![चीन में उइगर मुस्लिमों पर हिंसा...फिर भी...क्यों चुप है इस्लामिक देशों का खलीफा तुर्की चीन में उइगर मुस्लिमों पर हिंसा...फिर भी...क्यों चुप है इस्लामिक देशों का खलीफा तुर्की](https://jantaserishta.com/h-upload/2020/10/19/827662-turki.webp)
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अरब देशों में फिलहाल तुर्की काफी ताकतवर हो रहा है. वहां तुर्की के राष्ट्रपति रजप्प तैयब एर्दोआन (Recep Tayyip Erdoğan) न केवल अपने देश, बल्कि बाकी मुस्लिम देशों के लिए भी मजबूत आवाज की तरह उभरे. कट्टरपंथी एर्दोआन के बारे में माना जाता है कि वो पूरी दुनिया में इस्लाम का खलीफा बनना चाहते हैं. इसके लिए वे हर मुस्लिम देश से जुड़े मुद्दे पर अपनी राय रख रहे हैं. हालांकि हैरत ये है कि चीन में उइगर मुस्लमों पर हिंसा के मुद्दे पर तुर्की ने कभी कुछ नहीं कहा.
आने लगी मुस्लिमों पर हिंसा की खबरें
चीन के शिनजिंयाग प्रांत में उइगर मुस्लमों की लगभग 10 लाख के करीब आबादी है. साल 2017 में यहां से खबर आई कि चीनी सरकार इस आबादी पर हिंसा कर रही है. इसके बाद से आए-दिन उइगरों पर तरह-तरह की हिंसा की खबरें आ रही हैं. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से लेकर दुनिया के सभी देश इसका विरोध कर रहे हैं. यहां तक संयुक्त राष्ट्र में भी ये बात उठ चुकी है और चीन पर कई तरह के बैन लगाने की बात भी हुई.
इन सबके बीच ये देखने की बात है कि मुस्लिम देशों का अपने समुदाय के लोगों के दमन को लेकर क्या रवैया है. चीन में मुस्लिम समुदाय पर हो रही हिंसा पर लगभग सारे इस्लामिक देश चुप हैं. फिर चाहे वो पाकिस्तान हो या तुर्की. खासकर तुर्की की चुप्पी सबसे ज्यादा हैरानीभरी है.
तुर्की हर मामले में बोलता है सिवाय उइगरों के
ये वही तुर्की है जो कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के पक्ष में बोलता रहा. तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा था कि कश्मीर की आबादी पर दशकों से भारत हिंसा कर रहा है और उसे पाकिस्तान से मिल जाना चाहिए. अजरबैजान और आर्मेनिया की जंग में भी वो लगातार मुस्लिम-बहुल अजरबैजान का खुलकर पक्ष ले रहा है. यहां तक कि तुर्की के सैनिक अजरबैजान की ओर से लड़ते कहे जा रहे हैं. एक ओर तुर्की लगातार इस्लामिक देशों की रक्षा की बात कर रहा है तो दूसरी ओर उइगर मामले पर मुंह सिले बैठा है.
न बोलने के लिए पैसे खाने का आरोप
तुर्की की चुप्पी के प्रमाण सार्वजनिक तौर पर मिल चुके हैं. साल 2019 में नाटो के देशों ने मिलकर चीन में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ पत्र जारी किया, लेकिन तुर्की ने उसमें कोई सहयोग नहीं किया. यहां तक कि तुर्की में विपक्षी पार्टी ने जब उइगर मुस्लिमों पर हिंसा के पड़ताल की बात की तो सदन ने उसे खारिज कर दिया. डिप्टोमेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक तक गुस्साए विपक्ष ने ये आरोप तक लगा दिया था कि तुर्की ने चुप रहने के लिए 50 बिलियन डॉलर के लगभग रकम ली है.
तुर्क से ही हैं उइगर
तुर्की की ये चुप्पी तब और बड़ी बात है जबकि खुद उइगर मुसलमान तुर्की का ही हिस्सा रहे हैं. ये लोग 14वीं सदी में चीन के हुनान प्रांत में एक विद्रोह को दबाने के लिए बुलाए गए थे, जिसके बाद काफी उइगर सैनिक वहीं बस गए. ये लोग उइगुर भाषा बोलते हैं जो तुर्की भाषा परिवार की एक बोली है. यानी खुद अपने ही देशवासियों पर हिंसा को देखते हुए भी तुर्की विरोध नहीं कर रहा.
मामले को टाल रहे हैं तुर्की नेता
एर्दोआन अपने इस तरीके के कारण अब संदेह के घेरे में हैं. उइगर अमेरिकन एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष उन पर आरोप भी लगा चुके हैं कि तुर्की की चुप्पी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने भारी पैसे देकर खरीदी है. एक समय पर तुर्की उइगरों का अपना देश हुआ करता था लेकिन अब वे चीन में हिंसा झेल रहे हैं. इसे देखते हुए विपक्ष लगातार उन्हें चीन से वापस बुलाने की मांग भी कर रहा है लेकिन हर बार एर्दोआन किसी और मुद्दे को उठा देते हैं.
इंटरनेशनल मीडिया में भी तुर्की पर संदेह
ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ में भी इस बाबत बड़े सवाल उठ चुके हैं. अखबार को ऐसी रिपोट्र्स हाथ लगीं, जिसमें चीन ने तुर्की में बचे कुछ उइगर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने यहां सौंपने की बात की ताकि उन्हें चुप कराया जा सके. हालांकि खुद तुर्की की जनता अब उइगरों के हित की बात उठाने लगी है. बीते कुछ सालों में बहुत से उइगर चीन से भागने में कामयाब हो सके. इन्हें इस्तांबुल के आसपास के शहरों ने अपनाया और अब यहां से लोग उइगरों के लिए बोलने लगे हैं.
इस बीच एर्दोआन की उइगर पॉलिसी सबसे अलग है. इसके पीछे लीडर के निजी हितों के साथ देश के व्यापार को भी वजह माना जा रहा है. बता दें कि तुर्की कई सालों से मंदी की चपेट में है. ऐसे में कारोबार को उबारने के लिए चीन की सरकार उसकी मदद कर रही है. इसकी शुरुआत साल 2012 में हो गई थी. एर्गोआन के चुनाव जीतने में भी बीजिंग का बड़ा हाथ माना जा रहा है.