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- पानी : वर्षा जल संचयन...
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तो क्या हम अपनी नदियों को पुनर्जीवन नहीं दे सकते? यह संकल्प और प्रकृति के साथ जुड़ाव से ही संभव है।
आज जल संकट समूचे विश्व की गंभीर समस्या है। हालात इतने खराब हैं कि दुनिया के 37 देश पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। इनमें सिंगापुर, पश्चिमी सहारा, कतर, बहरीन, जमैका, सऊदी अरब और कुवैत समेत 19 देश ऐसे हैं, जहां पानी की आपूर्ति मांग से बेहद कम है। दुख की बात यह है कि हमारा देश इन देशों से सिर्फ एक पायदान पीछे है। असलियत यह है कि दुनिया में पांच में से एक व्यक्ति की साफ पानी तक पहुंच ही नहीं है।
यह सब सेवा एवं उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्र में पानी की मांग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी का नतीजा है। कितनी दुखदायी स्थिति है कि दुनिया में नदियों के मामले में सबसे अधिक संपन्न हमारे देश की तकरीबन साठ करोड़ से ज्यादा आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है। और देश के तीन चौथाई घरों में पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। देश की यह स्थिति तब है, जबकि यहां मानसून बेहतर रहता है। और यदि जल गुणवत्ता की बात की जाए, तो इस मामले में हमारा देश 122 देशों में 120वें पायदान पर है।
यह हमारी पानी के मामले में बदहाली का सबूत है। इसका सबसे बड़ा कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण व प्रबंधन में नाकामी है। इसी का खामियाजा समूचा देश भुगत रहा है। यह सच है कि भूजल पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है। पृथ्वी पर होने वाली जलापूर्ति अधिकतर भूजल पर ही निर्भर है। लेकिन वह चाहे सरकारी मशीनरी हो, उद्योग हो, कृषि क्षेत्र हो या आम जन, सभी ने इसका इतना दोहन किया है, जिसका नतीजा भूजल के लगातार गिरते स्तर के चलते जल संकट की भीषण समस्या के रूप में हमारे सामने है।
इससे पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है। यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में स्थिति कितनी विकराल हो सकती है। इसे उसी स्थिति में रोका जा सकता है, जब पानी समुचित मात्रा में रिचार्ज हो, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पानी का दोहन नियंत्रित हो, संरक्षण हो, भंडारण हो, ताकि वह जमीन के अंदर प्रवेश कर सके। यह अहम सवाल है कि जिस देश में भूतल व सतही विभिन्न माध्यमों से पानी की उपलब्धता 2,300 अरब घनमीटर है और जहां नदियों का जाल बिछा हो, जहां सालाना औसत बारिश 100 सेमी से भी अधिक होती है, जिससे 4,000 अरब घनमीटर पानी मिलता हो, वहां पानी का अकाल क्यों है?
असलियत में बारिश से मिलने वाले पानी में से 47 फीसदी यानी 1,869 अरब घनमीटर पानी नदियों में चला जाता है। इसमें से 1,132 अरब घनमीटर पानी उपयोग में लाया जा सकता है। इसमें से 37 फीसदी उचित भंडारण-संरक्षण के अभाव में समुद्र में बेकार चला जाता है। जाहिर-सी बात है कि यदि इसी को रिचार्ज के लिए एक सोची-समझी नीति के तहत उसका आकलन कर भविष्य में उपयोग की दृष्टि से संरक्षण किया जाए, तो देश में पानी का कोई संकट नहीं होगा।
सदियों से हमारे देश में मनुष्य और प्रकृति के द्वारा जल का संचय होता आया है। सरकारी तंत्र पर समाज के आश्रित हो जाने से स्थिति बिगड़ी है। इसका परिणाम जल प्रबंधन में सामुदायिक हिस्सेदारी के पतन के रूप में सामने आया। असलियत में यह सब जल संचय के हमारे परंपरागत तरीकों की अनदेखी का नतीजा है। झीलों-तालाबों और कुओं पर अतिक्रमण, नदी और भूजल स्रोतों का प्रदूषण, अत्यधिक पानी वाली फसलों के उत्पादन की बढ़ती चाहत, बारिश के जल का उचित संरक्षण न होना ऐसे ही कुछ कारण हैं।
जल संचय व संरक्षण में समाज की भागीदारी के अभाव, छोटे शहरों में अधिकांशतः जमीनी सतह का पक्का कर दिया जाना, अनियंत्रित, अनियोजित औद्योगिक विकास ने हमारी धरती को बंजर बनाने और पाताल के पानी के अत्यधिक दोहन में अहम भूमिका अदा की है। ऐसी स्थिति में वर्षाजल संरक्षण और उसका प्रबंधन ही एकमात्र रास्ता है। पानी देश और समाज की सबसे बड़ी जरूरत है।
आइए, भूजल रिचार्ज प्रणाली पर विशेष ध्यान दें और बारिश के जल का संचय कर देश और समाज के हितार्थ अपनी भूमिका का सही मायने में निर्वाह करें। जर्मनी में राइन नदी की सहयोगी नदी को वहां के लोग पुनर्जीवित कर सकते हैं, तो क्या हम अपनी नदियों को पुनर्जीवन नहीं दे सकते? यह संकल्प और प्रकृति के साथ जुड़ाव से ही संभव है।
सोर्स: अमर उजाला
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