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क्या है युद्ध की आहट के बीच दुनिया का रुख, जानें कौन देगा रूस का साथ और किसे होगा यूक्रेन पर भरोसा

Renuka Sahu
22 Feb 2022 5:57 AM GMT
क्या है युद्ध की आहट के बीच दुनिया का रुख, जानें कौन देगा रूस का साथ और किसे होगा यूक्रेन पर भरोसा
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फाइल फोटो 

रूस और यूक्रेन संकट पर पिछले कई महीनों से दुनिया टकटकी लगाए देख रही थी और आज वही हुआ जिस बात का अंदेशा था.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रूस और यूक्रेन संकट (Ukraine-Russia Crisis) पर पिछले कई महीनों से दुनिया टकटकी लगाए देख रही थी और आज वही हुआ जिस बात का अंदेशा था. रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने यूक्रेन के अलगवावादी बहुल वाले दो क्षेत्रों लुंहास्क और दोनेत्स्क (Luhansk and Donetsk) को अलग तौर पर मान्यता दे दी है. एक तरह से रूस इन दोनों अलगवावादी क्षेत्रों को दो देश के रूप में मान्यता दे दी है. साथ ही इन क्षेत्रों में अलगाववादियों की मदद के लिए रूसी सेना भेजने का ऐलान भी किया. रूस के इस कदम के बाद निश्चित तौर पर अमेरिका चुप नहीं बैठेगा. नाटो की सेना पहले से ही तैयार है. पर यूक्रेन संकट को लेकर रूस को मदद पहुंचाने वाले बड़े देशों की भी कमी नहीं है. चीन खुलमखुला रूस का साथ दे रहा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कौन देश किस तरफ है.

दरअसल, 2004 में ही अमेरिका ने सोवियत संघ के पूर्व देश बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटाविया, लिथुनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवानिया को नाटो का सदस्य देश बना लिया है. ऐसे में रूस के सबसे निकट इन्हीं देशों से चुनौती मिलेगी. नाटो में फिलहाल 30 देश शामिल है. इनमें से 10 के करीब रूस के एकदम आस-पास है.
नाटो से रूस को मिलेगी चुनौती
अमेरिका ने अपने नौ हजार सैनिकों को यूक्रेन संकट से निपटने के मद्देनजर स्टैंड बाय पर रखा हैं. इनमें 5000 हजार सैनिक जो नाटो का हिस्सा है, इस समय रूस के पड़ौसी पोलैंड में है जबकि 4000 सैनिक रोमानिया और बुल्गारिया में है. यूक्रेन संकट पर सबसे ज्यादा प्रतिरोध अमेरिका की तरफ से ही है. युद्ध की स्थिति में अमेरिका ने यूक्रेन को साथ देने की घोषणा कर चुकी है. हालांकि अमेरिका और नाटो देशों ने कहा है कि वह युद्ध के मकसद से अपनी सैनिकों को सीधे यूक्रेन नहीं भेजेगा लेकिन अन्य सहयोग जैसे हथियार, मेडिकल सुविधा आदि देता रहेगा. इस कड़ी में नाटो देशों के कई अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और हथियार यूक्रेन पहुंच भी रहे हैं.
यूरोपीय देशों की मजबूरी
दिलचस्प बात यह है कि व्यापारिक हित को देखते हुए नाटो के यूरोपीय सदस्य देश उतना आक्रामक नहीं है, जितना अमेरिका है. जर्मनी और फ्रांस के प्रमुख ने हाल ही में मास्को की ताबड़तोड़ यात्रा करके विवाद को कम करने की कोशिश की है. यूरोप के कई देशों की निर्भरता रूस पर बढ़ गई है. इसलिए ये देश हर हाल में शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं. यूरोपीय देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती नॉर्ड गैसपाइपलाइन को लेकर है जो रूस से जर्मनी के बीच लगभग तैयार है और इस पाइपलाइन से यूरोप गहराते ऊर्जा संकट के लिए जरूरी मानता है.
अगर नाटो के यूरोपीय देश पूरी तरह से यूक्रेन का साथ देंगे तो रूस इस पाइपलाइन को रद्द कर सकता है. हालांकि रूस के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी में नाटो के यूरोपीय सदस्य देशों को साथ देना ही होगा. अमेरिका रूसी बैकिंग सिस्टम को चोट पहुंचाने की पूरी कवायद कर चुका है. नाटो के यूरोपीय देशों में ब्रिटेन का रुख ही थोड़ा-बहुत अमेरिका से मिलता है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि रूस का यह कदम यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन करेगा. यह कदम अंधकार की ओर ले जाएगा.
चीन का हाथ रूस के साथ
यूक्रेन संकट के बीच रूस को सबसे मजबूत साथ चीन का मिलेगा. चीन ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि यूक्रेन में नाटो मनमानी कर रहा है. जब से पश्चिमी देशों का रुख चीन के खिलाफ हुआ है, रूस हमेशा से चीन का साथ देता रहा है. पिछले दो दशक से चीन और रूस का संबंध उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है. दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक और सैन्य संबंध है. स्पेस के क्षेत्र में दोनों एक-दूसरे का साथ देता रहा है. इसलिए चीन हर हाल में रूस का साथ देगा.चीन का मजबूत सहयोगी उत्तर कोरिया भी रूस का ही साथ देगा.
रूस को पांच पड़ोसी देशों का समर्थन
दूसरी और सोवियत संघ से अलग हुए छह देशों रूस, आर्मिनिया, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, तजिकिस्तान और बेला रूस के बीच नाटो की तरह सीएसटीओ Collective Security Treaty Organization (CSTO) समझौता हुआ है. यानी ये सभी देश रूस पर हमले की स्थिति में खुद पर हमला मानेंगे. ईरान का अमेरिका के साथ तनातनी किसी से छुपी हुई नहीं है. जब से ईरान और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील फेल हुआ तब से रूस ईरान का साथ दे रहा है. इसलिए ईरान का रुख भी स्पष्ट है.
भारत किस तरफ रहेगा
भारत और रूस के बीच कई दशकों से न सिर्फ मजबूत सैन्य संबंध है बल्कि एक-दूसरे देशों के लोगों के बीच प्रगाढ़ सांस्कृतिक संबंध है. चीन मामले को छोड़ दे तो रूस हर मामले पर भारत का साथ देता रहा है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस ने लगातार दो बार संयुक्त राष्ट्र में वीटो का इस्तेमाल कर भारत का साथ दिया है. आज भी भारत की सैन्य जरूरतें रूस पर ज्यादा निर्भर है. चूंकि भारत हमेशा गुटनिरपेक्ष में विश्वास करता है, इसलिए यूक्रेन मामले पर भारत तटस्थ रुख अपनाया हुआ है.
हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा है कि इस मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए कूटनीतिक संवाद ही सबसे बेहतर तरीका है. न्यूयॉर्क में भारत के स्थायी मिशन ने इस बयान को ट्वीट किया है. इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए भारत में रूसी दूतावास ने बयान जारी कर भारत के इस कदम का स्वागत किया है. नई दिल्ली में स्थित रूसी दूतावास ने कहा, हम भारत के संतुलित, सैद्धांतिक और स्वतंत्र रुख का स्वागत करते हैं.
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