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West Bengal : फलों का राजा है आम, डेढ़ किलो तक वजन और रस से भरपूर, देश-विदेश में होती है सप्लाई

Rani Sahu
26 Jun 2021 10:04 AM GMT
West Bengal : फलों का राजा है आम, डेढ़ किलो तक वजन और रस से भरपूर, देश-विदेश में होती है सप्लाई
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अभी आम का सदाबहार सीजन चल रहा है

अभी आम का सदाबहार सीजन चल रहा है. बाजार में तरह-तरह के आम बिक रहे हैं. लोग अपनी पसंद से खरीदते और खाते हैं. इस बार आम की बंपर पैदावार भी हुई है जिसका फायदा निर्यात में मिला है. भारत में प्रमुख तौर पर आम की 24 वेरायटी हैं जिसे लोग चाव से खाते हैं. इनमें अलफोंसो, केसर, दशहरी, हिमसागर और किशन भोग, चौसा, बादामी, सफेदा, बॉम्बे ग्रीन, लंगड़ा, तोतापुरी, नीलम, रसपुरी, मुलगोबा, लक्ष्मणभोग, आम्रपाली, इमाम पसंद, फजली, मानकुरद, पहेरी, मल्लिका, गुलाब खास, वनराज, किल्लीचुंदन और रूमानी के नाम शामिल हैं.

अपने आकार और वजन को लेकर फजली आम इन सभी वेरायटी में खास है. यह आमतौर पर पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में उगाया जाता है. इसका आकार बड़ा होता है और वजन 700-1500 ग्राम तक होता है. यानी कि फुल साइज में यह आम डेढ़ किलो तक का हो सकता है. इस आम का छिलका खुरदरा और अन्य आमों की तुलना में थोड़ा मोटा होता है. आम का गूदा हल्का पीला, थोड़ा सख्त और रसदार होता है. आम में फाइबर की मात्रा बहुत कम होती है और वह भी छिलके के पास ही थोड़ी पाई जाती है. इस आम की खूशबू बहुत अच्छी होती है और टेस्ट काफी मीठा.
जैम-जेली बनाने में होता है उपयोग
देश में बंगाल के अलावा विदेशों में बांग्लादेश में इसकी बड़े पैमान पर पैदावार होती है. यह आम तब निकलता है जब अन्य आमों का सीजन जा रहा होता है. फाजिल आम का उपयोग बड़े पैमाने पर आचार बनाने और जैम-जेली बनाने में होता है. भारत में बंगाल के अलावा बांग्लादेश का राजशाही डिविजन फाजील आम का बहुत बड़ा उत्पादक है. फाजील को आम की व्यावसायिक वेरायटी के तौर पर माना जाता है जिसका उपयोग निर्यात में ज्यादा होता है. इससे आम के किसानों की अच्छी कमाई मिलती है. साल 2009 में भारत ने फाजील आम की जीआई टैगिंक के लिए अप्लाई किया था लेकिन इस पर बांग्लादेश के साथ विवाद हो गया. भारत की तरफ से WTO में रजिस्ट्रेशन को लेकर भी विवाद चल रहा है. यह आम बंगाल के अलावा बिहार में भी खूब होता है.
बंगाल के मालदा में ज्यादा उत्पादन
बंगाल में महानंदा और कालिंदी नदी के किनारे के इलाकों में फजली आम का उत्पादन ज्यादा होता है. मालदा जिले के लगभग सभी क्षेत्रों में यह आम बहुतायत में उगाया जाता है. मालदा में फजली के अलावा भी कई वेरायटी के आम होते हैं. इनमें गोपालभोग, बृंदाबन, लंगड़ा, खिरसापति, किशनभोग, कालापहाड़, बंबई के नाम शामिल हैं. अंत में फजली होता है और लंबे दिनों तक चलता है. फजली के आसपास ही अस्वनी आम होता है जिसा उत्पादन अंत में लिया जाता है.
कैसे पड़ा फजली आम का नाम
फजली आम का नाम फजली बाबू से पड़ा है जो अरापुर गांव की फजल बीबी से जुड़ा है. इस इलाके में मिट्टी की क्वालिटी ऐसी है जिसमें ऑर्गेनिक पोषण की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इस पोषण का फायदा आम को होता है और आम वजनी और रसदार होते हैं. हालांकि आम के सीजन में खूब पैदावार होती है लेकिन कभी बाढ़ आ जाए तो पूरी उत्पादन चौपट हो जाता है.
मौसम में अचानक बदलाव और तापमान में तेजी से कमी भी इस आम पर गहरा असर डालता है. फजली आम पेड़ों से कब तोड़े जाने हैं, इसकी एक खास पहचान है. जब पेड़ एक या दो आम अपने आप पक कर गिरने लगें तो किसानों को समझ में आ जाता है कि आम की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. सामान्य तौर पर पानी की टोकरी में आमों को तोड़कर गिराया जाता है ताकि चोटिल न हो. इससे आम खराब नहीं होंगे.


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