो गई है. पहले यह 2022 तक चलने वाला था और फिर इसका कार्यकाल और ज्यादा बढ़ता दिखा, लेकिन इस पर खतरे भी बढ़ते रहे. अब नासा ने हाल ही में ऐलान किया है कि 2031 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया जाएगा. ऐसे में रूस के खुद के स्पेस स्टेशन की तैयारी हैरान करने वाली बात नहीं दिखती.
स्टेशन बंद करने की योजना
नासा ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बंद करने की योजना बना ली है, उसका इरादा इसे पृथ्वी पर लाकर प्रशांत महासागर के बीच 'प्वाइंट निमो' स्थान पर डुबोना है जिसे 'अंतरिक्ष यानों का कब्रिस्तान भी कहा जाता है. लेकिन रूस ने स्टेशन को गिराने के विकल्प की बात कर चौंकाने का प्रयास किया था.
रूस ने क्यों दिया विकल्प वाला बयान
रूस का इस विकल्प का जिक्र करना सीधे सीधे अमेरिका को चुनौती थी. बताया जा रहा है कि रूस यूक्रेन विवाद के चलते अमेरिका ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं उसमें रूस के अंतरिक्ष उद्योग को गहरा झटका लग रहा है जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप रूस की स्पेस एजेंसी रॉसकोमोस के चीफ दिमित्रि रोगोजिन ने यह बयान दिया है.लेकिन यह बयान अमेरिका के लिए ही चुनौती देने के रूप में लिया जाएगा.
अंतरिक्ष के लिए एक अलग तरह का ध्रुवीकरण
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर वर्तमान संकट से पहले ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति का असर हो रहा था. अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा ने ही नासा को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह स्टेशन का उपयोग ज्यादा व्यापक करे और अपने आर्टिमिस समझौते में ज्यादा देशों को शामिल करे. यही वजह है कि हम एक दो सालों से रूस और अमेरिका को ज्यादा अंतरिक्ष सहयोगी तलाशते देख रहे हैं.
ऐसा लगता है कि रूस को अमेरिका की विस्तारवादी (?) नीति का खतरा पहले लग गया था. यही वजह है कि केवल नाटो का विस्तार ही रूस को खटकता नहीं दिखा. उसे लगा कि आर्टिमिस समझौते के नाम पर भी अमेरिका अपना विस्तार कर रहा है. पिछले एक दो सालों में जिस स्पेस रेस की बात होती रही, यह रूस का उसी को देखने का तरीका कहा जा सकता है. यह कहना गलत ही होगा कि स्पेस स्टेशन स्पेस रेस का अखाड़ा बना, लेकिन वह स्पेस रेस की गतिविधियों का गवाह जरूर बनता दिख रहा है.
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